इंवेस्टमेंट करते समय सिर्फ शेयर भाव ही नहीं, इस पहलू पर भी ध्यान देना है जरूरी, मिलता सकता है ज्यादा रिटर्न

अगर लाभांश केंद्रित इक्विटी निवेश के सिद्धांत की बात की जाए तो ऊंची लाभांश कमाई एक बड़ा कारण है जिसके चलते निवेशक म्यूचुअल फंड का चुनाव करते हैं।

By Ankit KumarEdited By: Publish:Sun, 12 Jul 2020 11:26 AM (IST) Updated:Sun, 12 Jul 2020 10:19 PM (IST)
इंवेस्टमेंट करते समय सिर्फ शेयर भाव ही नहीं, इस पहलू पर भी ध्यान देना है जरूरी, मिलता सकता है ज्यादा रिटर्न
इंवेस्टमेंट करते समय सिर्फ शेयर भाव ही नहीं, इस पहलू पर भी ध्यान देना है जरूरी, मिलता सकता है ज्यादा रिटर्न

नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। शेयर बाजारों में किसी स्टॉक की चाल एक बात है और उस कंपनी द्वारा छमाही या वर्ष के अंत में शेयरधारकों के लिए लाभांश घोषित करना बिल्कुल अलग बात। पिछले कुछ समय के दौरान देखा गया है कि ज्यादातर कंपनियों ने निवेशकों को दिए जाने वाले लाभांश में बड़ी बढ़ोतरी की है। इनमें छोटी-बड़ी सभी तरह की कंपनियां हैं। लेकिन अक्सर देखा गया है कि निवेश के वक्त निवेशक शेयर बाजारों में उस स्टॉक की चाल पर तो पैनी नजर रखते हैं और उसकी विवेचना भी खूब करते हैं, लेकिन वे लाभांश को ध्यान में नहीं रखते। इससे निवेशकों का भला नहीं होता है। असल में स्टॉक्स का प्रदर्शन कैसा है, यह सिर्फ शेयर बाजारों में उसकी चाल पर तय नहीं हो सकता है। उसमें लाभांश के प्रदर्शन की भी जानकारी होनी ही चाहिए। 

बड़ी अजीब बात है कि बहुत से इक्विटी निवेशक यह नहीं जानते हैं कि डिविडेंड यानी लाभांश इक्विटी रिटर्न को प्रभावित करता है। पिछले कुछ वर्षो के दौरान बहुत से स्टॉक्स की लाभांश कमाई बढ़ी है। लेकिन यह तथ्य ज्यादातर निवेशकों के विचार में शामिल नहीं हो पाया है। तो सवाल उठता है कि ज्यादातर भारतीय निवेशक लाभांश से एक हद तक अनजान क्यों हैं। शायद ऐसा इसलिए है क्योंकि कुछ ही निवेशक ऐसे हैं जो लंबी अवधि के लिए खरीदारी करते हैं और लंबी अवधि तक निवेश बनाए रखते हैं। अब अगर इक्विटी निवेशक कम समय में मुनाफा कमाकर फंड से निकलने की सोच रखते हैं तो इस बात का कोइ मतलब नहीं रह जाता है कि किसी स्टॉक ने पिछले वर्षो से लगातर बहुत अच्छा लाभांश दिया है।  

मुझे पिछले वर्ष सितंबर का एक दिलचस्प वाकया याद आ रहा है। मैंने एक फाइनेंशियल एडवाइजर का ट्वीट देखा। ट्वीट में एक स्टॉक को बुरा भला कहा गया था जो उस वक्त भी पांच वर्ष उसी पुराने स्तर पर था जिस पर उसे खरीदा गया था। इसका मतलब है कि उसने कुछ भी रिटर्न नहीं दिया था। यह एक संयोग है और जाहिर है कि यह सुखद नहीं था। इस ट्वीट को कुछ लाइक, रीट्वीट मिले। हालांकि मुझे यह सारी चीज थोड़ी अटपटी लगी। मैंने इस कंपनी पर बहुत गहराई से गौर नहीं किया है लेकिन मुझे लग रहा था कि लाभांश के मोर्चे पर स्टॉक का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है।  

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ऐसे में मैंने वैल्यू रिसर्च ऑनलाइन के 'माई इन्वेस्टमेंट' फीचर में परचेज यानी खरीद कीमत दर्ज की और रिटर्न चेक किया। वेबसाइट के इन्वेस्टमेंट ट्रैकिंग सिस्टम ने ऑटोमेटिक तरीके से सारे बोनस और लाभांश को ध्यान में रखा और वास्तविक रिटर्न की गणना की। इससे पता चला कि पांच वर्ष का जो निवेश एकदम बेकार बताया जा रहा था, उसने समान अवधि में कुल 12 फीसद का मुनाफा दिया है। यहां तक कि आज भी कोरोना वायरस की वजह से तमाम मारकाट के बावजूद वह स्टॉक पांच फीसद के बेहद मामूली नुकसान में है।  

इसमें कोई शक नहीं कि आप इक्विटी से यह नहीं चाहते हैं। यह सच है कि यह बहुत बुरा समय है। लेकिन अहम बात यह है कि लाभांश का भुगतान पूरी तस्वीर काफी हद तक बदल देता है। अगर आप लाभांश को ध्यान में नहीं रखते हैं तो आप इक्विटी निवेश से होने वाले लाभ की असली तस्वीर कभी नहीं जान पाएंगे।  

अभी इस कहानी में और भी बहुत कुछ है। क्योंकि हाल के वर्षों में लाभांश कमाई आमतौर पर लगातार बेहतर हुई है। कंपनियां निवेशकों को स्टॉक प्राइस की एक तय फीसद रकम लाभांश के तौर पर भुगतान करती हैं। यही रकम लाभांश कमाई के रूप में जानी जाती है। एक समय था जब ज्यादातर बड़ी कंपनियों की लाभांश कमाई बहुत कम होती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है। फरवरी, 2015 में 30 सेंसेक्स कंपनियों की एवरेज लाभांश कमाई 1.5 फीसद थी । अब यह 1.65 फीसद है। यह व्यक्तिगत लाभांश कमाई का औसत है। और अहम बात यह है कि बहुत सी ऐसी कंपनियां हैं, जिनका लाभांश कई गुना बढ़ गया है।अब सवाल यह उठता है कि क्या इसका कोई कारण है। मोटे तौर पर ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि इस अवधि में कंपनियों ने अपने सरप्लस के बड़े हिस्से का निवेश नहीं किया है।  

अगर निवेश की बुनियादी खासियतों के लिहाज से देखें तो यह बहुत अच्छी बात नहीं है। लेकिन निवेशकों को जो मिलेगा वह तो वे लेंगे ही। अहम बात यह है कि ऐसे समय में जब स्टॉक प्राइस ग्रोथ कमजोर है उस समय लाभांश एक सहारा देता है। और कोई स्टॉक खरीदने लायक है या नहीं, उसमें लाभांश भुगतान और उसकी मात्रा बड़ा अंतर पैदा करती है। बहुत सी कंपनियां हैं जहां लाभांश को दोबारा निवेश करने की जगह निवेशकों में बांटना वित्तीय लिहाज से ज्यादा बेहतर समझा जाता है।  

वास्तव में मैंने जिस स्टॉक की कहानी ऊपर बताई है। वह आइटीसी का था। आइटीसी ऐसी ही कंपनी है। कंपनी ने मुनाफे का एक तय फीसद हिस्सा लाभांश के रूप में बांटने की पॉलिसी शुरू की। और मौजूदा समय में कंपनी मुनाफे का 80 फीसद हिस्सा लाभांश के तौर पर बांट रही है। अब इसका एक कमजोर पक्ष पीएसयू यानी केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रम हैं। सरकार पीएसयू से बहुत ज्यादा लाभांश लेने का प्रयास करती है, जबकि ज्यादातर यह होता है कि सरकारी कंपनियां लाभांश के रूप में उतनी बड़ी रकम देना वहन नहीं कर सकती हैं। लेकिन पीएसयू की अपने आप में एक अलग कहानी है।  

अब अगर लाभांश केंद्रित इक्विटी निवेश के सिद्धांत की बात करें तो ऊंची लाभांश कमाई एक बड़ा कारण है, जिसके चलते निवेशक म्यूचुअल फंड का चुनाव करते हैं। लेकिन अगर भारत में निवेश की असल दुनिया के लिहाज से बात करें तो यह सही नहीं है। लाभांश कमाई असल में शेयरों के भाव और लाभांश के असमान अनुपात का नतीजा होती है। आमतौर पर इसकी वजह शेयरों का भाव ही है जो कि बहुत कम होता है। हालांकि अगर लाभांश कंपनी का शेयर भाव नहीं बल्कि फंडामेंटल का वाजिब अनुपात हो और इसका भुगतान लगातार किया जा रहा है तो यह कंपनी की अच्छी वित्तीय सेहत का मजबूत संकेत है। हालांकि सिर्फ इसी आधार पर स्टॉक नहीं चुनना चाहिए। लेकिन अगर लाभांश कमाईअच्छी है तो यह बुरा नहीं है। 

(लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं।) 

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