Coronavirus Vaccine: राहत भरी खबर, कोरोना से ठीक हो चुके लोगों में एक डोज के बाद भी अच्छी एंटीबॉडी
Coronavirus Vaccine इंस्टीट्यूट आफ जिनोमिक एंड इंटिग्रेटिव बायोलाजी (आइजीआइबी) मैक्स अस्पताल सहित चार संस्थानों ने हाल ही में मिलकर एक अध्ययन किया है इसमें कहा गया है कि ठीक हो चुके लोगों में टीके की एक डोज से भी अच्छी एंटीबाडी बनती है।
नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। कोरोना वायरस संक्रमण के नए स्ट्रेन से बच्चे, युवा और नौकरी पेशेवर लोग ज्यादा संक्रमित हो रहे हैं, जो लोग पहले एक बार संक्रमित होकर ठीक हो चुके हैं। उनमें से भी कुछ लोगों में संक्रमण देखा जा रहा है, लेकिन अभी दोबारा संक्रमण के मामले बहुत ज्यादा नहीं देखे जा रहे हैं। यदि किसी को दोबारा संक्रमण हो भी रहा है, तो डॉक्टर कहते हैं कि ऐसे लोगों में बीमारी ज्यादा गंभीर नहीं हो रही है। ऐसे में टीके की मौजूदा उपलब्धता को देखते हुए डॉक्टर टीकाकरण के पात्र लोगों की प्रमुख सूची में बदलाव करने की जरूरत बता रहे हैं। डॉक्टर कहते हैं कि पहले संक्रमित हो चुके लोगों से ज्यादा जरूरी अब तक संक्रमण से बचे हुए लोगों को टीका लगाना है। हालांकि, हाल ही में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के एक अध्ययन में करीब साढ़े चार फीसद लोगों में दोबारा संक्रमण होने की बात कही गई है।
एम्स के कम्युनिटी मेडिसिन के विशेषज्ञ और स्वदेशी टीके के ट्रायल में शामिल रहे डॉ. संजय राय ने कहा कि एक बार जो व्यक्ति संक्रमित हो चुका है। उसे दोबारा वायरस के उसी स्ट्रेन से संक्रमण होने का खतरा न के बराबर है। नए स्ट्रेन का संक्रमण हो सकता है, लेकिन बीमारी की गंभीरता बहुत कम होगी। टीके की तुलना में प्राकृतिक संक्रमण के उत्पन्न रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा बेहतर होती है। टीकाकरण अभियान की शुरुआत होने पर ही कहा था कि अभी टीका इतना नहीं है कि ठीक हो चुके लोगों को भी टीका दिया जाए।
देश में करीब डेढ़ करोड़ लोग कोरोना से पीड़ित हो चुके हैं। हर व्यक्ति को टीके की दो डोज देने का प्रविधान है। यदि संक्रमित होकर ठीक हो चुके लोगों को अभी टीका नहीं दिया जाता तो टीके की करीब तीन करोड़ डोज बचती। इसलिए अभी टीका उन्हें लगाया जाना चाहिए, जिन्हें खतरा ज्यादा है।
सतर्क रहना जरूरी
उन्होंने कहा कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता एक जटिल प्रक्रिया है। यह सिर्फ एंटीबाडी पर निर्भर नहीं करती। शरीर में दो तरह की प्रतिरोधक क्षमता होती है। एक न्यूट्रलाइजिंग एंटीबाडी और दूसरी टी-सेल इम्युनिटी।
कई ऐसे मामले देखे जा रहे हैं, जिन्हें टीका लगने के बाद बहुत अच्छी एंटीबाडी बनी, लेकिन वे कोरोना की मौजूदा लहर में संक्रमित हो गए। वहीं न्यूट्रलाइजिंग एंटीबाडी शून्य होने पर भी यदि टी-सेल इम्युनिटी अच्छी है तो वायरस का संक्रमण होते ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता वायरस के संरचना को याद करके तुरंत एंटीबाडी बनाती है और वायरस को मार देती है। इसलिए एंटीबाडी का कोई ऐसा निश्चित स्तर नहीं है, जिससे सुरक्षित होने का आकलन किया जा सके। कोरोना वायरस से बचाव में टी-सेल इम्युनिटी भी अहम भूमिका निभा रही है। इसलिए एक बार संक्रमित होने के बाद एंटीबाडी का स्तर कम भी है तो इसका यह अर्थ नहीं कि एक बार संक्रमित हो चुका व्यक्ति सुरक्षित नहीं है, लेकिन सतर्कता जरूरी है। मास्क का इस्तेमाल जारी रखना होगा।
वहीं, इंस्टीट्यूट आफ जिनोमिक एंड इंटिग्रेटिव बायोलाजी (आइजीआइबी), मैक्स अस्पताल सहित चार संस्थानों ने हाल ही में मिलकर एक अध्ययन किया है, इसमें कहा गया है कि ठीक हो चुके लोगों में टीके की एक डोज से भी अच्छी एंटीबाडी बनती है। यह शोधन 135 स्वास्थ्य कर्मियों पर किया गया है। इस शोध में शामिल लोगों का टीका लेने के पहले, टीका लगने के सात दिन, 14 दिन व 28 दिन पर ब्लड सैंपल लेकर एंटीबॉडी जांच की गई। इनमें से 44 लोगों में टीका लेने से पहले कोरोना की एंटीबाडी मौजूद थी।
आइजीआइबी के निदेशक डा. अनुराग अग्रवाल ने कहा कि इस शोध में देखा गया कि पहले संक्रमित होकर ठीक हो चुके लोगों में पहली डोज टीका लगने के बाद सात दिन में ही अच्छी एंटीबाडी विकसित हुई, जबकि जिन लोगों में पहले से एंटीबाडी नहीं थी। उनमें से ज्यादातर लोगों में 14 दिन बाद एंटीबाडी विकसित हुई, लेकिन 28वें दिन दोनों वर्ग के लोगों में एंटीबाडी का स्तर करीब बराबर पाया गया।