Career In Archeology: देश की सभ्यता और संस्कृति को तलाशने का सुनहरा अवसर, सैलरी भी है आकर्षक

Career In Archeology प्राचीन सभ्‍यताओं और उनसे जुड़ी संस्‍कृति को जानने में दिलचस्‍पी रखते हैं तो इतिहास के अलावा आर्कियोलाजी यानी पुरातत्‍व विज्ञान का अध्‍ययन करना भी रोचक हो सकता है। अमृत महोत्‍सव वर्ष में अपने देश को जानना आपके भीतर स्‍वाभिमान का संचार करने में भी सहायक होगा...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 01 Sep 2021 11:33 AM (IST) Updated:Wed, 01 Sep 2021 12:10 PM (IST)
Career In Archeology: देश की सभ्यता और संस्कृति को तलाशने का सुनहरा अवसर, सैलरी भी है आकर्षक
पुरातत्‍वविद बनकर आकर्षक करियर के रूप में अपनी पहचान बना सकते हैं।

नई दिल्‍ली, अंशु सिंह। Career In Archeology धरती के गर्भ में न जाने कितनी ही सभ्यताओं के अवशेष दबे पड़े हैं,जिनके बारे में किसी को मालूम नहीं होता, जब तक कि पुरातत्वविद् उत्खन्न नहीं करते। जैसे मिस्र के लक्सर शहर के पास तीन हजार वर्ष पूर्व ‘सोने का शहर’ हुआ करता था, जो इतिहास में कहीं खो गया था। लेकिन इसी वर्ष अप्रैल के महीने में पुरातत्व विशेषज्ञों के एक दल ने उसे ढूंढ़ निकाला। अगर आपको भी इतिहास को खंगालने का शौक है, पौराणिक या प्राचीन काल की सभ्‍यता-संस्‍कृति को जानना और उसे दुनिया के सामने लाना चाहते हैं, तो पुरातत्व विज्ञान अर्थात् आर्कियोलाजी के क्षेत्र में करियर एक बेहतर विकल्प हो सकता है।

क्या है आर्कियोलाजी: आर्कियोलाजी या पुरातत्व विज्ञान के तहत मौजूदा साक्ष्यों के आधार पर इतिहास की प्रामाणिक सच्चाई उजागर की जाती है। आर्कियोलाजी में मानव विज्ञान का भी अध्ययन किया जाता है, जिसके तहत प्राचीन मानव संस्कृति के बारे में विस्तृत जानकारी एकत्र की जाती है। आर्कियोलाजिस्ट प्राचीन मानव के सांस्कृतिक आचार-व्यवहार को व्याख्यायित करते हैं। इसके लिए वे पुरानी सभ्यताओं द्वारा छोड़ी गई चीजों और खंडहरों, उनकी गतिविधियों, व्यवहार आदि का अध्ययन करते हैं। मसलन प्राचीन सिक्के, बर्तन, चमड़े की किताबें, भोजपत्र पर लिखित पुस्तकें, शिलालेख, मिट्टी के नीचे दफन शहरों के खंडहर या फिर पुराने किले, मंदिर, मस्जिद और हर प्रकार के प्राचीन अवशेष, वस्तुओं आदि का अध्ययन आर्कियोलाजी के अंतर्गत आता है। ऐसे में एक आर्कियोलाजिस्ट प्राचीन भौतिक अवशेषों की खोज, उनका अध्ययन/परीक्षण करते हैं और फिर अपने तार्किक निष्कर्ष के आधार पर इतिहास की व्याख्या प्रस्तुत करते हैं। इस प्रक्रिया से जहां एक ओर दुनिया को इतिहास की सही जानकारी प्राप्त होती है,वहीं अंधविश्वास और गलतफहमियों का निपटारा भी इस प्रकार की महत्वपूर्ण पुरातात्विक खोजों से संभव हो पाता है।

आगे बढ़ने के लिए चाहिए धैर्य: जो युवा आर्कियोलाजी में भविष्य बनाना चाहते हैं, उसके लिए उनके भीतर कला की समझ और धैर्य होना चाहिए। अक्सर ऐसा होता है कि एक परियोजना में पुरातत्वविद के रूप में प्रयोगशालाओं और उत्खनन स्थलों पर कई-कई दिन और घंटे लग सकते हैं। इसी तरह, किसी प्रोजेक्ट पर काम करते हुए लंबा समय लग सकता है। ऐसे में आपको धैर्य की बहुत आवश्यकता होती है, क्योंकि जब तक आपके भीतर सब्र नहीं होगा, आप आगे नहीं बढ़ सकेंगे। कला की समझ और उसकी पहचान भी आपको दूसरों से अलग करेगी। आर्कियोलाजी एक दिलचस्प विषय है। लेकिन इसमें चुनौतियों से निपटने के लिए अच्छी विश्‍लेषणात्मक क्षमता, तार्किक सोच, कार्य के प्रति ईमानदारी जैसे गुण होने चाहिए। आज तकनीक के दौर में इस क्षेत्र में आगे जाने के लिए कम्युनिकेशन और आइटी स्किल की भी जरूरत पड़ती है।

विशेषज्ञता हासिल करने से मिलेगी मदद: देश के अधिकतर संस्थानों में आर्कियोलाजी में पोस्ट ग्रेजुएट स्तर के कोर्स उपलब्ध हैं। किसी भी स्ट्रीम में ग्रेजुएशन करने के बाद डिग्री हासिल कर सकते हैं। हालांकि कुछ संस्थानों में आर्कियोलाजी की पढ़ाई ग्रेजुएशन लेवल पर भी होती है। कई संस्थांन एक वर्षीय डिप्लोमा कराते हैं। अभ्यर्थी इसी विषय में एमफिल या पीएचडी कर सकते हैं। तीन वर्षीय बीए (आर्कियोलाजी) की डिग्री के लिए 12वीं स्तर पर एक विषय के रूप में इतिहास की पढ़ाई जरूरी है। अधिकतर संस्थान अपनी प्रवेश प्रवेश परीक्षा आयोजित कराते हैं, जिनमें स्टूडेंट़स को मेरिट लिस्ट के अनुसार प्रवेश दिया जाता है। वहीं, कुछ संस्थानों में ग्रेजुएशन के अंक के आधार पर भी प्रवेश दिया जाता है। आर्कियोलाजी के तहत कई अन्य शाखाएं हैं, जिनमें विशेषज्ञता प्राप्त कर अपनी रुचि के अनुसार क्षेत्र चुन सकते हैं-

आर्कियोबाटनी : इसमें पेड़-पौधों के अवशेष, प्राचीन काल की कृषि व्यवस्था, लोगों के खानपान और जलवायु आदि का अध्ययन किया जाता है।

आर्कियोजुलाजी : इसमें पशुओं के अवशेष, उनके स्वास्थ्य और शिकार से जुड़ी प्रथाओं के बारे में पढ़ाई होती है।

एनवायर्नमेंटल आर्कियोलाजी : इसमें प्राचीन काल के समाज पर पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन होता है।

अवसर हैं भरपूर: भारत का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत काफी समृद्ध है, इसलिए यहां नयी पुरातात्विक परियोजनाओं पर काम करने के लिए योग्य आर्कियोलाजिस्ट की मांग लगातार बनी रहती है। सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में काम कर सकते हैं। वैसे,सरकारी क्षेत्र में अपेक्षाकृत अधिक अवसर हैं। आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया के अलावा देश-विदेश में ऐसे बहुत से पुरातत्व संबंधी संस्थान हैं, जहां निदेशक, शोधकर्ता, सर्वेक्षक और आर्कियोलाजिस्ट, असिस्टेंट आर्कियोलाजिस्ट आदि पदों पर कार्य कर सकते हैं। इसके अलावा, आल इंडिया काउंसिल आफ कल्‍चरल रिलेशंस (आइसीसीआर), इंडियन काउंसिल फार हिस्टारिकल रिसर्च (आइसीएचआर), डिफेंस सर्विसेज, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संस्‍कृति विभाग, सांस्‍कृतिक केंद्रों और विदेश मंत्रालय में भी नियुक्तियां होती हैं। अंतरराष्‍ट्रीय स्त्तर पर पुरातत्वविदों को उत्खनन परियोजनाओं पर काम करने का अवसर मिलता है। जो अकादमिक क्षेत्र में जाना चाहते हैं, वे अपनी उच्‍च योग्‍यता, अनुभव और विशेषज्ञता के आधार पर व्याख्याता, प्रोफेसर बन सकते हैं।

प्रमुख संस्थान

- गुरु गोंविद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली

www.ipu.ac.in/

-उत्कल यूनिवर्सिटी, भुवनेश्वर

http://www.utkaluniversity.ac.in

-आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया, नई दिल्ली

www.asi.nic.in/

-इंडियन काउंसिल आफ हिस्टारिकल रिसर्च, नई‍ दिल्ली

www.ichr.ac.in/

-बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वाराणसी

www.bhu.ac.in/

-कर्नाटक यूनिवर्सिटी, कर्नाटक

www.kud.ac.in/

-अवध प्रताप सिंह यूनिवर्सिटी, मध्य प्रदेश

www.apsurewa.ac.in/

-डेक्कन कालेज, पुणे

https://www.dcpune.ac.in/dept-archaeology.php

पुरातत्व विज्ञान में बढ़ी रुचि: वाराणसी बीएचयू की प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्वविज्ञान प्रो. (डा) पुष्पलता सिंह ने बताया कि आज जब देश आजादी के 75वें वर्ष अमृत महोत्‍सव मना रहा है, ऐसे में यह देखना काफी सुखद है कि युवा पीढ़ी आर्कियोलाजी में काफी रुचि ले रही है। खुद को अधिक से अधिक कौशलयुक्‍त बनाने के लिए वे विदेश से शार्ट टर्म कोर्सेज भी कर रहे हैं। पुरातत्व विज्ञान में संभावनाएं भी अपार हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद म्यूजियम, आर्ट गैलरियों, विदेश मंत्रालय के इतिहास विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार, विश्वविद्यालयों आदि में कार्य करने के अच्छे अवसर हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) भी युवाओं के लिए कोर्स संचालित करने के साथ ही उन्हें दो वर्ष की ट्रेनिंग देता है। इसके उपरांत यूपीएससी द्वारा एएसआइ व राज्य पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग में असिस्टेंट या टेक्निकल आर्कियोलाजिस्ट के पद पर भर्तियां की जाती हैं। इन दिनों विभिन्न संस्थानों द्वारा जाब ओरिएंटेड डिप्लोमा कोर्स भी संचालित किए जा रहे हैं। म्यूजियम में सीधी नियुक्तियां होती हैं, जबकि नेट क्वालिफाई करने के बाद अभ्यर्थी जूनियर रिसर्च फेलो एवं सीनियर रिसर्च फेलो बन सकते हैं। उन्हें लेक्चरशिप (असिस्‍टेंट प्रोफेसर) मिल सकती है।

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