दिल्ली में वायु प्रदूषण को नियंत्रण करने के लिए बन रही कार्ययोजना: डॉ. एसएन त्रिपाठी
क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर के प्रोफेसर डॉ. डीजे क्रिस्टोफर ने भी एक अध्ययन साझा करते हुए कहा कि वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य के बीच संबंध अब जगजाहिर हो चुका है। दुनियाभर में 10 में से नौ लोग प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं।
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। आइआइटी कानपुर के पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. एसएन त्रिपाठी ने कहा कि वायु प्रदूषण कम करने के लिए सरकारी स्तर पर विस्तृत कार्ययोजना बनाई जा रही है। इसके मूल्यांकन में आउटपुट और आउटकम दोनों पर जोर दिया गया है। जहां मात्रत्मक नंबर दिए जाएंगे। साथ ही वरीयता भी तय की जाएगी और कुल वेटेड परफार्मेस के हिसाब से अनुदान जारी किया जाएगा। निकायों के प्रदर्शन को मापने के लिए तकनीकी संस्थानों, विश्वविद्यालयों और नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम में योगदान देने की क्षमता रखने वाली प्रयोगशालाओं की मदद ली जा रही है।
डॉ. त्रिपाठी ने नेशनल नालेज नेटवर्क का जिक्र करते हुए कहा कि यह एक विशेषज्ञ सलाहकार ग्रुप के तौर पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ काम करेगा। आइआइटी कानपुर इसका नेशनल कोऑर्डिनेटर इंस्टीट्यूट होगा। इसके अलावा आइआइटी मुंबई, आइआइटी दिल्ली, आइआइटी मद्रास, आइआइटी रुड़की, आइआइटी कानपुर और आइआइटी गुवाहाटी जैसे नोडल संस्थान इसके समन्वयक संस्थान के तौर पर काम करेंगे। डॉ. त्रिपाठी बुधवार को वायु प्रदूषण प्रबंधन संबंधी लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में हुई प्रगति, सामने आने वाली बाधाओं और उनके समाधान पर क्लाइमेट ट्रेंड्स द्वारा आयोजित एक वेबिनार को संबोधित कर रहे थे।
इंडस्टियल पाल्यूशन यूनिट सीएसई के कार्यक्रम निदेशक निवित कुमार यादव ने दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में औद्योगिक वायु प्रदूषण के आकलन पर एक रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि सरकार प्रदूषण की समस्या से निपटने के तमाम प्रयास तो कर रही है, लेकिन आधे-अधूरे आंकड़ों और व्यापक स्तर पर जवाबदेही तय नहीं किए जाने से ये प्रयास उतने सफल नहीं हो पा रहे।
क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर के प्रोफेसर डॉ. डीजे क्रिस्टोफर ने भी एक अध्ययन साझा करते हुए कहा कि वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य के बीच संबंध अब जगजाहिर हो चुका है। दुनियाभर में 10 में से नौ लोग प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। उन्होंने बताया कि वायु प्रदूषण के खराब प्रभाव दरअसल बच्चे के पैदा होने से पहले ही उस पर पड़ने लगते हैं। शोध के मुताबिक गर्भनाल के रक्त में भी 287 प्रदूषणकारी तत्व रसायन और अन्य नुकसानदेह चीजें पाई गई हैं। इस वेबिनार में रेस्पाइरर लि¨वग साइंस के सीईओ रोनक सुतारिया, काउंसिल फॉर एनर्जी एनवायरनमेंट एंड वाटर के रिसर्च फेलो कार्तिक गणोशन और सेंटर फार पालिसी रिसर्च के फेलो डॉक्टर संतोष हरीश ने हिस्सा लिया। वेबिनार का संचालन क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने किया।
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