Career In Astronomy: सितारों की दुनिया का सफर, ऐसे बनाएं एस्ट्रोनामी में करियर; आकर्षक सैलरी
13 जुलाई को मंगल और शुक्र (सबसे चमकीला तारा) ग्रह एक-दूसरे के बेहद नजदीक आ गए जो खगोलीय घटनाओं में रुचि रखने वालों के लिए अनोखा नजारा था। ऐसी रोचक घटनाएं अंतरिक्ष में आए दिन होती रहती हैं।
नई दिल्ली, जेएनएन। चांद-सितारों की दुनिया बचपन से हर किसी को लुभाती रही है, चाहे आम इंसान हो या वर्जिन ग्रुप के संस्थापक रिचर्ड ब्रेनसन या फिर अमेजन के संस्थापक जेफ बेजोस। रिचर्ड ब्रेनसन जहां दो दिन पहले 11 जुलाई को वर्जिन गैलेक्टिक के यूनिटी रॉकेट प्लेन से अंतरिक्ष के किनारे तक गए, वहीं जेफ बेजोस आगामी 20 जुलाई को अंतरिक्ष के सफर पर जाएंगे। यूनिटी 22 में भारतीय मूल की शिरिषा बांदला (आंध्र प्रदेश के गु्ंटूर में जन्मीं) भी गईं जो बचपन से अंतरिक्ष में जाना चाहती थीं।
इन निजी अभियानों से काफी पहले से रूस, अमेरिका आदि देशों द्वारा पिछले कुछ दशकों से अंतरिक्ष के लिए अनवरत अभियान भेजे जाते रहे हैं। यहां तक कि उनके द्वारा अंतरिक्ष में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आइएसएस) तक स्थापित किया गया है, जहां रहकर खगोल विज्ञानी अंतरिक्ष के रहस्यों को उजागर करने के लिए निरंतर शोध कर रहे हैं। इन अभियानों ने बच्चों-किशोरों-युवाओं की अंतरिक्ष और खगोल विज्ञान में दिलचस्पी बढ़ाने में मदद की है। यही कारण है कि तमाम बच्चे-किशोर स्कूली दिनों से ही एस्ट्रोनामी में गहरी रुचि ले रहे हैं। इनमें से कुछ ने तो नये तारों की खोज तक कर दी है, जिसका नामकरण उनके नाम पर किया गया है।
रहस्यों का संसार : नैनीताल के आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) वैज्ञानिक डा. शशि भूषण पाण्डेय ने बताया कि अंतरिक्ष की दुनिया अपने भीतर तमाम रहस्य समेटे हुए है, जिसके बारे में जानने की उत्सुकता इंसान को रहती है। यही कारण है कि अंतरिक्ष विज्ञान हमेशा से बहुत ही रोचक और रोमांचक विषय रहा है। मानव सभ्यता के आरंभ से ही, अंतरिक्ष और खगोलीय पिंडों के प्रति जिज्ञासा और कल्पना के प्रमाण मिलते हैं। हमारे प्राचीन वैज्ञानिक और गणितज्ञ काल गणनाओं के लिए कोरी आंखों के साथ-साथ बांस की नलियों का इस्तेमाल किया करते थे। हमारे पूर्वजों के इस विषय के प्रति ज्ञान और उसकी उपयोगिता के ऐसे अनेक उदाहरण आज भी हैं। दरअसल, काल गणना एवं दिशा ज्ञान के मूल में खगोल विज्ञान का शुरू से अपना महत्व रहा है। लगभग चार शताब्दी पूर्व गैलीलियो गैलिली द्वारा प्रथम दूरबीन का आविष्कार करने के बाद तमाम वैज्ञानिकों एवं गणितज्ञों के अध्ययनों से ब्रह्मांड के उद्भव के संबंध में लोगों की तर्क शक्ति और ज्ञान-विज्ञान में पर्याप्त अभिवृद्धि हुई। खास तौर से पिछली लगभग एक सदी के दौरान विभिन्न खगोलीय प्रेक्षणों एवं कंप्यूटर सिम्यूलेशन के माध्यमों से ब्रह्मांड के उद्भव के संबंध में दिये गए सिद्धांतों से इस क्षेत्र का काफी विकास हुआ।
आधुनिक खोजों ने बढ़ाई चमक : देखा जाए तो आधुनिक खगोल ने भौतिकी एवं खगोलशास्त्र के विभिन्न आयामों को एक नई दिशा दी है। इसके अंतर्गत नित नये खोज व आविष्कार से इस विषय के दायरे में बहुत विस्तार हुआ है। वैसे, ब्रह्मांड एक विस्तृत क्षेत्र है। इसके उद्भव को समझने के लिए ऊर्जा से द्रव्यों का बनना, विभिन्न तत्वों की उत्पति और तारों के जीवन काल से लेकर किसी अन्य ग्रह पर जीवन जैसे बृहद टॉपिक इसके अंतर्गत आते हैं, जिन्हें समझे बगैर ब्रह्मांड को नहीं समझा जा सकता। इन विषयों को समझने के लिए ही इनदिनों अत्यंत उन्नत तकनीकों का प्रयोग कर विद्युत चुंबकीय तरंगों के विभिन्न तरंगदैर्घ्यों पर दूरबीनों द्वारा प्रेक्षण किये जा रहे हैं। गामा, एक्स, पराबैंगनी, दृश्य प्रकाश, अवरक्त, एवं रेडियों तरंगदैर्घ्यों पर विभिन्न प्रकार के प्रयोग किये जा रहे हैं। इन प्रयोगों से खगोलीय पिंडों द्वारा उत्सर्जित प्रकाश के भौतिक कारकों जैसे कि उत्सर्जन, अवशोषण, ध्रुवण, प्रकीर्णन इत्यादि का अध्ययन कर उसके विभिन्न भौतिकी सिद्धांतों का प्रतिपादन किया जा रहा है। हाल ही में अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा लगभग एक शताब्दी पूर्व किये गये गुरुत्व-तरंगों के सैद्धांतिक प्रतिपादन का प्रेक्षणों के माध्यम से की गई खोज खगोल भौतिकी के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुई है। इस खोज से न केवल गैर-विद्युत चुंबकीय ब्रह्मांड को समझने में मदद मिलेगी, बल्कि अन्य आयामों जैसे कि डार्क मैटर/डार्क ऊर्जा को भी बेहतर तरीके से समझा जा सकेगा।
तेजी से बढ़ रही लोकप्रियता : अपनी प्राचीन विरासत के अलावा वर्तमान समय में भी खगोलशास्त्र के क्षेत्र में भारत का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में खगोल भौतिकी के विभिन्न पहलुओं पर किये जा रहे शोध कार्यों को अंतरराष्ट्रीय स्तर सराहना मिल रही है। भारत की यही उपलब्धि उसे विश्व के अग्रणी देशों की पंक्ति में खड़ा करती है। वैसे, देखा जाए, तो पिछले पांच से सात दशकों में देश में खगोलशास्त्र के प्रति उच्च शिक्षा एवं शोध की दिशा में काफी तेजी से विकास हुआ है। इस दौरान विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं शोध संस्थानों की स्थापना हुई। अभी स्नातक, परास्नातक स्तर पर खगोल भौतिकी का पठन-पाठन इसका ताजा उदाहरण है कि इस क्षेत्र की देश में कितनी लोकप्रियता है।
कैसे बनाएं करियर : एस्ट्रोनामी में करियर बनाने के लिए साइंस पृष्ठभूमि का होना जरूरी है। इसके लिए सबसे पहले गणित/भौतिकी/कंप्यूटर विषयों के साथ इंटरमीडिएट पास करना होगा। इसके बाद विज्ञान या तकनीकी विषयों में स्नातक करके और परास्नातक स्तर पर भौतिकी, गणित या कंप्यूटर विषय में दक्षता बढ़ाकर खगोल भौतिकी, खगोलशास्त्र में शोध कार्यों की दिशा में कदम आगे बढ़ाया जा सकता है। खगोलशास्त्र को करियर बनाने के उत्सुक छात्र-छात्राओं को विज्ञान परास्नातक या तकनीकी स्नातक/परास्नातक करने के बाद विभिन्न संस्थानों द्वारा आयोजित पात्रता प्रवेश परीक्षा भी उत्तीर्ण करना होगा। इसके बाद इस क्षेत्र के विभिन्न शोध विषयों में करियर बना सकते हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर एस्ट्रोनामी शोध प्रवेश परीक्षा : एस्ट्रोनामी के क्षेत्र में शोध करने के लिए इच्छुक छात्र-छात्राएं ज्वाइंट एंट्रेंस स्क्रीनिंग टेस्ट यानी जेईएसटी या ज्वाइंट एस्ट्रोनामी प्रोग्राम-जेएपी माध्यम से भी शोध छात्र के रूप में करियर की शुरुआत कर सकते हैं। जेईएसटी के बारे में विस्तृत जानकारी https://jest.org.in/joint-entrance-screening-test तथा ज्वाइंट एस्ट्रोनामी प्रोग्राम के बारे में https://www.physics.iisc.ernet.in/Jap या फिर www.physics.iisc.ernet.in से प्राप्त की जा सकती है।
कहां मिलेंगे प्रतिष्ठापूर्ण अवसर : देश में इस समय खगोल भौतिकी/खगोलशास्त्र में कार्यरत तमाम शोध संस्थाएं (देखें बॉक्स) हैं। इनकी आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर विभिन्न तरह के शोधकार्यों और अवसरों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इनके अलावा विभिन्न विश्वविद्यालयों और शोध संस्थाओं, आइआइटी, आइसर, एनआइटी द्वारा भी अपने-अपने परियोजनाओं और शोध कार्यों के बारे में अलग से रोजगार समाचार तथा अन्य मीडिया माध्यमों से भी खगोलशास्त्र के क्षेत्र में विभिन्न रोजगार अवसरों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई जाती है।
राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (एनईटी) उत्तीर्ण करके भी विश्वविद्यालयों व शोध संस्थाओं द्वारा संचालित विभिन्न परियोजनाओं में अवसर पा सकते हैं। बाद में इसी विषय विशेष में पीएचडी करने के बाद देश-विदेश में पोस्ट-डाक्टोरल फेलोशिप के लिए भी बहुत सारे अवसर उपलब्ध हैं। इसके अलावा, शोध उपाधि हासिल करके विभिन्न शोध संस्थानों और विश्वविद्यालयों में व्याख्याता और प्रोफेसर जैसे पदों पर भी नौकरी पाई जा सकती है। खगोल भौतिकी, खगोलशास्त्र में उच्च उपाधि प्राप्त युवाओं के लिए शोध एवं शैक्षणिक विधाओं के अलावा विभिन्न प्रकार के उद्योगों, कंप्यूटर, साफ्टवेयर डेवलपमेंट, डाटा साइंस जैसे क्षेत्रों में भी रोजगार की असीम संभावनाएं हैं।
प्रमुख शोध संस्थान
आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान, नैनीताल https://www.aries.res.in
भारतीय ताराभौतिकी संस्थान, बेंगलुरु https://www.iiap.res.in
भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु https://www.iisc.ac.in
इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनामी ऐंड एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे http://www.iucaa.in
नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स (टीआइएफआर), पुणे http://www.ncra.tifr.res.in
भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद https://prl.res.in
रमन अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरु https://www.rri.res.in
टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च, मुंबई https://www.tifr.res.in