पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी से जुड़े भ्रष्टाचार मामले में सीबीआइ को नोटिस

दिल्ली हाई कोर्ट ने सीबीआइ को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई छह दिसंबर को होगी। मामला वर्ष 2000 में एक एनजीओ को 50 लाख रुपये आवंटित करने से जुड़ा है।

By Jp YadavEdited By: Publish:Tue, 21 Sep 2021 10:18 AM (IST) Updated:Tue, 21 Sep 2021 10:18 AM (IST)
पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी से जुड़े भ्रष्टाचार मामले में सीबीआइ को नोटिस
पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी से जुड़े भ्रष्टाचार मामले में सीबीआइ को नोटिस

नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता वीएम सिंह की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआइ ) से जवाब मांगा है। न्यायमूर्ति योगेश खन्ना की पीठ ने सीबीआइ को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई छह दिसंबर को होगी। मामला वर्ष 2000 में एक एनजीओ को 50 लाख रुपये आवंटित करने से जुड़ा है।

इस मामले में दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने चार फरवरी 2020 को सीबीआइ की क्लोजर रिपोर्ट को खारिज करते हुए फैसला सुनाया था। अदालत ने माना था कि प्राथमिक तौर पर अपराध हुआ है। हालांकि, अदालत ने मामले का संज्ञान लेने के लिए सीबीआइ को केंद्र सरकार से अनुमति लेने का निर्देश दिया था।

वहीं, याचिकाकर्ता वीएम सिंह के अधिवक्ता अर्जुन हरकौली ने दलील दी कि पहले कानून ये था कि अगर व्यक्ति वर्तमान में मंत्री है तो उनके खिलाफ कोर्ट को मामले का संज्ञान लेने के लिए केंद्र सरकार की अनुमति चाहिए थी, जबकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में वर्ष 2018 में हुए संशोधन के तहत वर्तमान या पूर्व में भी मंत्री रहे व्यक्ति के खिलाफ मामले का संज्ञान लेने के लिए कोर्ट को सक्षम प्राधिकारी की अनुमति लेना अनिवार्य है।

अर्जुन हरकौली ने दलील दी कि राउज एवेन्यू कोर्ट ने संशोधित अधिनियम के तहत सीबीआइ को अनुमति लेने का निर्देश दिया है, जबकि यह मामला संशोधित अधिनियम लागू होने से पहले का है, ऐसे में यह इस मामले पर लागू नहीं होगा।

यह है मामला

वर्ष 2000 में तत्कालीन केंद्रीय न्याय एवं सामाजिक अधिकारिता मंत्री मेनका गांधी ने मंत्रालय के अधीन मौलाना आजाद फाउंडेशन के जरिए अपनी बहन अंबिका शुक्ला के एनजीओ गांधी रूरल वेलफेयर ट्रस्ट को पचास लाख रुपये की धनराशि दी थी। आरोप है कि उक्त एनजीओ ने पीलीभीत के सरकारी महिला अस्पताल को अपनी संपत्ति दर्शाया था। वीएम सिंह ने इस मामले में वर्ष 2003 में दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। सीबीआइ ने वर्ष 2006 में इस मामले में एफआइआर दर्ज की।

सीबीआइ ने कोई गड़बड़ी न होने की बात कहते हुए वर्ष 2008 में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की। हालांकि, वर्ष 2012 में हाई कोर्ट ने मामले की दोबारा जांच करने का निर्देश दिया था। वर्ष 2019 में हाई कोर्ट ने सीबीआइ की दोनों क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर मामले को गंभीर बताते हुए सांसद के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने को कहा था।

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