Swatantrata ke sarthi: स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए अभिभावकों की आवाज बनीं अपराजिता
अपराजिता बताती हैं कि उनको अक्सर ऐसी शिकायतें मिलती हैं कि स्कूल सीबीएसई व शिक्षा निदेशालय के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं।
नई दिल्ली [रीतिका मिश्रा]। एक निजी स्कूल ने अपराजिता गौतम की बेटी से अनुचित ट्यूशन फीस वसूलने की कोशिश की जिसके खिलाफ उन्होंने 2015 में स्कूल के खिलाफ एक अभिभावक के तौर पर आवाज उठाई। उस समय निजी स्कूल की मनमानी के खिलाफ वे अकेले ही आवाज बुलंद कर रही थीं।
उनकी कोशिश थी कि बच्चों को स्कूलों में सुरक्षित माहौल में शिक्षा मिले, निजी स्कूलों की मनमर्जी खत्म हो, अनाप-शनाप फीस न वसूली जाए। इस तरह के कई मुद्दों को लेकर उनकी मुहिम से आज दिल्ली के कई 382 स्कूलों के अभिभावक जुड़े हैं।
अभिभावकों के हक और बच्चों के शिक्षा के अधिकार के लिए अपराजिता गौतम ने 2017 में दिल्ली अभिभावक संघ की स्थापना की। यह संघ शिक्षा के तमाम पहलुओं पर बच्चों व अभिभावकों का साथ देता है और उनके हक की लड़ाई लड़ता है।
ट्विटर पर शुरू किया बढ़ी हुई फीस के खिलाफ अभियान
सरकार की तरफ से स्कूलों को ट्यूशन फीस लेकर ऑनलाइन पढ़ाई जारी रखने की इजाजत दी गई, लेकिन ज्यादातर निजी स्कूलों ने अभिभावकों पर पूरी फीस भरने का दबाव बनाया। निजी स्कूलों के इस बर्ताव के खिलाफ अपराजिता ने ट्विटर पर स्कूल फीस वेवर (माफी) अभियान शुरू किया जिसमें उनको दिल्ली एनसीआर के कई संगठनों का साथ मिला था।
आरटीआइ बना हथियार
अपराजिता बताती हैं कि उनको अक्सर ऐसी शिकायतें मिलती हैं कि स्कूल, सीबीएसई व शिक्षा निदेशालय के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं। ऐसे मामलों में वे आरटीआइ के जरिये निजी स्कूलों की तरफ से दिशा-निर्देशों के उल्लंघन के संबंध में आंकड़े जुटाती हैं। जब पर्याप्त सुबूत जमा हो जाते हैं तो कार्रवाई के लिए उचित मंच पर शिकायत करती हैं। उन्होंने खुद 20-25 आरटीआइ दाखिल की हैं। इसके अलावा संघ के के अन्य सदस्य भी आरटीआइ दाखिल कर अभिभावकों व छात्रों की मदद करते हैं।
कम किया बस्तों का बोझ
अपराजिता ने बताया कि उन्हें बच्चों के स्वास्थ्य की चिंता हमेशा रहती है। जब भी बच्चों को बस्तों का बोझ उठाए हांफते देखती थीं तो बहुत बुरा महसूस होता था। आखिर में उन्होंने स्कूलों के बाहर जाकर कक्षा एक व दो के छात्रों के बस्ते का बोझ तोलना शुरू किया तो पता चला कि छोटे बच्चों के बस्ते का वजन चार से पांच किलो था। जिसके बाद उन्होंने मामले को गंभीरता से उठाया। उनके इस कदम को हर किसी ने सराहा और तमाम राज्यों के अभिभावक संघों ने भी इस तरह की मुहिम शुरू की जिसका नतीजा यह हुआ कि छोटे बच्चों पर बस्ते का बोझ काफी हद तक कम हो गया।
कानून की किताबें पढ़, खुद रखती हैं अपना पक्ष
अपराजिता के मुताबिक उन्होंने बच्चों को शिक्षा सुरक्षित व सही शिक्षा दिलाने को लेकर जब आवाज बुलंद की उन्हें इस बात की जरूरत महसूस हुई कि जब-तक कानूनी प्रविधानों को खुद नहीं समझेंगी तो मजबूती से अपनी बातें नहीं रख पाएंगी। लिहाजा, उन्होंने खुद ही कानून की किताबें पढऩा शुरू किया।
ईडब्लूएस कोटे पर उठाई अभिभावकों की आवाज
अपराजिता बताती हैं कि निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों (ईडब्लूएस) के लिए निजी स्कूलों में सीटें तय होती हैं, लेकिन निजी स्कूल चालाकी से इन सीटों पर दाखिले पूरे नहीं करते। इसके अलावा जिन छात्रों को दाखिला देते हैं उनके अभिभावकों को कभी किताबों के नाम पर, तो कभी स्कूल ड्रेस के नाम पर और कभी किसी और बहाने से तंग करते हैं। इन सभी मुद्दों पर वे अभिभावकों की मदद करती हैं। उनको दाखिला लेने के उनके हक के बारे में बताती हैं और जरूरी प्रक्रिया को समझाती हैं। वे कहती हैं कि उनकी मुहिम बेखौफ शिक्षा के माफियाओं का सच उजागर करना है। उनकी मुहिम में उनके पति उनका हर कदम पर सहयोग करते हैं जिससे उनका मनोबल बढ़ता है।