Byju को दुनिया का शीर्ष एजुकेशन ब्रांड बनाने का है सपना, आनलाइन एजुकेशन के जरिये गांव-गांव तक पहुंचाने की कोशिश

भारत एक विशाल देश है और यहां स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या भी विश्व में सबसे ज्यादा है। हम अभी सिर्फ ऊपरी सतह तक पहुंच सके हैं। जहां तरक्की की सीढ़ी चढ़ने के लिए शिक्षा बहुत अहम है वहां यह क्षेत्र काफी उपेक्षित रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 01:05 PM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 01:21 PM (IST)
Byju को दुनिया का शीर्ष एजुकेशन ब्रांड बनाने का है सपना, आनलाइन एजुकेशन के जरिये गांव-गांव तक पहुंचाने की कोशिश
बायजू अपनी कंपनी को दुनिया का शीर्ष एजुकेशन ब्रांड बनाना चाहते हैं।

नई दिल्‍ली, अंशु सिंह। आनलाइन लर्निंग के क्षेत्र में देश की पहली 'डेकाकार्न' (10 बिलियन डालर) कंपनी में शुमार हो चुकी है ‘बायजू’। केरल के सामान्य पृष्ठभूमि से आने वाले इसके सह-संस्थापक बायजू रविंद्रन का उद्देश्य शिक्षा का अधिकाधिक प्रसार करना है,ताकि सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के एवं गरीब तबके के बच्चों को भी गुणवत्तापरक शिक्षा मिल सके। इसके लिए इन्होंने देश के 22 राज्यों के 40 स्वयंसेवी संस्थानों से पार्टनरशिप की है।

वर्ष 2025 तक ये पांच लाख बच्चों तक क्वालिटी एजुकेशन पहुंचाने का इरादा रखते हैं। वह मानते हैं कि कोविड के बाद की दुनिया में शिक्षा का एक मिश्रित रूप देखने को मिलेगा, जिसमें आफलाइन के साथ आनलाइन लर्निंग को भी उतनी ही प्राथमिकता दी जाएगी। स्वयं को पहले एक शिक्षक और फिर एक उद्यमी मानने वाले बायजू अपनी कंपनी को दुनिया का शीर्ष एजुकेशन ब्रांड बनाना चाहते हैं।

-वैश्विक महामारी के दौरान एडुटेक कंपनियों ने बच्चों से जुड़े रहने के लिए इनोवेटिव तरीके आजमाए। आप इसे किस तरह से देखते हैं?

शिक्षा में तकनीक के प्रयोग ने बच्चों के पढ़ने-लिखने के साथ शिक्षकों के पढ़ाने के तरीके को भी बदल दिया है। महामारी के दौरान आनलाइन शिक्षा मुख्यधारा में शामिल हो गई। इससे यह भी सच सामने आया कि प्रत्येक छात्र के पास शिक्षा ग्रहण करने या कुछ सीखने की अपनी एक अनोखी प्रवृत्ति होती है, जिसे ई-लर्निंग के माध्यम से और धार दिया जा सकता है। मैं मानता हूं कि कोविड के बाद की दुनिया में शिक्षा का एक मिश्रित रूप देखने को मिलेगा, जिसके लिए हमें और भी इनोवेशन करने होंगे। पारंपरिक शिक्षा (वन टु मेनी अप्रोच) से ऊपर उठकर एकल अनुभवों (वन आन वन) पर जोर देना होगा, जिससे स्टूडेंट्स को आमने-सामने बिठाकर पढ़ाने के अलावा उन्हें डिजिटल दुनिया से भी जोड़ा जा सके। भविष्य की पाठशाला में टेक्नोलाजी की मुख्य भूमिका होगी, जो छात्रों को परोक्ष की बजाय प्रत्यक्ष शिक्षा पर बल देगी। इससे छात्रों का सशक्तीकरण हो सकेगा। हां, स्कूलों की महत्ता इसमें कहीं से कम नहीं होगी। लेकिन आनलाइन प्लेटफार्म की मदद से बच्चे अपनी बुनियाद एवं कांसेप्ट्स को सुदृढ़ कर सकेंगे। वे घर बैठे संपूर्णता में शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे।

-इस दौरान बायजू द्वारा किस प्रकार की पहल की गई?

कोविड के कारण जब स्कूलों एवं शैक्षिक संस्थानों को अस्थायी तौर पर बंद करना पड़ा, तब हमारी कोशिश रही कि बच्चों की शिक्षा अनवरत जारी रख सकें। हमने एप के लिए कंटेंट तैयार किया, जो निश्‍शुल्क था। हमने ‘बायजू क्लासेज’ लांच किए, जो एक आनलाइन ट्यूटरिंग प्रोग्राम है। इनके अलावा, हमने मराठी, मलयालम, बांग्ला, कन्नड़ भाषा में प्रोग्राम लांच किए। हमने सोशल स्टडीज को भी अपने लर्निंग प्रोग्राम में शामिल किया। ‘बायजू एजुकेशन फार आल’ इनिशिएटिव के जरिये हम शिक्षा का लोकतंत्रीकरण करना चाहते हैं, ताकि समाज के गरीब तबके के लाखों बच्चों को गुणवत्तापरक शिक्षा मिल सके। ‘गिव प्रोग्राम’ के अंतर्गत हम लोगों को उनके पुराने स्मार्ट डिवाइसेज दान देने के लिए प्रेरित करते हैं। उन डिवाइसेज को रिफर्बिश्ड करने के बाद उसमें बायजू के कंटेंट को अपलोड किया जाता है और इन्‍हें उन बच्चों में वितरित कर दिया जाता है, जिनके पास आनलाइन एजुकेशन प्राप्त करने की सुविधा नहीं है। इस तरह हम वर्ष 2025 तक 5 लाख बच्चों तक पहुंचने का इरादा रखते हैं।

-आनलाइन लर्निंग के अनेक फायदे हैं, लेकिन सुदूर क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी की पहुंच आज भी एक चुनौती है। इसके लिए क्या समाधान हो सकता है?

डिजिटल खाई को भरना एक मुख्य चुनौती रही है। आज भी बहुत कम बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन मिल पा रहा है। टेक्नोलाजी से इस कमी को भरा जा सकता है। स्मार्टफोन से शिक्षा के जरिये हम सुदूर क्षेत्रों के बच्चों को लाभ पहुंचा सकते हैं। बायजू के कंटेंट को एक्सेस करने के लिए हाई बैंडविथ की आवश्यकता नहीं पड़ती है। एसडी कार्ड के जरिये कंटेंट को एक्सेस किया जा सकता है। बच्चे 2जी एवं 3जी नेटवर्क से भी इसका प्रयोग कर सकते हैं।‘सबके लिए शिक्षा’ कार्यक्रम के तहत हम ग्रामीण इलाकों के उन बच्चों तक पहुंचे हैं, जो कोविड के कारण शिक्षा से बिल्कुल महरूम थे। हमारा मकसद ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियों व बच्चों की मदद करना है, जिसके लिए हमने 22 राज्यों के करीब 40 स्वयंसेवी संस्थानों के साथ पार्टनरशिप की है।

-देश में बच्चों की बड़ी संख्या के मद्देनजर क्या आप अपने लक्ष्य तक पहुंचने में कामयाब रहे हैं?

भारत एक विशाल देश है और यहां स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या भी विश्व में सबसे ज्यादा है। हम अभी सिर्फ ऊपरी सतह तक पहुंच सके हैं। जहां तरक्की की सीढ़ी चढ़ने के लिए शिक्षा बहुत अहम है, वहां यह क्षेत्र काफी उपेक्षित रहा है। इसलिए हमारी कोशिश असल जरूरतों को पूरा करने की होती है। स्थापना के बाद से ही हमारा उद्देश्य देश के प्रत्येक हिस्से एवं समुदाय तक गुणवत्तापरक शिक्षा पहुंचाना रहा है। हम वास्तविक एवं इंटरैक्टिव कंटेंट क्रिएट करने पर जोर देते हैं, जिसमें एनिमेशन, गेम आधारित विजुअल का उपयोग किया जाता है। ज्यादा से ज्यादा स्टूडेंट्स तक पहुंचने के लिए हम मेट्रो शहरों के अलावा छोटे शहरों एवं कस्बों तक पहुंचने के लिए क्षेत्रीय भाषाओं में कंटेंट तैयार कर रहे हैं, जिससे बच्चे अपनी मातृभाषा में पढ़ सकें।

-हाल ही में आपने आकाश एजुकेशनल सर्विसेज का अधिग्रहण किया। क्या आफलाइन की तैयारी है?

आकाश एजुकेशनल सर्विसेज लिमिटेड (एईएसएल) परीक्षाओं की तैयारी कराने वाला एक शीर्ष संस्थान रहा है। इसने लाखों बच्चों को सफलता दिलाने में मदद की है। इंटीग्रेटेड टीचिंग मेथडोलाजी, फोकस्ड लर्निंग एनवायरर्नमेंट एवं टेक्नोलाजी आधारित शिक्षा प्रदान करने के लिए यह जाना जाता रहा है। आकाश का जुनून हमारे जैसा ही था। इस पार्टनरशिप के जरिये हम एडुटेक सेगमेंट में नये इनोवेशन करना चाहते हैं। किसी भी अधिग्रहण के पीछे हमारा एक ही सोच होता है, क्या इससे छात्रों का फायदा होगा? हम हमेशा समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं। अगर किसी अधिग्रहण या विलयन से हमारी रणनीति को मजबूती मिलती हो और हम बच्चों के लिए उपयोगी प्रोडक्ट बना पाते हों, तो मैं उस पर गंभीरता से विचार करता हूं। भविष्य में भी यही कोशिश रहेगी।

-बायजू एक डेकाकार्न बन चुका है और आप वैश्विक बाजार में प्रवेश के इच्छुक दिखते हैं। इस दिशा में कैसी तैयारी चल रही है?

हम विश्व के शीर्ष एजुकेशन ब्रांड्स में से एक बनना चाहते हैं। मैं समझता हूं कि एक उद्देश्य के साथ कंपनी शुरू करना आसान होता है, लेकिन उस पर चलते रहना बड़ी चुनौती होती है। आज दुनिया भर में पर्सनलाइज्ड एवं इंगेजिंग लर्निंग कंटेंट की मांग है। ऐसे में वैश्विक विस्तार करने की इच्छा जरूर है। मैं मानता हूं कि छात्रों को इंगेज रखने के लिए मार्केट को एक स्टैंडर्ड एजुकेशन एवं मेथडोलाजी पर काम करना होगा। हाल ही में लांच किए गए ‘बायजू फ्यूचर स्कूल’ के जरिये हम भारत के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, इंडोनेशिया एवं मैक्सिको के बच्चों के लिए मैथ्स एवं कोडिंग जैसे विषयों की वन आन वन लाइव क्लास कराते हैं।

-आप आलोचनाओं को किस प्रकार लेते हैं?

हम निरंतर विकास की राह पर हैं। अभी बहुत कुछ सीखना है। इसलिए स्वास्थ्यवर्धक आलोचना का हमेशा स्वागत करते हैं। हमें गलतियों से सीखने में कोई दिक्कत नहीं है। कई बार हम स्वयं अपने काम की आलोचना करते हैं। ग्राहकों से फीडबैक को गंभीरता से लेते हैं। हमारा मकसद ऐसा प्रोडक्ट तैयार करना है, जो सदियों तक चले। इसलिए निरंतर सुधार लाने का कार्य चलता रहता है।

-आप एक खेलप्रेमी रहे हैं। खेल से सबसे बड़ी सीख क्या मिली है?

मेरे जीवन का अभिन्न अंग रहा है खेल। आज भी समय मिलने पर मैं अपने सहकर्मियों के साथ फुटबाल, बैडमिंटन एवं टेबल टेनिस खेलता हूं। मेरा मानना है कि खेल हमें टीम भावना सिखाती है। इससे हम दबाव एवं तनाव में भी कार्य कर पाते हैं। अपने अग्रेशन या क्रोध को शांत कर पाते हैं। इससे नेतृत्व क्षमता का भी विकास होता है।

-एक सामान्य पृष्ठभूमि से आकर देश की शीर्ष एडुटेक कंपनी का नेतृत्व करने की अपनी इस यात्रा को कैसे देखते हैं?

मैं हमेशा कहता हूं कि मैं शिक्षक पहले हूं, उद्यमी तो बाद में बना। खुद को खुशनसीब मानता हूं कि अपने जुनून के कारण समाज की असल जरूरत को जान सका। बायजू की शुरुआत छात्रों को परीक्षा की तैयारी कराने से हुई थी। एक दशक बाद आज यह एक डिजिटल कंपनी बन चुकी है, जो लाखों छात्रों की मदद कर रही है। आज हमारे 10 करोड़ से अधिक पंजीकृत छात्र हैं। हमारा सालाना पेड सब्सक्रिप्शन करीब 64 लाख है। यह बताता है कि स्टूडेंट बायजू के साथ पढ़ना, सीखना पसंद कर रहे हैं। हम इस गति को बनाए रखना चाहते हैं।

-क्या इस यात्रा में कोई बड़ी बाधा आई? आपना कैसे उसका सामना किया?

स्कूली छात्रों के लिए हमारा पहला आनलाइन प्लेटफार्म था, जिसे तत्काल स्वीकार्यता मिली। लेकिन शुरुआत में अभिभावकों एवं शिक्षकों की मानसिकता को बदलना आसान नहीं था। महामारी ने आनलाइन लर्निंग के प्रति सोच बदला। हमारी खुद की एक रिसर्च बताती है कि करीब 75 फीसद से ज्यादा अभिभावक चाहते हैं कि स्कूल खुलने के बाद भी उनका बच्चा आनलाइन पढ़ता रहे। शिक्षकों का मत भी बदला है, क्योंकि उन्हें खुद टेक्नोलाजी को एडाप्ट करना पड़ा है।

सह-संस्थापक बायजू रविंद्रन

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