पूर्व मंत्री दिलीप रे को तीन साल की कैद, 10 लाख का जुर्माना भी लगाया

कोयला घोटाले से जुड़े एक मामले में पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री दिलीप रे को राउज एवेन्यू की विशेष अदालत ने तीन साल जेल और 10 लाख रुपये जुर्माना अदा करने की सजा दी है। विशेष न्यायाधीश भरत पराशर ने कोयला मंत्रालय के दो पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों प्रदीप कुमार बनर्जी और नित्या नंद गौतम को भी तीन साल जेल और दो-दो लाख रुपये जुर्माना अदा करने की सजा दी है। इसके अलावा कास्त्रों टेक्नोलॉजी लिमिटेड

By JagranEdited By: Publish:Mon, 26 Oct 2020 06:27 PM (IST) Updated:Mon, 26 Oct 2020 06:27 PM (IST)
पूर्व मंत्री दिलीप रे को तीन साल की कैद, 
10 लाख का जुर्माना भी लगाया
पूर्व मंत्री दिलीप रे को तीन साल की कैद, 10 लाख का जुर्माना भी लगाया

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : कोयला घोटाले से जुड़े एक मामले में पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री दिलीप रे को राउज एवेन्यू की विशेष अदालत ने तीन साल की कैद की सजा दी है और 10 लाख रुपये जुर्माना लगाया है। विशेष न्यायाधीश भरत पराशर ने कोयला मंत्रालय के दो पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों प्रदीप कुमार बनर्जी और नित्यानंद गौतम को भी तीन-तीन साल की जेल और दो-दो लाख रुपये जुर्माना अदा करने की सजा दी है। इसके अलावा कास्त्रों टेक्नोलॉजी लिमिटेड (सीटीएल) के निदेशक महेंद्र कुमार अग्रवाला को भी तीन साल जेल की सजा हुई है। उन्हें 60 लाख रुपये जुर्माना देना होगा। साथ ही सीटीएल पर 60 लाख रुपये और कास्त्रों माइनिग लिमिटेड (सीएमएल) पर 10 लाख रुपये जुर्माना लगाया गया है। दिलीप रे व अन्य दोषियों ने जमानत अर्जी दायर की, जिस पर एक-एक लाख रुपये के निजी मुचलके के साथ जमानत मंजूर कर ली गई।

दोषियों को सजा देते हुए विशेष न्यायाधीश भरत पराशर ने कहा कि साधारण अपराध के मुकाबले व्हाइट कॉलर क्राइम समाज के लिए ज्यादा खतरनाक है। इससे न सिर्फ वित्तीय नुकसान होता है, बल्कि जनता के विश्वास को भी ठेस पहुंचती है।

दिलीप रे अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कोयला राज्यमंत्री थे और मूलरूप से भुवनेश्वर के रहने वाले हैं। 1999 में झारखंड के गिरिडीह में 'ब्रह्मडीह कोयला ब्लॉक' के आवंटन में अनियमितता से जुड़े मामले में दिलीप रे को दोषी मानते हुए विशेष अदालत ने कहा था कि बेईमानी और गलत इरादे से कानूनी प्रावधानों को ताख पर रखा गया। दिलीप रे ने धोखेबाजी से सीटीएल को कोयला ब्लॉक का आवंटन किया। विशेष अदालत ने कहा था कि तत्कालीन अधिकारियों ने भी कानून के दायरे से बाहर जाकर कार्य किया और अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ठीक से नहीं किया।

क्या है मामला

सीबीआइ ने आरोपपत्र में कहा था कि मई 1998 में सीटीएल ने कोयला ब्लॉक आवंटित करने के लिए मंत्रालय में आवेदन किया था। कोल इंडिया लिमिटेड ने मंत्रालय को सूचित किया कि जिस जगह पर खनन के लिए आवेदन किया गया है, वहां खतरा है, क्योंकि वह खान क्षेत्र पानी से भरा हुआ है। अप्रैल 1999 में कंपनी ने फिर से आवेदन किया और मंत्री दिलीप रे को नए आवेदन पर शीघ्रता से विचार करने की बात कही। मई 1999 में आवेदन फाइल दिलीप रे के मंत्रालय से तत्कालीन केंद्रीय कोयला सचिव के पास आई और वहां से तत्कालीन अतिरिक्त सचिव नित्यानंद गौतम के पास भेजी गई। गौतम ने पिछले अवलोकन से यू-टर्न ले लिया और कोयला ब्लॉक सीटीएल को आवंटित करने की सिफारिश की। सीटीएल को कोयला ब्लॉक मिल गया, लेकिन अनुमति के बिना ही वहां पर खनन किया गया था।

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