दैनिक जागरण संस्कारशाला : बच्चों ने सीखा आत्मसंयम का पाठ

दरियागंज स्थित एचएमडीएवी सीनियर सेकेंड्री स्कूल में अॉनलाइन माध्यम से प्रधानाचार्य रमा कांत तिवारी ने दैनिक जागरण के 28 अक्टूबर के अंक में आत्मसंयम विषय पर प्रकाशित कहानी मौसी आ गई सुनाई। इसके बाद बच्चों को बताया गया कि आत्मसंयम कितना जरूरी है।

By Neel RajputEdited By: Publish:Thu, 29 Oct 2020 06:20 PM (IST) Updated:Thu, 29 Oct 2020 06:20 PM (IST)
दैनिक जागरण संस्कारशाला : बच्चों ने सीखा आत्मसंयम का पाठ
दैनिक जागरण संस्कारशाला के 28 अक्टूबर के अंक में छात्र

नई दिल्ली [रीतिका मिश्रा]। बच्चों में नैतिक शिक्षा देने के लिए दैनिक जागरण पिछले कई वर्षों से संस्कारशाला का आयोजन करता आ रहा है। इस बार कोरोना महामारी के चलते ये आयोजन अॉनलाइन ही आयोजित किया जा रहा है। शिक्षक संस्कारशाला से जुड़कर छात्रों को नैतिकता का पाठ पढ़ा रहे हैं। वहीं, कई स्कूलों में इसे लेकर अॉनलाइन कार्यशाला भी आयोजित कराई जा रही है। साथ ही संस्कारशाला में विभिन्न विषयों पर प्रकाशित कहानी को अॉनलाइन कार्यशाला के दौरान प्रधानाचार्य पढ़ कर सुना रहे हैं और इस दौरान छात्रों से कहानी से जुड़े सवाल-जवाब भी कर रहे हैं। इसी कड़ी में दरियागंज स्थित एचएमडीएवी सीनियर सेकेंड्री स्कूल में अॉनलाइन माध्यम से प्रधानाचार्य रमा कांत तिवारी ने दैनिक जागरण के 28 अक्टूबर के अंक में आत्मसंयम विषय पर प्रकाशित कहानी मौसी आ गई सुनाई।

कहानी सुनाने के बाद उन्होंने छात्रों को बताया कि जीवन में सफल होने के लिए आत्मसंयम कितना जरुरी है। उन्होंने छात्रों को मानसिक व शारीरिक आत्मसंयम के बारे में भी बताया। इसके साथ ही उन्होंने छात्रों को बताया कि किस प्रकार कोरोना के चलते शिक्षा प्रणाली अॉनलाइन माध्यम पर ही निर्भर रह गई है।

उन्होंने छात्रों को उदाहरण देते हुए बताया कि किस प्रकार अॉनलाइन शिक्षण व्यवस्था सभी के लिए नई थी। सभी इससे अनजान थे। छोटी कक्षा के छात्रों को तो तकनीक की भी कम जानकारी थी। अक्सर इंटरनेट का नेटवर्क खराब रहता था, कई छात्रों के पास तो स्मार्टफोन भी नहीं थे। अॉनलाइन कक्षा से जुड़ने में कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। लेकिन फिर भी किसी ने हार नहीं मानी और एक बार फिर से सभी शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों ने आत्मसंयम का परिचय देते हुए अॉनलाइन माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ने की कोशिश की और हर परेशानी का मिलकर सामना किया।

उन्होंने कहा आज भी शायद कुछ इन कक्षाओं से न जुड़ पाएं हो लेकिन बार-बार की गई कोशिश से काफी हद तक सफलता मिली है। उन्होंने कहा कि कहीं न कहीं इसी कोशिश के बीच एक-दूसरे की मदद करते हुए छात्रों ने परोपकार को भी जाना है। वहीं, उन्होंने छात्रों से मौसी आ गई कहानी से जुड़े कुछ सवाल भी पूछे और उनके जवाब उत्तर-पुस्तिका में लिखने के भी कहा।

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