स्टॉक मार्केट से हड़बड़ी में निकलने का नहीं, निवेश दुरुस्त करने का समय, बता रहे हैं एक्सपर्ट
कई ऐसे निवेशक हैं जो हड़बड़ी में बाहर निकल गए और फिर जल्देबाजी में वापस आ गए। पिछले साल के मध्य से मिड और स्मालकैप स्टाक्स ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। यह हमेशा इस बात का संकेत होता है कि बाजार में तेजी का दौर आ रहा है।
नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। कोरोना संकट के दौरान बहुत से निवेशकों ने छोटी अवधि पर विचार करते हुए अपना निवेश बेच दिया और बाजार से निकल गए। हालांकि निवेश के लिहाज से यह अच्छी रणनीति नहीं थी। निवेशकों के लिए यह सोचने और समझने का समय है कि उतार-चढ़ाव वाले ऐसे माहौल में असेट अलोकेशन को किस तरह मजबूती दी जाए, ताकि निवेश सुरक्षित भी रहे और रिटर्न भी दे।
लगभग 18 माह से दुनिया कोरोना वायरस की चपेट में है और यह समय आपके निवेश के असेट अलोकेशन को बनाए रखने के लिहाज से बहुत अच्छा समय नहीं रहा है। पिछले वर्ष कोरोना का प्रकोप शुरू होने के बाद बाजार में खतरनाक गिरावट देखी गई। बहुत से लोग अपना निवेश बेचकर इक्विटी से बाहर निकल गए। इसके बाद से तमाम सेक्टर्स और और हर तरह के आकार की कंपनियों के लिए सफर काफी टेढ़ा-मेढ़ा और उतार-चढ़ाव से भरा रहा है।
निवेशक किसी ऐसे संकेत की तलाश में रहे कि जिससे यह पता चल सके कि कम अवधि और लंबी अवधि के लिहाज से वायरस का क्या असर होगा। यहां तक कि ऐसे दौर में भी जब स्टाक कीमतें बढ़ रहीं थीं, तब भी निवेशकों का भरोसा मजबूत नहीं था और उन्होंने अपने ज्यादातर फैसले कम अवधि के लिए कयासों और डर के आधार पर लिए। तो इस टेढ़े-मेढ़े और उतार-चढ़ाव भरे सफर का एक सबसे बड़ा असर यह रहा है कि असेट अलोकेशन का संतुलन काफी हद तक बिगड़ गया है।
कई ऐसे निवेशक हैं जो हड़बड़ी में बाहर निकल गए और फिर जल्देबाजी में वापस आ गए। पिछले साल के मध्य से मिड और स्मालकैप स्टाक्स ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। यह हमेशा इस बात का संकेत होता है कि बाजार में तेजी का दौर आ रहा है। हालांकि इसकी वजह से बहुत से इक्विटी पोर्टफोलियो ऐसे स्टाक्स की ओर झुक गए हैं और इससे कम अवधि में तेज उतार-चढ़ाव और जोखिम बढ़ गया है। इस समय असेट अलोकेशन और रीबैलेंसिंग का प्रयास करना बेवकूफी लग सकती है।
असेट रीबैलेंसिंग का मतलब है कि अच्छा प्रदर्शन करने वाली असेट बेचना और खराब प्रदर्शन करने वाली असेट में रकम लगाना है। यह निवेशक की सहज प्रवृत्ति के खिलाफ जाता है। इसीलिए अक्सर इसे तब तक नजरअंदाज किया जाता है जब कि बहुत देर न हो जाए।
हम रीबैलेंसिंग और इसकी जरूरत को सरल शब्दों में यूं समझते हैं :
1. बुनियादी तौर पर वित्तीय निवेश दो तरह के होते हैं। इक्विटी और फिक्स्ड इनकम। फिक्स्ड इनकम में डिपाजिट और बांड आदि आते हैं।
2. इक्विटी में ज्यादा रिटर्न मिलने की संभावना होती है और यहां जोखिम भी अधिक रहता है। वहीं फिक्स्ड इनकम में कम रिटर्न मिलता है लेकिन यहां जोखिम भी कम होता है। अपनी जोखिम उठाने की क्षमता के हिसाब से आप को इक्विटी और फिक्स्ड इनकम में एक निश्चित अनुपात में निवेश करना चाहिए।3- समय के साथ इक्विटी और फिक्स्ड इनकम में अलग-अलग दर से मुनाफा होता है। इसलिए असेट अलोकेशन उस अनुपात से हट जाता है जो आप चाहते हैं। असेट रीबैलेंसिंग में हमेशा अच्छा प्रदर्शन करने वाली असेट को छोड़ना होता है।हालांकि, निवेश में सफलता ऐसी चीजों से मिलती है जिसे करना मुश्किल होता है। बहुत से निवेशक कुछ खराब अनुभव से सीख पाते हैं। कुछ किस्मत वाले होते हैं जो बिना कीमत चुकाए ऐसा कर पाते हैं।
(लेखक वैल्यू रिसर्च ऑनलाइन डॉट कॉम के सीईओ हैं। प्रकाशित विचार लेखक के निजी हैं।)