EXCLUSIVE INTERVIEW: इंग्लैंड में गेंद को देरी से शरीर के करीब खेलें भारतीय बल्लेबाज: सचिन तेंदुलकर
दैनिक जागरण से खास बातचीत करते हुए सचिन तेंदुलकर ने कहा कि टीम इंडिया के पास फायदा ये है कि हमारे जो गेंदबाज हैं वे भी बल्लेबाजी कर लेते हैं। चाहे जो भी टीम खिलाओ हमारे गेंदबाज अच्छी साझेदारी बना सकते हैं तो यही कहूंगा कि हमारी टीम संतुलित हैं।
बल्लेबाजी के ज्यादातर रिकार्ड अपने नाम रखने वाले क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर जब किसी मुद्दे पर बोलते हैं तो उन्हें ना सिर्फ सुना जाता है, बल्कि उसकी गंभीरता को भी समझा जाता है। भारत को 18 जून से साउथैंप्टन में विश्व टेस्ट चैंपियनशिप (डब्ल्यूटीसी) फाइनल में न्यूजीलैंड से भिड़ना है। 2013 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने वाले सचिन तेंदुलकर से विश्व डब्ल्यूटीसी फाइनल और भारतीय टीम को लेकर अभिषेक त्रिपाठी ने खास बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश :-
-साउथैंप्टन में हवा चलती है, बादल आते-जाते रहते हैं और गेंद स्विंग करती है, ऐसे में टीम इंडिया को किस एकादश के साथ उतरना चाहिए?
--यहां से बताना थोड़ा मुश्किल है। अब हमारे पास तीन विकल्प हैं। पहला, छह बल्लेबाज, विकेटकीपर, तीन तेज गेंदबाज और एक स्पिनर के साथ उतरें। दूसरा विकल्प है कि चार तेज गेंदबाज और एक स्पिनर के साथ उतरें। तीसरा विकल्प है कि तीन तेज गेंदबाज और दो स्पिनर के साथ जाएं। लेकिन, मैं कहूंगा कि टॉस के समय ही पता चलेगा कि हम किस एकादश के साथ उतरें, क्योंकि कभी-कभी मैदानकर्मी एक दिन पहले तक पानी दे रहे होते हैं। ये भी देखना होगा कि कितनी धूप निकल रही है, बादल कितने छाये हुए हैं, मौसम कैसा है, घास कितनी छोड़ी गई है, क्या विकेट टूट सकती है। ये सभी चीजें देखी जाएंगी। टीम इंडिया के पास फायदा ये है कि हमारे जो गेंदबाज हैं, वे भी बल्लेबाजी कर लेते हैं। चाहे जो भी टीम खिलाओ, हमारे गेंदबाज अच्छी साझेदारी बना सकते हैं तो यही कहूंगा कि हमारी टीम संतुलित हैं।
-अगर टीम इंडिया एक स्पिनर के साथ जाती है तो अश्विन या जडेजा में से किसे चुना जाना चाहिए, क्योंकि अश्विन का ओवरऑल प्रदर्शन अच्छा है, लेकिन इंग्लैंड में वह बहुत ज्यादा सफल नहीं रहे हैं?
--देखिए, मैं आमतौर पर इसमें नहीं पड़ता कि किसे खिलाना चाहिए और किसे नहीं, क्योंकि बाहर से जो चीजें दिखती हैं वो कभी-कभी वहां जाकर पता लगती हैं कि ऐसा नहीं था, थोड़ा अलग था। मौजूदा फार्म देखी जाती है। हमारे पास दोनों स्पिनर ऐसे हैं जो रन बना सकते हैं।
-न्यूजीलैंड के गेंदबाजों को आपने देखा। पिछले दो मैच उन्होंने इंग्लैंड में खेले। इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के हालात भी काफी समान होते हैं। तो आप हमारे बल्लेबाजों को क्या सलाह देंगे कि वो कैसे व किस तकनीक से खेलें?
--सभी अनुभवी खिलाड़ी हैं। काफी समय से खेलते आ रहे हैं। उन सभी को पता है कि किन चीजों की जरूरत है। तो यही कहना चाहूंगा कि ऐसे हालात में इतना ध्यान रखना है कि अपने फ्रंट फुट डिफेंस को मजबूत रखें। फ्रंट फुट डिफेंस अगर तेज गेंदबाजों के खिलाफ अच्छा कर पाए तो मुझे लगता है कि बाकी की बल्लेबाजी ठीक होती है और जितना हो सके उतना गेंद को शरीर के करीब खेलें, जितनी देरी से खेल सकते हैं उतना देर खेलें। ये दो चीजें बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि आप ये दो चीजें करते हो तो फिर बाकी की जो मुसीबतें होती हैं उनका सामना नहीं करना पड़ता है।
-भारत ने अभ्यास मैच नहीं खेले हैं और न्यूजीलैंड को वहां एक तरह से अभ्यास करने और वहां के हालात को समझने व उसके अनुरूप ढलने के लिए दो टेस्ट मैच मिल गए। वह इंग्लैंड को इंग्लैंड में हराकर खेल रहे हैं। इसका उन्हें फायदा मिलेगा?
--हां, इसका थोड़ा असर तो पड़ेगा, मगर मुझे लगता है कि वो जो टेस्ट सीरीज खेले, वो कुछ समय पहले ही प्लान की गई होगी। अभ्यास तो उन्हें मिला है, लेकिन यह कोई प्लान का हिस्सा नहीं थी। यह तो संयोग है कि न्यूजीलैंड फाइनल में आ गई और उनकी टेस्ट सीरीज पहले से तय थी। न्यूजीलैंड अच्छा क्रिकेट खेलकर फाइनल में आई है, लेकिन ऐसा नहीं कह सकते कि उसके फाइनल में आने के बाद यह न्यूजीलैंड-इंग्लैंड सीरीज फिक्स हुई। मुझे पता नहीं है यह कब तय की गई, मगर आइसीसी सारी टीमों के लिए पहले से कैलेंडर प्लान करती है मैं इसे एक संयोग कहूंगा। हमारे लिए कोविड की वजह से काफी चुनौतियां रही हैं। उसमें मैं यही खिलाडि़यों को कहना चाहूंगा कि आगे क्या करना है वो सोचो, पीछे क्या कर सकते थे और क्या नहीं हुआ, उससे कुछ नहीं बदलने वाला है।
आगे क्या करना है, उस पर यदि हम सोचेंगे तो काफी फायदा हो सकता है और उसमें हमें जो करना है उस पर हम नियंत्रण कर सकते हैं। मैं जानता हूं कि खिलाडि़यों को जो अच्छे अभ्यास मैच होते हैं वो नहीं मिले और आपस में ही खेलना पड़ा है, मगर कभी-कभी वो अभ्यास भी काफी हो सकता है। ये सभी खिलाड़ी पहले भी इंग्लैंड में खेल चुके हैं। कुछ टेस्ट क्रिकेट खेल चुके हैं तो कुछ इंडिया-ए के लिए खेल चुके हैं। ऐसा नहीं हो रहा है कि इंग्लैंड की पिचें कैसी होती हैं, ये कभी किसी ने देखा नहीं है और सीधे जाकर खेलना पड़ रहा है। सभी को पता है, क्या होता है। ये उनके लिए विदेशी हालात नहीं हैं। वे जानते हैं कि हालात कैसे हैं और इस पर कैसे खेलना चाहिए।
-लेकिन, इस तरह के हालात में हमारे बल्लेबाज जूझते नजर आते हैं। चाहे 2019 विश्व कप का न्यूजीलैंड के खिलाफ सेमीफाइनल हो या न्यूजीलैंड के खिलाफ पिछली सीरीज रही हो। न्यूजीलैंड हमारे ऊपर हावी रही है?
--जितना मैंने इस मैच के बारे में सुना है तो क्यूरेटर ने यही कहा है कि गेंद बाउंस करेगी और पिच में कुछ गति रहेगी। बाउंस और गति रहेगी तो यदि शॉर्ट पिच गेंद आपकी कमजोरी नहीं है तो आप आसानी से खेल पाते हो मगर जब गेंद स्विंग होने लगती है तो सभी बल्लेबाजों को कुछ ना कुछ तकलीफ होती है तो उसे आप कैसे टैकल करते हो, इसलिए मैंने कहा कि जितना लेट हो सके बल्लेबाजों को उतना लेट खेलना चाहिए। जहां तक कमजोरी की बात है तो हमारे बल्लेबाजों ने वहां जाकर रन भी बनाए हैं, चुनौतीपूर्ण समय तो सभी के जीवन में आता है।
-सभी लोग कह रहे हैं कि फाइनल बेस्ट ऑफ थ्री होना चाहिए। एक मैच से उतना पता नहीं चलता। आप क्या कहेंगे?
-देखिए, मैं कहूंगा कि टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल तक कैसे पहुंचे हैं, एक-एक मैच खेलकर पहुंचे हैं या तीन-तीन, चार-चार मैचों की सीरीज खेलकर पहुंचे हैं। अगर ऑस्ट्रेलिया में देखा जाए तो हम चार टेस्ट की सीरीज खेले थे, फिर इंग्लैंड के साथ हम भारत में चार टेस्ट की सीरीज खेले थे, तो सीरीज खेलकर हम आगे बढ़ रहे हैं तो टेस्ट मैच चैंपियनशिप का फाइनल भी एक सीरीज होनी चाहिए। अगर एक-एक टेस्ट मैच खेलकर टीम यहां तक पहुंचती तो फिर एक टेस्ट मैच सही होता लेकिन दोनों टीमें तीन-तीन, चार-चार टेस्ट मैच हर सीरीज में खेलकर यहां तक पहुंची हैं तो अचानक से यहां आकर एक टेस्ट मैच हो रहा है। तो या तो ऐसा करो कि चार टेस्ट मैच की एक सीरीज है, आइसीसी को पहले ही बताना चाहिए कि चौथा टेस्ट मैच रहेगा उसके जो भी अंक रहेंगे वो विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के लिए गिने जाएंगे, तो फिर वह एक ही टेस्ट मैच के अंक गिने जाते और फिर यहां पर आकर एक ही टेस्ट मैच खेलते तो सही होता। मगर अब तक तीन-तीन, चार-चार टेस्ट मैच की सीरीज खेलते आए हैं तो यहां भी एक तीन टेस्ट मैच की सीरीज होनी जरूरी है। उसमें अगर कोई दो टेस्ट मैच पहले ही जीत जाता है तो फिर तीसरे टेस्ट मैच की जरूरत नहीं होगी।
-मौजूदा टीम इंडिया ने दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड में टेस्ट सीरीज नहीं जीती है। ऑस्ट्रेलिया में दो लगातार टेस्ट सीरीज जीतीं। क्या यह सर्वश्रेष्ठ टीम इंडिया है?
--मुझे लगता है कि हर पीढ़ी में अलग तरह के खिलाड़ी आते हैं। मैं ज्यादा तो कहना नहीं चाहूंगा, आप ही देखिए कि इस दौर की जो दक्षिण अफ्रीकी टीम है और जो पहले की दक्षिण अफ्रीकी टीम थी, उससे ही आपको जवाब मिल जाएगा। कई बार इस पर भी निर्भर करता है कि सामने कौन खेल रहा है। मैं किसी का श्रेय कम नहीं करना चाहूंगा, मगर अलग-अलग पीढ़ी की तुलना नहीं होनी चाहिए, क्योंकि अगर हम कहते हैं कि यह टीम अच्छी है या यह टीम बुरी है तो उस पर फैसला उसी दौर में करें, क्योंकि बहुत सी चीजें बदल जाती हैं। बहुत सारे नियम बदलते हैं। विरोधियों की ताकत कम-ज्यादा होती है। वो हमें देखना चाहिए कि उस समय दक्षिण अफ्रीकी टीम में कौन से नाम थे और अब कौन से नाम हैं। उस समय ऑस्ट्रेलिया में, न्यूजीलैंड में और अपनी टीम में कौन से नाम थे और अब कौन हैं, तो अलग-अलग पीढ़ी को अलग-अलग ही रखना चाहिए।
-रिषभ पंत में पिछले कुछ वर्षो में काफी बदलाव आया है। उस बदलाव को आप कैसे देखते हैं?
--मुझे लगता है कि पंत में आक्रमण करने की क्षमता है। वह आसानी से चौके-छक्के मारते हैं। आक्रमण उनका स्वाभाविक खेल है। इन्हीं रिषभ पंत की काफी समय पहले लोगों ने आलोचना की थी और कहते थे कि उनके आउट होने के तरीके गलत हैं और उन्हें अपना खेल बदलना चाहिए। मैं उन चीजों को नहीं मानता हूं और थोड़ा अलग सोचता हूं, क्योंकि जैसे रिषभ पंत जिस तरह के शॉट खेलते हैं तो उनके आउट होने के तरीके अलग होंगे और चेतेश्वर पुजारा के आउट होने के तरीके अलग होंगे और रन बनाने के तरीके भी दोनों के अलग रहेंगे। मगर दोनों खिलाड़ी टीम के लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं और उनकी शैली भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। मगर रिषभ ने जिस तरह की बल्लेबाजी की है, मुझे बहुत पसंद आती है।
-जब आप रिकार्ड बनाते थे तो पूरी दुनिया खुश होती थी। अब आपका रिकार्ड कभी टूटता है तो कैसा महसूस होता है?
--मैंने कभी माना ही नहीं कि यह मेरा रिकार्ड है। मैंने हमेशा यही माना है कि यह भारत का रिकार्ड है। तो जब तक भारत के पास रिकार्ड है तो मैं यही कहूंगा कि यह अपना ही रिकार्ड है। मेरा नहीं, अपना ही रिकार्ड है।