Kisan Andolan: समाधान के लिए सरकार और प्रदर्शनकारी दोनों को अपनाना होगा लचीला रुख

प्रदर्शनकारियों को यह समझना होगा कि सड़क बंद करना समस्या के समाधान का तरीका नहीं है। समाधान के लिए सरकार और प्रदर्शनकारी दोनों को लचीला रुख अपनाना होगा। प्रदर्शनकारियों के लिए एक नया कानून होना चाहिए जिससे सड़कों को बाधित करने और ऐसा कोई भी कार्य करने पर प्रतिबंध हो।

By Jp YadavEdited By: Publish:Wed, 22 Sep 2021 10:10 AM (IST) Updated:Wed, 22 Sep 2021 10:10 AM (IST)
Kisan Andolan:  समाधान के लिए सरकार और प्रदर्शनकारी दोनों को अपनाना होगा लचीला रुख
Kisan Andolan: समाधान के लिए सरकार और प्रदर्शनकारी दोनों को अपनाना होगा लचीला रुख

नई दिल्ली [प्रो. संजीव कुमार]। दिल्ली-एनसीआर के गाजीपुर, सिंघु, टीकरी, ढांसा और सिरहौल बार्डर सहित कई रास्ते 10 माह से प्रभावित हैं। इससे लाखों लोगों को परेशानी हो रही है। सबसे ज्यादा वे लोग प्रभावित हो रहे हैं, जो दैनिक आजीविका के लिए उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजधानी के अन्य सीमावर्ती इलाकों से प्रतिदिन दिल्ली आते-जाते हैं। रास्ता खुलवाने के लिए कई बार इन प्रदर्शनकारियों से स्थानीय लोगों की झड़प हो चुकी है। प्रदर्शनकारियों को यह समझना होगा कि सड़क बंद करना समस्या के समाधान का तरीका नहीं है। समाधान के लिए सरकार और प्रदर्शनकारी दोनों को लचीला रुख अपनाना होगा। प्रदर्शनकारियों के लिए एक नया कानून होना चाहिए, जिससे सड़कों को बाधित करने और ऐसा कोई भी कार्य करने पर प्रतिबंध हो। इससे लोगों को असुविधा नहीं होगी।

समाधान के लिए बातचीत जरूरी

सरकार बार-बार बातचीत पर जोर दे रही है। सरकार की ओर से कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर प्रदर्शनकारियों से कई दौर की बातचीत कर चुके हैं। कृषि कानून विरोधियों को जिद का रास्ता छोड़ देना चाहिए। अगर प्रदर्शन करना ही है तो सड़क को छोड़कर किसी मैदान में बैठकर करना चाहिए जिससे लोगों को आजीविका चलाने के लिए आने-जाने में समस्या नहीं होगी। दूसरे देशों में प्रदर्शन की अलग व्यवस्था है। अगर अमेरिका की बात करें तो वहां कभी सड़कों को बंद करके प्रदर्शन नहीं होता है। वहां, इसके लिए स्थान निर्धारित हैं। यहां भी प्रदर्शन के लिए कानून बन जाए तो प्रशासन को भी इसका पालन कराने के लिए अधिकार मिलेगा और लोगों को कोई दिक्कत नहीं होगी। हमारे संविधान में प्रदर्शन का अधिकार दिया गया है। लेकिन, उसमें यह नहीं दिया गया है कि आप प्रदर्शन में सड़क बंद कर दीजिए। इस कानून में इस तरह के प्रविधान जोड़ने की जरूरत है, जिसमें प्रदर्शन के दौरान सड़क को जाम करना पूर्णत: वर्जित हो। साथ ही ऐसा करने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाए। प्रदर्शन के अधिकार में स्थान भी तय होने चाहिए। जैसे दिल्ली में जंतर-मंतर पर अधिकतर प्रदर्शन होते हैं। अन्ना हजारे का इतना बड़ा आंदोलन रामलीला मैदान में हुआ। एक निश्चित स्थान पर होने के कारण किसी को कोई असुविधा नहीं हुई।

कुछ समस्या इस प्रदर्शन के राजनीतिकरण के कारण भी हुई है। कृषि कानून विरोधी प्रदर्शन की वजह से आर्थिक रूप से भी लोगों को नुकसान हो रहा है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि राजस्थान की तरफ से दिल्ली आने वाली बसों को बार्डर बंद होने के कारण करीब 60 किलोमीटर का चक्कर लगाकर दिल्ली आना पड़ता है। इससे डीजल और समय दोनों की अधिक खपत हो रही है। इसका बोझ भी सरकारी खजाने पर पड़ रहा है। इसकी भरपाई करना आसान नहीं है। अमेरिका और ब्रिटेन सहित कई देशों में इस तरह का कानून है कि प्रदर्शन से हुए नुकसान की भरपाई प्रदर्शनकारियों से ही कराई जाती है। लेकिन, हमारे यहां ऐसा कानून नहीं है। किसी भी प्रदर्शन में गुणवत्तापूर्ण नेतृत्व होना चाहिए। प्रदर्शन में ऐसा नहीं है। इसलिए भी यह लोगों के लिए परेशानी का सबब बन रहा है। यह प्रदर्शन सही दिशा में होता तो शायद इसका समाधान भी निकल गया होता। किसानों के पास वैसे भी अपना काम छोड़कर लंबे समय तक प्रदर्शन में बैठने की फुरसत नहीं होती है। राजनीतिकरण के कारण भी यह प्रदर्शन लंबा चल रहा है। लेकिन, सबसे पहले इससे हो रही लोगों की परेशानियों पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

(लेख राजनीति विज्ञान विभाग, डीयू के  प्रोफेसर से राहुल चौहान से बातचीत पर आधारित है) 

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