मैच के दौरान कप्तान वाडेकर ने मुझे नहीं बदलने दिया था ट्राउजर : गावस्कर

मैं ट्राउजर बदल रहा था तो मेरे कप्तान अजित वाडेकर सामने बैठे थे और मुझे ट्राउजर बदलते हुए देख रहे थे। उन्होंने कहा सनी तुम क्या कर रहे हो। मैंने कहा ट्राउजर उधड़ गया है इसलिए दूसरा पहन रहा हूं। ऐसा मत करो तुम उसी ट्राउजर को पहने रहो।

By Viplove KumarEdited By: Publish:Thu, 16 Sep 2021 12:34 AM (IST) Updated:Thu, 16 Sep 2021 12:34 AM (IST)
मैच के दौरान कप्तान वाडेकर ने मुझे नहीं बदलने दिया था ट्राउजर : गावस्कर
पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, जेएनएन। कई क्रिकेटर मैच के दौरान अंधविश्वासी होते हैं और पूर्व भारतीय कप्तान अजित वाडेकर भी उनमें से एक थे। पुत्र रोहन ने संभवत: पहली बार लीजेंड सुनील गावस्कर का साक्षात्कार लिया। इस दौरान उनके साथ क्रिकेट का सामान बनाने वाली विश्व की सबसे बड़ी कंपनी एसजी क्रिकेट के मार्केटिंग डायरेक्टर पारस आनंद भी मौजूद थे।

इस साक्षात्कार के दौरान गावस्कर ने बताया कि एक मैच के दौरान कप्तान वाडेकर ने उन्हें फटा ट्राउजर नहीं बदलने दिया था क्योंकि इससे उनकी किस्मत बदल जाती। एसजी टीवी द्वारा आयोजित साक्षात्कार में सुनील गावस्कर ने कई महत्वपूर्ण बातें की। पेश हैं मुख्य अंश-

रोहन : आपने 1971 में पहली बार इंग्लैंड का दौरा किया था। उससे आपकी क्या यादें जुड़ी हैं?

सनी : जब हम हीथ्रो एयरपोर्ट के ऊपर से गुजर रहे थे तो हमें वहां पर काफी हरी घास नजर आ रही थी। ऐसे में हमारे दिमाग में पहला सवाल यही उठ रहा था कि जब हम टेस्ट मैच खेलेंगे तो ऐसी ही हरी पिच मिलेगी। हां, उसके बाद हमने पिचों पर बेहतर तालमेल बिठाया। भारत ने ओवल में अंतिम टेस्ट जीतकर पहली बार इंग्लैंड में सीरीज अपने नाम की थी, लेकिन सच्चाई यह है मैंने इस सीरीज में कोई शतक नहीं लगाया था।

रोहन : आप वेस्टइंडीज और इंग्लैंड की तेज पिचों पर वहां के तेज गेंदबाजों को खेलने के लिए खुद को कैसे तैयार करते थे?

सनी : मुझे मुंबई के कुछ तेज गेंदबाज अभ्यास कराते थे जो 22 गज की जगह 18 गज की दूरी से गेंद फेंकते थे। नेट पर ऐसे गेंदबाज को खोजना बहुत मुश्किल होता था जो 22 गज से इतनी तेज गेंदबाजी करता हो। मुंबई के कुछ गेंदबाज 18 गज से गेंदबाजी करते थे। वे रबर की गेंद को पानी भिगा कर ब्रेबोर्न स्टेडियम के पीछे की तरफ कंक्रीट वाली पिच पर मुझे अभ्यास कराते थे, जिससे गेंद को काफी उछाल मिलती थी, लेकिन मुंबई के गेंदबाजों का कद पांच फुट 10 इंच का होता था, जबकि वेस्टइंडीज के गेंदबाज छह फुट पांच इंच के होते थे, इसलिए उनकी गेंदों के रिलीज प्वाइंट में काफी अंदर होता था।

हमें उसमें सामंजस्य बिठाना होता था। ऐसे भी कुछ अपवाद हैं जिन्होंने कभी टेस्ट क्रिकेट में कोई नोबाल नहीं फेंकी। कपिल ऐसे गेंदबाज थे जो नेट पर भी ऐसे अभ्यास करते थे मानो कि वह मैच खेल रहे हों। उन्होंने नेट पर कभी नोबाल नहीं फेंकी।

गावस्कर ने बेटे को बातों ही बातों में बताया कि कैसे मैच के दौरान जब उनके बाल आंखों पर आ रहे थे तो उन्होंने उसे फील्ड अंपायर डिकी बर्ड से कटवाए थे। इस बात को सुनने के बाद रोहन ने कहा यह तो अच्छा है कि डिकी सुई धागा नहीं रखते थे नहीं तो आप अपना ट्राउजर सिलने के लिए भी कह देते?

सनी : उन दिनों आज की तरह स्ट्रेच होने वाले कपड़े नहीं होते थे। जब आप आगे की तरफ पैर बढ़ाते हैं तो ट्राउजर में खिंचाव होता है। चायकाल के दौरान मैं ट्राउजर बदल रहा था तो मेरे कप्तान अजित वाडेकर सामने बैठे थे और मुझे ट्राउजर बदलते हुए देख रहे थे। उन्होंने मुझसे कहा, सनी तुम क्या कर रहे हो। मैंने कहा, ट्राउजर उधड़ गया है, इसलिए दूसरा पहन रहा हूं।

उन्होंने कहा, ऐसा मत करो, तुम उसी ट्राउजर को पहने रहो। अपनी किस्मत मत बदलो। मैं उसी ट्राउजर के साथ खेलने गया। टोनी ग्रेग उस समय सिली प्वाइंट पर थे। वह और मैं तीन साल पहले आस्ट्रेलिया के खिलाफ शेष विश्व टीम में एक साथ थे। हम एक-दूसरे की टांग खिंचाई करते थे। जब मैं चाय के बाद बल्लेबाजी करने गया तो उन्होंने वह ट्राउजर पहने देखा और बोले, ओह.. तो तुम्हें एयर कंडीशनिंग पसंद है।

रोहन : आप और वाडेकर में ज्यादा अंधविश्वासी कौन था?

सनी : हो सकता है हर कोई पूरी तरह से अंधविश्वासी न हो, लेकिन लोग इस बात में विश्वास रखते हैं कि यह शर्ट मेरे लिए अच्छी है या यह ट्राउजर। इसे पहनकर मैं अच्छा स्कोर करता हूं या ऐसी कुछ चीजें हैं जिन्हें मैं करता हूं तो प्रदर्शन अच्छा होता है। मैंने कहीं लिखा था कि जब सचिन तेंदुलकर ने सिडनी में बेहतरीन 241 रन बनाए थे तो वह हर शाम एक ही रेस्तरां में जाते थे और एक ही डिश आर्डर करते थे, ताकि वह अपनी किस्मत को आगे लेकर जा सकें। मैं कभी-कभी अंधविश्वासी होता था, लेकिन मेरे कप्तान वाडेकर ज्यादा अंधविश्वासी थे।

रोहन : आपके समय में एक सीरीज के बाद चार-पांच महीनों का अंतराल होता था। बीसीसीआइ को उस समय सीरीज के आयोजन में क्या दिक्कत आती थी?

सनी : भारतीय टीम उस समय उतने मैच नहीं जीतती थी। विदेशी बोर्ड जैसे विरोधी टीमें चाहते थे, भारतीय टीम वैसी नहीं थी। आस्ट्रेलिया में भारत ने पहली टेस्ट सीरीज आजादी के ठीक बाद 1948-49 में खेली लेकिन हमें आस्ट्रेलिया का अगला दौरा 19 साल लग गए। उसके बाद अगला दौरा 1977 में हुआ। अब आप देखें। भारत ने 2018-19 में आस्ट्रेलिया का दौरा किया और फिर तीन साल बाद 2020-21 में वहां गई। अब भारतीय टीम का दौरा होता है तो न सिर्फ उन्हें अच्छा राजस्व मिलता है, बल्कि मैदान भी भरे होते हैं। कभी-कभी वहां मैच देखने वाले 80 प्रतिशत दर्शक भारतीय होते हैं।

रोहन : आप पहले डंकन फीयर्नली और ग्रे निकोल्स के बल्ले इस्तेमाल करते थे, फिर एसजी के बल्ले कैसे अपनाए?

सनी : मेरे स्वर्गीय करन आनंद (एसजी के तत्कालीन मैनेजिंग डायरेक्टर) से अच्छे संबंध थे। 1982 में मैं सिली प्वाइंट पर फील्डिंग कर रहा था। इयान बाथम ने स्मैश किया और गेंद मेरे पैर में जा लगी थी। मेरे पैर में प्लास्टर चढ़ा हुआ था। मैं कहीं आ-जा नहीं सकता था। ऐसे में करन मैच के बाद हर शाम मेरे कमरे में आते थे और बैठकर बातें करते थे। उससे पहले मेरे हाथ की अंगुली तीन बार टूटी थी। मेरी अंगुली ठीक हो रही होती थी कि फिर उस में चोट लगती। वह फिर टूट जाती थी।

मैं वेस्टइंडीज के खिलाफ 1974 की सीरीज में तीन टेस्ट नहीं खेल सका। मुझे उस अंगुली के लिए अतिरिक्त पैडिंग वाली डिवाइस की जरूरत थी, जो एसजी ने मेरे लिए बनाई थी। उसने मेरी काफी सुरक्षा की। जहां तक एसजी के बल्लों की बात है तो उनका संतुलन बहुत अच्छा है। उनकी ग्रिप काफी अच्छी होती है, इससे मैं काफी प्रभावित हुआ।

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