अनु छिल्लर अपने प्रयास से बदल रहीं पिछड़े बच्‍चों का जीवन, पढ़ाई में कर रहीं सहायता

पढ़ाई से नाता तोड़ चुके बच्चों के जीवन में फरिश्ते की तरह आई हैं अनु छिल्लर। उन्‍होंने अपने शानदार प्रयास से कई बच्‍चों के जीवन में उजाला ला दिया है।

By Prateek KumarEdited By: Publish:Wed, 22 Jan 2020 10:01 PM (IST) Updated:Wed, 22 Jan 2020 10:01 PM (IST)
अनु छिल्लर अपने प्रयास से बदल रहीं पिछड़े बच्‍चों का जीवन, पढ़ाई में कर रहीं सहायता
अनु छिल्लर अपने प्रयास से बदल रहीं पिछड़े बच्‍चों का जीवन, पढ़ाई में कर रहीं सहायता

नई दिल्ली [शिप्रा सुमन]। शिक्षित समाज ही राष्ट्र व देश के विकास का आधार है। उन बच्चों को शिक्षा से जोड़ने की आवश्यकता है, जिन्हें इसके उचित अवसर नहीं मिले। ऐसे कई बच्चे हैं, जो पारिवारिक, आर्थिक व अन्य कारणों से पढ़ाई से नाता तोड़ लेते हैं। ऐसे बच्चों के जीवन में फरिश्ते की तरह आई हैं अनु छिल्लर (35)। सर्व शिक्षा अभियान को बढ़ावा देते हुए उन्होंने उन बच्चों को स्कूल लाने का प्रयास किया, जो उम्मीद का दामन छोड़ चुके थे। पेशे से शिक्षिका अनु ने दिल्ली के मुंडका क्षेत्र में दर्जनों बच्चों को शिक्षा के मंदिर में प्रवेश दिलवाकर उनके भविष्य निर्माण की नींव रखी। अभावग्रस्त व पिछड़े वर्ग के इन बच्चों ने विभिन्न कारणों से स्कूल छोड़ दिया था, लेकिन अनु ने उन्हें अंधकार से प्रकाश की ओर लाने का काम किया है।

चुनौती से भरा रहा बच्चों का चयन

अनु छिल्लर मुंडका के प्रेम नगर समेत अन्य ग्रामीण इलाकों में जाकर उन बच्चों की तलाश की, जो स्कूल से दूर हैं। उन्होंने बताया कि जब वह इन क्षेत्रों में गईं, तब उन्हें बच्चे रेहड़ी-पटरी लगाते, मजदूरी, नशा और ताश खेलकर समय बर्बाद करते देखे गए। उन्होंने उन बच्चों के अभिभावकों से बातचीत कर उन्हें फिर से स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए प्रेरित किया।

लोगों ने दाखिले में होने वाली परेशानियों का हवाला दिया, लेकिन अनु ने उनकी मुश्किलों का हल स्वयं निकाल लिया। केवल एक फोटो के साथ हाथों-हाथ फार्म भरकर उन्हें स्कूल में दाखिला दिलाया। लंबे वक्त तक अपने गांव चले जाने, बीमार होने व घर की परिस्थितियों की वजह से पढ़ाई छोड़ चुके इन बच्चों को वह स्कूल तक लेकर गईं। अभिभावकों ने भी माना कि उनके बच्चों के जीवन में शिक्षा का कितना महत्व है।

प्राथमिक व नैतिक शिक्षा का ज्ञान

अनु ने सर्वे कर ऐसे 30 बच्चों का चयन किया, जिन्होंने किसी कारण से विद्यालय नहीं पहुंच सके या छोड़ना पड़ा। इनमें सात से लेकर 14 वर्ष की आयु के बच्चे शामिल हैं। उन्होंने बताया कि अलग-अलग उम्र के इन बच्चों का मानसिक स्तर भी अलग है, लेकिन इनमें एक समानता है वह पढ़ने-लिखने में सक्षम नहीं हैं। इसलिए अनु ने सभी को एकसाथ एक ही कक्षा में रखा है। प्राथमिक शिक्षा के साथ-साथ उन्हें खेल व अन्य शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से भी आत्मविश्वास बढ़ाने का प्रयास करती हैं। अनु के अनुसार इस प्रकार की कक्षा में उन्हें प्रत्येक बच्चे पर अलग-अलग वक्त देना पड़ता है, क्योंकि उनमें से कई बच्चों को कुछ जुबानी बातें याद हैं लेकिन उसे लिख नहीं पाते। साथ ही कहानियों व कार्यशाला के माध्यम से उन्हें नैतिकता का पाठ भी पढ़ा रही हैं।

अनु ने बताया कि इनमें से किसी बच्चे को यदि छुट्टी लेनी पड़ती है, तब भी वह उनके अभिभावक से संपर्क रखती हैं, ताकि वापस आकर वह अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें। अभिभावक भी इसमें पूरा सहयोग दे रहे हैं। 15 दिन का वक्त देने के बाद वह अपने बच्चों को स्वयं वापस स्कूल लेकर आ रहे हैं।

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