Health Insurance से जुड़े हैं ये छह मिथक, पॉलिसी लेने से इन बातों को ध्यान में रखना है जरूरी

अधिकतर हेल्थ इंश्योरेंस प्लान में को-पे क्लॉज होता है। इसका मतलब है कि इलाज पर आए कुल खर्च का एक हिस्सा इंश्योर्ड व्यक्ति को उठाना पड़ता है। अगर बिल एक लाख रुपये का है और को-पे क्लॉज 10% का है तो आपको अपने पॉकेट से 10 हजार रुपये देने होंगे।

By Ankit KumarEdited By: Publish:Thu, 29 Apr 2021 09:43 AM (IST) Updated:Sat, 01 May 2021 08:19 AM (IST)
Health Insurance से जुड़े हैं ये छह मिथक, पॉलिसी लेने से इन बातों को ध्यान में रखना है जरूरी
अगर आप स्मोकर हैं तो ऐसा नहीं है कि आपको हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी नहीं मिल सकती।

नई दिल्ली, राहुल जैन। हेल्थ इंश्योरेंस आज वक्त की जरूरत बन गया है। इससे ना सिर्फ आपकी गाढ़ी कमाई खर्च होने से बच जाती है बल्कि इससे महत्वपूर्ण वित्तीय लक्ष्य भी पटरी से नहीं उतरते हैं। आज के समय में हेल्थ इंश्योरेंस को लेकर जागरूकता बढ़ रही है लेकिन कई मिथकों की वजह से कई लोग इसे नहीं अपनाते हैं और बाद में उन्हें बड़ा नुकसान उठाना पड़ जाता है। इस आलेख का उद्देश्य ऐसे ही मिथकों पर से पर्दा हटाना है। इससे आप अपनी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी का पूरा इस्तेमाल कर पाएंगे और सोच-समझकर निर्णय कर पाएंगे। आइए इन मिथकों को दूर करते हैंः 

पहला मिथकः मैं युवा हूं और मुझे हेल्थ इंश्योरेंस प्लान की जरूरत नहीं

वास्तव में युवावस्था के साथ-साथ ऐसे समय में ही हेल्थ इंश्योरेंस प्लान खरीदना सबसे मुफीद होता है, जब आप स्वस्थ होते हैं। इसकी वजह है कि कम उम्र में पहले से किसी बीमारी के डेवलप होने की आशंका कम होती है। उल्लेखनीय है कि आम तौर पर प्री-एक्जीस्टिंग बीमारियां इंश्योरेंस खरीदने के कुछ साल बाद से कवर होती हैं।  

जब आप स्वस्थ रहते हुए पॉलिसी खरीदते हैं तो आपको कम प्रीमियम चुकाना पड़ता है। इसके साथ ही आने वाले वर्षों में इस बात की गुंजाइश काफी कम होती है कि आप किसी तरह का क्लेम करेंगे। ऐसे में आपको नो क्लेम बोनस (NCB) की सुविधा भी मिलती है। इससे फायदा होता है कि बिना किसी अतिरिक्त प्रीमियम के भुगतान के आपका सम इंश्योर्ड कुछ प्रतिशत बढ़ जाता है।  

ऐसा कहा जाता है कि हेल्थ इमरजेंसी किसी भी समय में आ सकती है। ऐसा नहीं है कि हम युवा हैं तो हेल्थ से जुड़ी इमरजेंसी नहीं आएगी। ऐसी परिस्थितियों में कॉम्प्रिहेंसिव हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी से आपको मदद मिल जाती है। 

दूसरा मिथकः सबसे सस्ता प्लान ही होता है सबसे बढ़िया प्लान

यह सही नहीं है। आपको केवल कीमत यानी प्रीमियम के आधार पर हेल्थ इंश्योरेंस प्लान नहीं खरीदना चाहिए। पॉलिसी खरीदने से पहले आपको कई अन्य पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए। आपको इंश्योरेंस कंपनी के नेटवर्क हॉस्पिटल्स, को-पे और सब-लिमिट जैसे प्रावधानों को ध्यान में रखना चाहिए। सबसे अहम है कि आपको इंश्योरेंस कंपनी के क्लेम सेटलमेंट रेशियो पर गौर करना चाहिए।  

कई बार सस्ते प्लान में सीमित फीचर्स होते हैं। इससे परिस्थितियां बिगड़ने पर आपके पॉकेट से पैसे खर्च हो जाने की आशंका पैदा हो जाती हैं। सामान्य भाषा में बात की जाए तो हेल्थ इंश्योरेंस प्लान खरीदते समय प्रीमियम पर सबसे आखिर में गौर करना चाहिए।  

मिथक तीनः मुझे ग्रुप प्लान के तहत इंश्योरेंस कवर मिला हुआ है, इसलिए मुझे अलग से हेल्थ इंश्योरेंस प्लान नहीं चाहिए।

वास्तव में ग्रुप प्लान के तहत समूह के कई सदस्यों को कवरेज मिली हुई होती है। इस तरह के हेल्थ इंश्योरेंस कवर को कस्टमाइज नहीं किया जा सकता है और यह कवरेज आपको उसी वक्त तक मिलती है, जिस वक्त तक आप कंपनी से जुड़े रहते हैं।  

ऐसे में अगर आप ग्रुप प्लान के तहत कवर हैं तो भी आपको हेल्थ इंश्योरेंस कवर रखना चाहिए। इससे आपकी कवरेज बढ़ जाती है। साथ ही जॉब छोड़ने या नौकरी बदलने के बीच में भी आप इंश्योरेंस कवर के अंदर आते हैं। 

इसके साथ ही कई बार ग्रुप प्लान में आपको पर्याप्त राशि की कवरेज नहीं मिलती है। ऐसे परिदृश्य में आपके द्वारा अलग से कराया हुए हेल्थ इंश्योरेंस प्लान कारगर सिद्ध होता है।  

चौथा मिथकः हेल्थ इंश्योरेंस प्लान के सभी लाभ पहले दिन से मिलने लगेंगे

नहीं, ऐसा नहीं होता है। सामान्य तौर पर आपको एक महीने के आसपास के समय के बाद ही बीमारियों के लिए कवरेज मिलती है। हालांकि, किसी व्यक्ति को दुर्घटना की वजह से अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है तो उसे पहले दिन से कवरेज मिलती है। दूसरी ओर, अगर आपको पहले से कोई बीमारी (प्री-एक्जिस्टिंग ऐलमेन्ट्स) है तो आप कुछ वर्षों के वेटिंग पीरियड के बाद कवरेज मिलती है।  

ये सभी विवरण पॉलिसी से जुड़े दस्तावेज में दर्ज होते हैं। अगर आपको पहले से किसी तरह की बीमारी है तो प्रपोजल फॉर्म भरते समय इंश्योरेंस कंपनी के समक्ष इसे निश्चित रूप से डिस्क्लोज करिए। उल्लेखनीय है कि अपने स्वास्थ्य के बारे में जानकारी छिपाने पर इंश्योरेंस क्लेम रिजेक्ट हो जाते हैं।  

मिथक पांचः मेडिकल से जुड़ा सारा खर्च इंश्योरेंस कंपनी उठाएगी

अधिकतर हेल्थ इंश्योरेंस प्लान में को-पे क्लॉज होता है। इसका मतलब है कि इलाज पर आए कुल खर्च का एक हिस्सा इंश्योर्ड व्यक्ति को उठाना पड़ता है। उदाहरण के लिए अगर बिल एक लाख रुपये का है और को-पे क्लॉज 10 फीसद का है तो आपको अपने पॉकेट से 10 हजार रुपये देने होंगे। बाकी का खर्च इंश्योरेंस कंपनी उठाएगी। 

इसके अलावा रूम रेंट, डॉक्टर की फीस इत्यादि को लेकर भी एक लिमिट तय होती है। उससे ऊपर की राशि पॉलिसीहोल्डर को देनी होती है। उदाहरण के लिए अगर इंश्योरेंस पॉलिसी में रूम रेंट के लिए 1,000 रुपये प्रतिदिन की सब-लिमिट तय है और आप 1,500 रुपये प्रतिदिन के रेंट वाले रूम में रह रहे हो तो आपको अपनी ओर से 500 रुपये देने होंगे। 

ये सभी चीजें पॉलिसी के डॉक्युमेंट में लिखी हुई होती हैं। ऐसे में इन डॉक्युमेंट्स को पढ़ना जरूरी होता है। इससे आपको ऐसे खर्चों को लेकर समझ बन जाएगी, जो इंश्योरेंस प्लान में कवर नहीं होंगे।  

छठा मिथकः मैं एक स्मोकर हूं और मुझे हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी की कवरेज नहीं मिलेगी।

यह सही नहीं है। अगर आप स्मोकर हैं तो ऐसा नहीं है कि आपको हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी नहीं मिल सकती। हालांकि, आपको स्मोक नहीं करने वालों की तुलना में ज्यादा प्रीमियम देना पड़ सकता है। धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के लिए प्रीमियम ज्यादा इसलिए होती है कि आपके बीमार होने की आशंका ज्यादा होती है। ऐसे में इंश्योरेंस कंपनी आपको कवरेज देकर ज्यादा रिस्क कवर करती है।  

अगर आप धूम्रपान के आदी हैं तो आपको कड़े मेडिकल टेस्ट से गुजरना पड़ सकता है। अगर ऐसा करने को कहा जाए तो हिचकिए मत क्योंकि इससे आपके स्वास्थ्य की ऐसी स्थिति का पता चल सकता है, जिसके बारे में आपको जानकारी ना हो। 

निष्कर्ष

हम जिस तरह के अनिश्चितता भरे काल में हैं, हेल्थ इंश्योरेंस प्लान से हमें इलाज के ऊंचे खर्च के लिए वित्तीय ताकत मिल जाती है। विभिन्न तरह के प्लान का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए। पॉलिसी से संबंधित विवरण को पढ़िए और आपकी जरूरतों के लिहाज से उचित मेडिकल प्लान को चुनिए।

(लेखक Edelweiss Personal Wealth Management के प्रमुख हैं। प्रकाशित विचार लेखक के निजी हैं।) 

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