स्वास्थ्य सेवाएं महानिदेशालय की टीम ने अस्पताल में सुविधाओं का लिया जायजा

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : उत्तरी दिल्ली नगर निगम के महर्षि वाल्मीकि संक्रामक रोग अस्पताल में डिप्थ्

By JagranEdited By: Publish:Fri, 21 Sep 2018 11:19 PM (IST) Updated:Fri, 21 Sep 2018 11:19 PM (IST)
स्वास्थ्य सेवाएं महानिदेशालय की टीम ने  अस्पताल में सुविधाओं का लिया जायजा
स्वास्थ्य सेवाएं महानिदेशालय की टीम ने अस्पताल में सुविधाओं का लिया जायजा

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : उत्तरी दिल्ली नगर निगम के महर्षि वाल्मीकि संक्रामक रोग अस्पताल में डिप्थीरिया से पीड़ित बच्चों की मौत के मामले पर दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने संज्ञान लिया है। स्वास्थ्य सेवाएं महानिदेशालय (डीजीएचएस) की चार सदस्यीय टीम ने शुक्रवार को अस्पताल पहुंचकर सुविधाओं का निरीक्षण किया। साथ ही अस्पताल प्रशासन से पूरे मामले की जानकारी ली। टीम ने वापस आकर अपनी रिपोर्ट महानिदेशालय को सौंप दी है। टीम शनिवार को एक बार फिर अस्पताल का निरीक्षण करने पहुंचेगी।

महानिदेशक डॉ. कीर्ति भूषण ने बताया कि चार सदस्यीय टीम में डॉक्टर, महामारी विशेषज्ञ, एक नर्स व एक सहायक को शामिल किया गया है। इस टीम के सदस्यों ने अस्पताल में भर्ती मरीजों से मुलाकात की। तीमारदारों, डॉक्टरों व नर्सो से भी बातचीत की और पूरे घटनाक्रम की जानकारी ली। पूछताछ में यह बात पता चली कि अस्पताल में मरीजों को डिप्थीरिया एंटीटॉक्सिन सीरम इंजेक्शन उपलब्ध कराया जाता है। यह दवा इस बार भी आई थी, लेकिन हिमाचल प्रदेश के कसौली स्थित केंद्रीय अनुसंधान संस्थान (सीआरआइ) से इसकी आपूर्ति कम हुई थी। क्योंकि, सीआरआइ अपने प्लांट को अपग्रेड कर रहा है। इसलिए इस बार दवा की उपलब्धता कम है। डॉक्टरों ने बताया कि ज्यादातर बच्चे इलाज के लिए देर से पहुंच रहे हैं। कई बच्चे इलाज के लिए तब पहुंचे जब गले में दर्द, सांस लेने में तकलीफ के साथ उन्हें बेहोशी होने लगी थी। इस वजह से हाईडोज दवा देने की जरूरत पड़ रही है। शुरुआती दौर में 20,000-40,000 यूनिट की दवा से बीमारी का इलाज संभव है, जबकि बताया गया कि कई मरीजों को 80,000-1,00,000 यूनिट तक की दवा की जरूरत पड़ रही है।

महानिदेशालय का कहना है कि अस्पताल के डॉक्टरों व तीमारदारों से पूछताछ में पता चला कि पीड़ित मरीजों को डीपीटी के टीके नहीं लगे थे। टीका इस बीमारी से बचाव का सबसे कारगर तरीका है। बच्चे के जन्म के छठे सप्ताह में पहला टीका, ढाई महीने में दूसरा व साढ़े तीन महीने की उम्र में तीसरा टीका लगाया जाना चाहिए। इसके बाद डेढ़ साल की उम्र में पहला बूस्टर डोज व पांच साल की उम्र में दूसरा बूस्टर डोज टीका लगाना चाहिए। डीपीटी की जगह इन दिनों पेंटावैलेंट टीके का इस्तेमाल हो रहा है।

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