दिल्ली : डीडीए के पार्कों की देखरेख करने वाले ठेकेदारों को अभी भी लॉटरी का सहारा

अब ठेकेदारों को डीडीए के कार्यालय में आकर आवेदन करना होता है। जो भी ठेकेदार पार्कों की देखरेख करना चाहता है ऐसे पांच से दस ठेकेदारों से एक ही रेट मंगाए जाते हैं। फिर उनके नाम की पर्ची डाली जाती है जिस ठेकेदार का नाम की पर्ची निकलती है।

By Neel RajputEdited By: Publish:Sun, 25 Oct 2020 09:24 AM (IST) Updated:Sun, 25 Oct 2020 09:24 AM (IST)
दिल्ली : डीडीए के पार्कों की देखरेख करने वाले ठेकेदारों को अभी भी लॉटरी का सहारा
दो साल में बदली डीडीए पार्कों के ठेकेदारों के चयन की प्रक्रिया

नई दिल्ली [बिरंचि सिंह]। अब जबकि सरकारी से लेकर गैर सरकारी संस्थाएं निर्माण व रखरखाव संबधित कार्यों को ठेके पर देने के लिए ऑनलाइन आवेदन मंगाती है। जबकि, बगैर टेंडर जारी किए हुए वर्क आर्डर की प्रक्रिया पर भी विराम लग चुका हैं। ऑनलाइन आवेदन के जरिए कम से कम राशि में काम को पूरा करनेवाले ठेकेदार को काम आबंटित भी किया जा रहा है। वहीं अभी भी दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) अपने पार्कों के देख रेख करने के लिए जिस ठेकेदार को काम सौंप रही है उस ठेकेदार का अभी भी चयन लॉटरी के माध्यम से कर रही है। हालांकि, दो साल पहले डीडीए भी पार्कों को रख रखाव के लिए ऑनलाइन आवेदन मांगती थी और ठेकेदारों को ऑनलाइन ही ठेका दिया जाता था। लेकिन इन दाे वर्षों के दौरान ऑनलाइन आवेदन मांगना बंद किया जा चुका है। अब ठेकेदारों को डीडीए के कार्यालय में आकर आवेदन करना होता है। जो भी ठेकेदार पार्कों की देखरेख करना चाहता है ऐसे पांच से दस ठेकेदारों से एक ही रेट मंगाए जाते हैं। फिर उनके नाम की पर्ची डाली जाती है जिस ठेकेदार का नाम की पर्ची निकलती है। उसे ठेका दे दिया जाता है।

इन दिनों रोहिणी और द्वारका में पार्कों को ठेका देने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इस बार भी यही प्रक्रिया अपनाई जानी तय मानी जा रही है। दैनिक जागरण को मिले रिकार्ड के मुताबिक डीडीए के जो ठेकेदार पार्कों के देखरेख करने को इच्छुक होता है उसे कार्यालय में आकर आवेदन करने से लेकर रेट डालने और लॉटरी निकालने की तिथि की घोषणा डीडीए के अधिकारी करते हैं। जिन ठेकेदारों को लॉटरी के माध्यम से काम मिल जाता है वो अपने आपको भाग्यशाली मानता है जिसे काम नहीं मिलता वह अपने भाग्य को कोसता रहा है। चूंकि, ठेकेदारों में आपसी स्पर्धा नहीं होती इसलिए डीडीए को राजस्व भी नहीं मिलता। दैनिक जागरण से बातचीत में डीडीए द्वारका में बागवानी विभाग के उप-निदेशक सहीराम विश्नोई का कहना है कि लॉटरी प्रणाली पिछले दो साल से लागू है। इसमें अभी तक कोई बदलाव नहीं किया गया है।

इनका कहना है कि चूंकि, दिल्ली के कामगारों को न्यूनतम दिहाड़ी दी जानी तय होती है इसलिए ठेकेदारों को उतनी ही राशि का जिक्र आवेदन में करना होता है। इसलिए एक निश्चित राशि भरने को कहा जाता है। ठेकेदाराें को इतनी ही दीहाड़ी पर कामगारों से काम लेना होता है। रही बात ठेकेदारों की तो उन्हें काम कराने के एवज में 15 फीसद रकम दिया जाता है। सहीराम विश्नोई का कहना है कि यह राजस्व वसूली का जरिया नहीं है। लॉटरी में पूरी पारदर्शिता होती है। ठेके देने के लिए अधिकृत अधिकारी से ऊपर के अधिकारी के समक्ष उनके कार्यालय मेंं वीडियाे रिकार्डिंग होती है। कोई ठेकेदार आए या न आए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

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