Delhi Bus Purchase Case: बस खरीद मामले में बढ़ सकती हैं केजरीवाल सरकार की मुश्किलें

Delhi Bus Purchase Case सरकार ने जनवरी में दो कंपनियों को एक हजार बसें खरीदने के लिए ऑर्डर दिए थे। इन कंपनियों ने अब तक बसें तो उपलब्ध नहीं कराई हैं लेकिन इस खरीद में गड़बड़ी के आरोप लगने लगे हैं।

By Jp YadavEdited By: Publish:Tue, 15 Jun 2021 11:05 AM (IST) Updated:Tue, 15 Jun 2021 11:05 AM (IST)
Delhi Bus Purchase Case: बस खरीद मामले में बढ़ सकती हैं केजरीवाल सरकार की मुश्किलें
Delhi Bus Purchase Case: बस खरीद मामले में बढ़ सकती हैं केजरीवाल सरकार की मुश्किलें

नई दिल्ली [संतोष कुमार सिंह]। लो फ्लोर बसों की खरीद के मामले में दिल्ली सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। सरकार ने जनवरी में दो कंपनियों को एक हजार बसें खरीदने के लिए ऑर्डर दिए थे। इन कंपनियों ने अब तक बसें तो उपलब्ध नहीं कराई हैं, लेकिन इस खरीद में गड़बड़ी के आरोप लगने लगे हैं। कहा जा रहा है कि बसों की कीमत से ज्यादा खर्च इनके तीन साल के रखरखाव पर किया जाएगा, जबकि खरीद की शर्तों के मुताबिक तीन साल तक इन बसों के रखरखाव की जिम्मेदारी आपूर्ति करने वाली कंपनी की होनी चाहिए।

इस मामले की जांच के लिए दिल्ली पुलिस की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) ने राज्य सरकार से अनुमति मांगी, लेकिन सरकार की ओर से मंजूरी नहीं दी गई। इस बाबत अब भाजपा विधायक विजेंद्र गुप्ता ने उपराज्यपाल (एलजी) अनिल बैजल को पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने दावा किया है कि बसों की खरीद को लेकर परिवहन विभाग की अंदरूनी जांच में वित्तीय गड़बड़ी का पता चला है। उन्होंने उपराज्यपाल से एसीबी को जांच की जल्द अनुमति दिलाने का अनुरोध किया है।

उपराज्यपाल अनिल बैजल को सोमवार को लिखे पत्र में विजेंद्र गुप्ता ने कहा है कि जनवरी में 890 करोड़ रुपये में एक हजार लो फ्लोर बसें खरीदने के लिए आर्डर दिए गए। इनमें से 700 बसों का आर्डर जेबीएम आटो लिमिटेड और 300 बसों का टाटा कंपनी को दिया गया। बसों की खरीद के लिए किए गए अनुबंध में तीन वर्षों या 2.10 लाख किलोमीटर चलने तक इसके रखरखाव की जिम्मेदारी शामिल थी। इसके बावजूद बसों के रखरखाव के लिए इन्हीं बस कंपनियों को अलग से प्रतिवर्ष 350 करोड़ रुपये का टेंडर दे दिया गया और उसमें तीन साल की वारंटी की अवधि को भी शामिल कर लिया गया। यानी रखरखाव के लिए पहले दिन से ही भुगतान किया जाना है।

विजेंद्र गुप्ता का दावा है कि भाजपा विधायकों की शिकायत का संज्ञान लेकर एसीबी ने जब दिल्ली सरकार के सतर्कता निदेशक को पत्र लिखकर जांच की अनुमति मांगी तो परिवहन विभाग द्वारा मामले की आंतरिक जांच कराई गई। उसमें भी खरीद प्रक्रिया में वित्तीय गड़बड़ी की बात सामने आई है। उनका आरोप है कि सरकार इस मामले को दबाने के लिए एसीबी को जांच की अनुमति नहीं दे रही है। इस मामले में वाट्सएप और ईमेल भेजकर सरकार से पक्ष मांगा गया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष मार्च में 1,250 बसें खरीदने का टेंडर निकाला गया था। उसके बाद 27 नवंबर को दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) की बोर्ड बैठक में बसों की खरीद व रखरखाव का अनुबंध देने का फैसला किया गया। अनुबंध 1,250 की जगह एक हजार बसों की खरीद के लिए हुआ था। गुप्ता के अनुसार, बैठक का विवरण सार्वजनिक नहीं किया गया था। जब भाजपा विधायकों ने विगत आठ मार्च को यह मामला उठाया तो उसी दिन डीटीसी की वेबसाइट पर बैठक का विवरण अपलोड कर दिया गया। इसमें वित्तीय गड़बड़ी की आशंका के मद्देनजर भाजपा विधायकों ने 12 मार्च को एसीबी से शिकायत की थी।

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