Financial Planning से जुड़े हैं ये 6 Myths, इस तरह किया जा सकता है इन्हें दूर

Myths about Financial Planning किसी भी व्यक्ति की फाइनेंशियल प्लानिंग (Financial Planning) काफी लंबी प्रक्रिया लगती है और ऐसा लगता है कि यह केवल उनके लिए है जिनके पास बहुत पैसा हो और जो इसके लिए पेशेवर मदद ले सकते हैं।

By Ankit KumarEdited By: Publish:Fri, 18 Jun 2021 06:12 PM (IST) Updated:Fri, 18 Jun 2021 06:12 PM (IST)
Financial Planning से जुड़े हैं ये 6 Myths, इस तरह किया जा सकता है इन्हें दूर
सिर्फ रोजमर्रा का काम चल जाने से यह सिद्ध नहीं हो जाता कि आपका नकदी प्रवाह पर नियंत्रण है।

नई दिल्ली, राजेश कृष्णामूर्ति। किसी भी व्यक्ति की फाइनेंशियल प्लानिंग (Financial Planning) काफी लंबी प्रक्रिया लगती है और ऐसा लगता है कि यह केवल उनके लिए है जिनके पास बहुत पैसा हो और जो इसके लिए पेशेवर मदद ले सकते हैं। लेकिन ये शुरुआत करने वालों की भ्रांतियां हैं। इसे आसान भाषा में कहें तो वित्तीय नियोजन का मतलब है वित्तीय मामलों के उचित प्रबंधन के जरिये अपने जीवन के लक्ष्यों को पूरा करना। ज़्यादातर लोगों को इस तरह की समझ बुजुर्गों, परिवार के सदस्यों, दोस्तों और लिखित सामग्रियों के जरिये टुकड़े-टुकड़े में मिलती है, जिससे कुछ किस्म के मिथकों और भ्रांतियों की गुंजाइश बन जाती है। आइए हम इसे दूर करने का प्रयास करते हैं।

मिथक 1: प्रयास करना योजना बनाना है, योजना बनाना ही प्रयास करना है।

कल्पना करें कि एक बच्चा बिल्डिंग ब्लॉक्स के जरिये सुन्दर सा ढांचा बना रहा है। बच्चे को शायद ही इस बात का अहसास होता है कि उसका ध्यान केवल इमारत पर है न कि नींव बनाने पर। बच्चों से उम्मीद होती है कि वे इस तरह के खिलौनों से कुछ बनाते-बिगाड़ते रहें। हालांकि, कल्पना करें कि आप ऐसा ही कुछ आप अपनी मेहनत की कमाई से कर रहे हैं। यह कतई बुद्धिमानी नहीं है।

कई निवेशक सोचते हैं कि खुद ऐसा करना वित्तीय नियोजन का सबसे अच्छा तरीका है। जबकि आप मार्गदर्शन लेने (क्या करना चाहिए और क्यों करना चाहिए) और इस पर अमल करने (कैसे करना चाहिए) को अलग कर सकते हैं। योग्य और कानून के दायरे में विनियमित व्यक्ति द्वारा बनाई गई व्यक्तिगत वित्तीय योजना को मैं मार्गदर्शन कहता हूँ। अपनी व्यक्तिगत वित्तीय योजना पर अमल खुद या पेशेवर सहायता लेकर की जा सकती है। बिना योजना के काम करना बगैर मजबूत बुनियाद के मकान बनाने जैसा है। कुछ ही समय में यह ढहने लगेगा। पहल करना योजना बनाना नहीं। योजना बनाना पहल करना नहीं है। पहले योजना बनाएं फिर पहल करें।

मिथक 2: वित्तीय योजना का लेना-देना बचत और निवेश से है:

मानसिक स्वास्थ्य (आध्यात्मिक स्वास्थ्य समेत), शारीरिक स्वास्थ्य और वित्तीय स्वास्थ्य – इनमें से किसी एक या तीनों में से किसी भी मामले में परेशानी आने से आपके जीवन में काफी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। उनमें से हर एक के जोखिम का निष्पक्ष रूप से आकलन करना और पर्याप्त सुरक्षा तैयार करना ही सही बुनियाद है। जीवन, संपत्ति (वाहन/घर), स्वास्थ्य, आदि से जुड़ा जोखिम वास्तविक जोखिम है। उचित लागत पर ऐसे जोखिमों से जुड़ा बीमा हमारा वैकल्पिक वित्तीय बैकअप है। बचत और निवेश इस अंतर को उतने प्रभावी तरीके से नहीं पाट सकते जितना कि बीमा कर सकता है। इस मिथक में भरोसा करने से आपकी वित्तीय स्थिति बिगड़ सकती है।

मिथक 3: नकदी का हिसाब अकाउंटेंट रख सकते हैं मैं नहीं। यह रॉकेट साइंस है।

कितना पैसा आता है, कितना खर्च होता है, और कब होता है? यह क्यों आता है, क्यों खर्च हो जाता है? क्या यह ज़रूरी है, क्या इसे टाला जा सकता है? क्या यह फिलहाल के लिए पर्याप्त है, या इससे भविष्य में भी काम चलेगा?

सिर्फ रोजमर्रा का काम चल जाने से यह सिद्ध नहीं हो जाता कि आपका नकदी प्रवाह पर नियंत्रण है। खर्च करने से पहले अपनी आय के एक हिस्से को बचाकर और निवेश करके, पहले अपने वेतन से खुद को भुगतान करने की योजना बनाएं। इससे यह लोकप्रिय मिथक टूटता है कि निवेश शुरू करने से पहले आपके पास पर्याप्त पैसा होना चाहिए।

मिथक 4: मुझे अपने जोखिम का पता है। इसका पता तीन या चार सवालों के जवाब से चल जाता है।

क्या मुझे वाक़ई अपनी जोखिम का पता है? किसी उत्पाद या योजना में निवेश की राय मिलने पर मैं कितने सुविधाजनक तरीके से निवेश कर सकता हूँ? क्या मेरे पास कोई पैमाना है जिससे यह पता चले कि मैं ऐसे निवेश प्रस्ताव मिलने की स्थिति में मैं वित्तीय और व्यवहारिक रूप से कितना तैयार हूँ? यदि मैं ऐसी कोई खबर पढूं कि अर्थव्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं तो क्या मैं डांवांडोल हो जाऊँगा? आप जितना झेलना चाहते हैं (जोखिम झेलने की इच्छा) और जो आप झेल सकते हैं (जोखिम झेलने की क्षमता) दोनों में फर्क है। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि दोनों समय के साथ अलग हो सकते हैं। आपकी अपनी जीवन यात्रा दोनों में बदलाव लाती रहेगी। सवाल यह है कि क्या आप इन बदलावों के साथ तालमेल बिठा रहे हैं?

मिथक 5: मुझे बस अच्छा मुनाफा चाहिए और टैक्स की बचत होनी चाहिए।

कभी आपने सोचा है कि अच्छा मुनाफ़ा कमाने और टैक्स बचाने का क्या मतलब है यदि आपने यह योजना नहीं बनाई है कि यदि आपको कुछ हो जाता है तो इस पैसे का इस्तेमाल कैसे किया जाएगा? फिल्मों और नाटक की दुनिया के अलावा वास्तविक जीवन में भी हम देखते हैं कि किसी की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारी आपस में लड़ते होते हैं।

हम हमेशा सोचते हैं कि हमारे मामले में ऐसा नहीं होगा। आपके कानूनी उत्तराधिकारियों भविष्य में चैन से रहें इसके आड़े क्या आता है। क्या आप इसे अपनी ओर से विरासत के तौर पर छोड़ना चाहेंगे? जीवन के हर चरण में एक उत्तराधिकार योजना की ज़रुरत होती है। विशेष जरूरतों और दीर्घकालिक देखभाल जैसी कुछ स्थितियों के लिए, पावर ऑफ अटॉर्नी और उपयुक्त ट्रस्ट जैसे सही ज़रिये का होना आवश्यक है। सही समय अपनी वसीयत लिखें। मरने से कुछ मिनट पहले सबसे अच्छा समय होता है। अगला सबसे सही समय अभी ​​​​है।

मिथक 6: मदद लेना बुरा है; लोग धोखा देते हैं।

जो कुछ आप नहीं जानते उसे समझने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि उन लोगों के साथ बातचीत करें जिन्हें उस चीज़ के बारे में बेहतर पता है। इससे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि हमें क्या नहीं पता। हालांकि मीडिया में जो तरह-तरह की कहानियां आती हैं जिनमें बताया जाता है कि खुदरा निवेशक कितने भोले होते हैं, इससे वही क्लासिक स्थिति उभर आती है कि "मैं इस बारे में किसी पर भरोसा करना चाहता हूं, लेकिन पता नहीं किस पर भरोसा किया जाए।"

जहां तक बात पर्सनल फाइनांस की आती है तो यह प्रवृत्ति खुद ही सबकुछ कर लेने की बात करने वाले विस्फोटक रूप से बढ़ रहे नेटिज़न में भी देखी जा रही है। उस व्यक्ति को ढूंढें जिस पर आप भरोसा कर सकते हैं - सबसे अच्छा किसी से सुनी गई सिफारिश - अपने सबसे भरोसेमंद दोस्त की सिफारिश। यदि उन्हें कोई नहीं मिला हो तो उनके सबसे भरोसेमंद दोस्त से तलाश करें। मुझे यकीन है कि आपको भरोसेमंद दोस्तों के लम्बे-चौड़े दायरे में कोई न कोई ज़रूर मिल जाएगा।

(लेखक फाइनेंशियल प्लानिंग स्टैंडर्ड्स बोर्ड लिमिटेड, इंडिया लायजन ऑफिस के कंट्री हेड हैं। प्रकाशित विचार लेखक के निजी हैं।)

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