डर का अंधेरा गया छिप, जब 'मन' में जले हौसले के 'दीप'

उत्तम नगर स्थित शिव विहार कॉलोनी की तंग गली में बने एक छोटे से घर में रहने वाले बच्चे के हौसले की चर्चा न सिर्फ क्षेत्र में बल्कि पूरे देश में सुर्खियां बटोर रही हैं। 13 वर्ष की छोटी उम्र में इस बच्चे ने अपनी जान की परवाह न करते हुए एक नहीं बल्कि तीन बच्चों की जान बचाई। एक वर्ष बाद इस बच्चे के हौसले को मिल रहे सम्मान से पूरी कॉलोनी के लोग खुश हैं।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 18 Jan 2019 09:18 PM (IST) Updated:Fri, 18 Jan 2019 09:18 PM (IST)
डर का अंधेरा गया छिप, जब 'मन' में जले हौसले के 'दीप'
डर का अंधेरा गया छिप, जब 'मन' में जले हौसले के 'दीप'

जागरण संवाददाता, पश्चिमी दिल्ली : उत्तम नगर स्थित शिव विहार कॉलोनी की तंग गली, जहां सूरज की रोशनी भी ठीक से नहीं पहुंच पाती, वहां एक छोटे से घर में रहने वाले बच्चे के मन में रोशनी ही रोशनी है। यह रोशनी है, परोपकार की, हौसले की। महज 13 साल के मंदीप के हौसले का दीप आज यहां के बच्चे ही नहीं, हर उम्र के लोगों के मन में जल उठा है। आज इस बच्चे के हौसले की चर्चा पूरे देश में है। अपनी जान खतरे में डालकर तीन बच्चों की जान बचाने वाले मंदीप कुमार पाठक का चयन राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के लिए होने से पूरी कॉलोनी के लोग खुश हैं।

नौवीं कक्षा में पढ़ने वाले मंदीप ने बताया, मैंने माता-पिता व भाइयों से सीखा है कि दूसरों की मदद करना खुद को साबित करना है। इसलिए, जब भी अवसर मिलता है, मुसीबत में फंसे लोगों की मदद कर खुद को साबित करने की कोशिश करता हूं। ऐसा मैंने कई बार किया है। हां, पहली बार ऐसा हुआ है कि मेरी सराहना न सिर्फ घरवाले, मोहल्ले वाले बल्कि देशस्तर पर हो रही है।

मंदीप बताते हैं, पिछले वर्ष की ही बात है। दिवाली का दिन था। मैं अपने दोस्त के घर जा रहा था। रास्ते में जब मैं शिव विहार से सटे विकास नगर में पहुंचा तो देखा कि कुछ बच्चे पटाखों से खेल रहे हैं। बच्चों के हाथ में ऐसे पटाखे थे जिन्हें जलाने पर जोरदार धमाका होता। आधे जले हुए पटाखे फेंक दिए गए थे लेकिन, अभी सुलग रहे थे। बच्चों ने नासमझी में इन्हें उठा लिया था और खेल रहे थे। मुझे लगा कि यदि इनसे पटाखे नहीं लिए गए तो ये सभी बच्चे पटाखे की चपेट में आ जाएंगे। मैंने उनके हाथों से वे पटाखे ले लिए, लेकिन इतने में ही मेरे हाथ में पटाखे चल गए। मेरा हाथ बुरी तरह झुलस गया। आसपास के लोग इकट्ठे हुए और मुझे इलाज के लिए अस्पताल ले जाने को कहने लगे। मैं किसी तरह से उनसे अनुरोध कर घर पहुंचा। घर वाले मुझे अस्पताल लेकर गए। समस्या यह थी कि जो हाथ झुलसा था, वह कुछ ही दिनों पहले टूट गया था। प्लास्टर को हटे तीन दिन भी नहीं हुए थे। अब तक गंभीर मंदीप थोड़ा खुश होते हुए कहते हैं, अच्छी बात यह थी कि जब घरवालों को पूरी बात पता चली तो उन्होंने मुझे डांटा नहीं, बल्कि हौसले की तारीफ की।

मंदीप की मां विद्यावती बताती हैं कि एक बार मोहल्ले के पास ही एक गाय नाले में गिर गई थी। वहां लोग इकट्ठे हो गए। जब मंदीप वहां पहुंचा तो इसने भीड़ में तमाशबीन बनने के बजाय नाले में छलांग लगा दी। लोगों ने एक बच्चे को गाय को बचाते देखा तो वे भी जुट गए। इसके बाद गाय बचा ली गई। वह बताती हैं कि मंदीप बड़ा होकर सेना में भर्ती होना चाहते हैं। उनकी ख्वाहिश है कि वह सेना में चिकित्सक बनें।

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