World Environment Day 2020: बंदिशें टूटीं तो प्रगाढ़ हुआ पर्यावरण प्रेम
पर्यावरण में सुधार के लिए बनने वाली नीतियां व्यावहारिक होनी चाहिए। यह नीतियां फाइलों का हिस्सा बनने के लिए नहीं बल्कि हवा और पानी की बेहतरी के लिए होनी चाहिए।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) में दशकों नौकरी करने के बाद भी जो वैज्ञानिक-अधिकारी पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ खास न कर सके, सेवानिवृत्ति के बाद बहुत कुछ कर रहे हैं। दिलचस्प यह कि पहले उन्हें इस कार्य के लिए सरकार से मोटी तनख्वाह मिलती थी जबकि अब खुद की जेब से पैसा खर्च करना पड़ रहा है। फर्क बस यही है कि पहले सरकारी बंदिशें उनके हाथ बांध देती थी, अब वे अपने अनुभव और ज्ञान का खुलकर इस्तेमाल कर सकते हैं। हम बात कर रहे हैं कि सीपीसीबी से सेवानिवृत्त उन 70 वैज्ञानिकों और अधिकारियों की, जो सीपीसीबी एलुमनाई एसोसिएशन के बैनर तले पर्यावरण संरक्षण के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं। जेब से 2500-2500 रुपये सालाना सदस्यता शुल्क देकर यह लोग बीच-बीच में बैठकें और वेबिनार आयोजित कर पर्यावरण से जुड़े मुद्दे उठाते हैं और उन पर सुझाव एवं आपत्तियों सहित सटीक विश्लेषण सरकार सहित संबंधित विभागों को भेजते हैं।
हाल में इन्होंने एनवायरमेंट इम्पेक्ट एसेसमेंट (एआइए) को लेकर भी वेबिनार किया और उसकी रिपोर्ट तैयार की। इसमें विस्तार से बताया गया है कि विकास कार्यो के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने के लिए 2006 में जो नियम बनाए थे, उनमें 2020 के प्रस्तावित संशोधन कितना एवं कैसा प्रभाव डालेंगे। इससे पूर्व इन्होंने इलेक्ट्रिक वाहनों के फायदे-नुकसान और इससे पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव पर न्यूजलेटर तैयार किया था। लॉकडाउन के दौरान दिल्ली-एनसीआर ही नहीं, देशभर में वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण में जो सुधार हुआ, उस पर भी सरकारी संगठनों ने तो सिर्फ रिपोर्ट तैयार कर फाइल का हिस्सा बना लिया लेकिन एलुमनाई एसोसिएशन ने सुधार को बरकरार रखने के सुझावों सहित न्यूजलेटर भी तैयार किया है।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने खुद लिखित में इस न्यूज लेटर और एसोसिएशन के प्रयासों की प्रशंसा की है। शुक्रवार को जारी होने वाला यह न्यूजलेटर देशभर के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्र एवं राज्य सरकारों तथा पर्यावरण संस्थानों को भेजा जाएगा।
पर्यावरण में सुधार के लिए बनने वाली नीतियां व्यावहारिक होनी चाहिए। यह नीतियां फाइलों का हिस्सा बनने के लिए नहीं बल्कि हवा और पानी की बेहतरी के लिए होनी चाहिए। -डॉ. एसके त्यागी, पूर्व अपर निदेशक, सीपीसीबी
विकास का पैमाना जीवन की गुणवत्ता और आमजन की खुशी से मापा जाना चाहिए। कार्य-योजनाएं कागजी नहीं, कारगर होनी चाहिए। -डॉ. पारितोष त्यागी, पूर्व चेयरमैन, सीपीसीबी
कोरोना काल में हमें वायु प्रदूषण कम करने के साथ ही प्रदूषित जल की रिसाइक्लिंग पर भी ध्यान देना चाहिए। यह घरेलू, व्यावसायिक और औद्योगिक तीनों स्तरों पर आवश्यक है। -डॉ. बी सेनगुप्ता, पूर्व सदस्य सचिव, सीपीसीबी