दिल्ली के अस्पतालों में बनाए जा सकते हैं चाइल्ड फ्रेंडली रूम, होंगी ये 9 खूबियां

दिल्ली बाल आयोग की पूर्व सदस्य रीता सिंह के मुताबिक अस्पतालों में बच्चों को अनुकूल वातावरण दिए जाने की बहुत जरूरत है।

By JP YadavEdited By: Publish:Fri, 24 Jul 2020 07:17 PM (IST) Updated:Sat, 25 Jul 2020 07:17 AM (IST)
दिल्ली के अस्पतालों में बनाए जा सकते हैं चाइल्ड फ्रेंडली रूम, होंगी ये 9 खूबियां
दिल्ली के अस्पतालों में बनाए जा सकते हैं चाइल्ड फ्रेंडली रूम, होंगी ये 9 खूबियां

नई दिल्ली [रीतिका मिश्रा]। अपराध का शिकार हुए नाबालिग बच्चे अक्सर इलाज के लिए अस्पताल में डॉक्टरों और इलाज की प्रक्रिया को देखकर डर जाते हैं। दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने अस्पतालों में ऐसे बच्चों के लिए अनुकूल कमरे (चाइल्ड फ्रेंडली रूम) की जरूरत महसूस की है। इसे देखते हुए एम्स के डॉक्टरों की मदद से सिफारिशें तैयार कर स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय को भेजी गई हैं। आयोग के मुताबिक, जो सिफारिशें भेजी गई हैं उसमें प्रमुखता से इस बात को रखा गया है कि अपराध के शिकार बच्चों को दिल्ली सकार के सभी अस्पतालों में अनूकूल वातावरण मिले और उनके अनुकूल कमरे तैयार किए जाएं।

आयोग की पूर्व सदस्य रीता सिंह के मुताबिक, आयोग इसके लिए पिछले कई समय से तैयारी कर रहा था। पहले आयोग पूरे अस्पताल को चाइल्ड फ्रेंडली बनाने पर विचार कर रहा था, लेकिन जमीरी स्तर पर इसकी कम संभावना को देखते हुए अस्पताल के कुछ कमरों या हिस्सों को चाइल्ड फ्रेंडली बनाने की योजना बनाई गई। उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय को जो सिफारिशें भेजी गई हैं उनमें बच्चों की जरूरतों के कई पहलुओं का ध्यान रखा गया है। आयोग की पूर्व सदस्य रीता सिंह ने बताया कि जो बच्चा भी 18 वर्ष से कम की आयु का है, उसको भी इस सुविधा का लाभ मिल सकता है।

अस्पतालों में मौजूद हेल्प डेस्क भी हो बच्चों के अनुकूल

स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय को भेजी गई सिफारिशों में लिखा गया है कि हर अस्पताल में एक ऐसी हेल्प डेस्क भी मौजूद हो, जिसमें बच्चे व अभिभावक को ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़े। बहुत ही आराम से बच्चों के इलाज से जुड़ी रिपोर्ट व अन्य चीजें उनके अभिभावकों या केयर टेकर को मिल जाएं। वहीं, हेल्प डेस्क में मौजूद व्यक्ति संचार में अच्छी तरह से पारंगत होना चाहिए। साथ ही आवश्यकता पड़ने पर प्रशासनिक अधिकारियों से बात कर भी अभिभावकों की चिंता को दूर करे। दिल्ली बाल आयोग की पूर्व सदस्य रीता सिंह के मुताबिक, अस्पतालों में बच्चों को अनुकूल वातावरण दिए जाने की बहुत जरूरत है। अक्सर बच्चे इलाज की प्रक्रिया के समय गुमसुम से रहते हैं या घर जाने के लिए रोते हैं तो ऐसे में अगर उन्हें अस्पताल में ही घर जैसा माहौल मिलेगा तो वो इलाज कराने से कतराएंगे नहीं।

सिफारिश में सुझाए बिंदु कमरा ऐसी जगह बने जहां पर्याप्त शुद्ध हवा, पानी, वॉशरूम व रेस्ट रूम की सुविधा हो। जिसमें सभी आरामदायक सुविधाओं के साथ कम से कम तीन बेड, साइड मेज और तीन कुर्सी हो।  कमरे में आस-पास ऐसे पोस्टर लगे हों या पेंटिंग बनी हो जो बच्चों को रचनात्मक तरीके से उनके मौलिक अधिकारों के बारे में जागरूक करे। कमरे की दीवारों की थीम बाल अधिकार, जंगल या सफारी पार्क, समुद्र, अंतरिक्ष या खगोलीय दुनिया, स्वास्थ्य गतिविधियां, प्रकृति और इंटरएक्टिव प्ले आधारित पर हो।  प्रतीक्षालय में एक मछलीघर, किताबें, अखबार व मैगजीन हो। चंपक, पंचतंत्र व ब्रेल लिपि की किताब हों।  कला के शौकीन बच्चों के लिए एक अलग कोना निर्धारित हो जहां हर तरह के रंग, पेंसिल, रबर, पेपर आदि उपलब्ध हो।  एक बुलेटिन बोर्ड भी हो जिसमें बच्चों द्वारा बनाई आर्ट को भी लगाया जा सके।  कमरे में हेडफोन उपलब्ध होना चाहिए, ताकि बच्चे संगीत और कुछ लोकप्रिय कहानियां सुन पाएं।  खुशबूदार पौधे लगे हों, जिनसे वातावरण सुंगधित हो उठे।

chat bot
आपका साथी