Delhi Congress Politics News: नेताजी ने ऐसा क्या कहा जो भरी मीटिंग में उतर गए कांग्रेसियों के चेहरे
Delhi Congress Politics News आने वाले चुनाव में कांग्रेस चुनाव में बहुत अच्छा प्रदर्शन करेगी। लेकिन प्रदेश उपाध्यक्ष मुदित अग्रवाल इससे कतई सहमति नहीं रखते। आदर्श नगर जिला कांग्रेस कमेटी की एक बैठक में उन्होंने सभी को खूब आइना दिखाया।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। दिल्ली की सियासत में हाशिए पर चल रही कांग्रेस के नेताओं का आत्मविश्वास यूं तो देखते ही बनता है। नहीं के बराबर जनाधार होने पर भी यही कहते नजर आते हैं कि जनता आप और भाजपा दोनों से परेशान है। कांग्रेस चुनाव में बहुत अच्छा प्रदर्शन करेगी। लेकिन प्रदेश उपाध्यक्ष मुदित अग्रवाल इससे कतई सहमति नहीं रखते। आदर्श नगर जिला कांग्रेस कमेटी की एक बैठक में उन्होंने सभी को खूब आइना दिखाया। बिना किसी लाग लपेट, उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा, किसी खुशफहमी में न रहें। हम चुनाव नहीं जीत रहे। हमारे पास न चेहरा है और न संगठन। हमारे नेता ऐसे हैं जो कार्यकर्ताओं का फोन तक नहीं उठाते। चुनाव आता है तो टिकट कोई और ले जाता है जबकि काम करने वाला काम ही करता रह जाता है। सत्ता न होते हुए भी अकड़ कम नहीं होती। कड़वे सच पर तालियां बजते देख मंचासीन लोग भी बगले झांकने लगे।
अपने ही दिग्गज को भूले दिल्ली के कांग्रेसी
पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ पार्टी नेता आस्कर फर्नांडिस जब जीवित थे तो कई बार प्रदेश कार्यालय आए। विभिन्न चुनावों में उन्होंने दिल्ली के प्रत्याशियों की मदद भी की। लेकिन जब वे अंतिम सफर पर निकले तो किसी न उनके लिए श्रद्धांजलि के दो शब्द भी नहीं कहे। भारतीय युवा कांग्रेस कार्यालय में जहां उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर दो मिनट का मौन रखा गया वहीं युवा कांग्रेस अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी और प्रदेश कांग्रेस के एक पूर्व पदाधिकारी ओमप्रकाश बिधूड़ी के संक्षिप्त वक्तव्य के अलावा कहीं से उन्हें स्मरण किए जाने की जानकारी नहीं मिली। बहुत से कांग्रेसियों में यह चर्चा का विषय भी रहा कि जो नेता अपने दिग्गज तक को याद नहीं रखते, उनसे कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलने की उम्मीद कैसे की जा सकती है! पार्टी नेताओं का यही रवैया उन्हें न केवल जनता बल्कि कार्यकर्ताओं से भी दूर करता जा रहा है। काश, कोई इनकी सोच बदल पाए!
नहीं छोड़ रहे मठाधीशी
दिल्ली कांग्रेस के अधिकांश वरिष्ठ नेता- चाहे वे पूर्व विधायक हों या पूर्व सांसद, प्रदेश कार्यालय से दूरी बनाकर चल रहे हैं। न संगठन के लिए कुछ कर रहे हैं और न ही नगर निगम चुनाव के लिए उनका कोई योगदान नजर आ रहा है। विडंबना यह कि सक्रिय न रहते हुए भी अपने- अपने निर्वाचन क्षेत्र में अपनी मठाधीशी बनाए रखना चाहते हैं। अगर संगठन की ओर से वहां किसी और को जिम्मेदारी दे दी जाए या फिर कार्यकर्ताओं संग बैठक भी रख ली जाए तो ये नेता ऐसे हंगामा करते हैं कि जैसे संबंधित सीट इनकी पैतृक है और वहां किसी को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। प्रदेश स्तर से यह शिकायत शीर्ष स्तर तक की जा चुकी है, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। प्रदेश नेतृत्व और वरिष्ठ नेताओं के बीच बनी इस खाई का खामियाजा कार्यकर्ता भुगत रहे हैं। किसी को कोई सियासी भविष्य नजर नहीं आ रहा।