IPO में निवेश से पहले परख लें मैनेजमेंट की क्वालिटी, यूनीक बिजनेस मॉडल का लालच दे सकता है नुकसान
पिछले कुछ समय से कई विश्लेषक यह कह रहे थे डिजिटल आइपीओ के राजा बिना कपड़ों के हैं। ना तो इन कंपनियों ने कोई मुनाफा कमाया है और ना किसी ने इनसे पैसा बनाया। ऐसे में सवाल उठता है कि इन्हें बिजनेस कहा भी जा सकता है या नहीं।
धीरेंद्र कुमार, नई दिल्ली। पिछले कुछ समय से कई विश्लेषक यह कह रहे थे डिजिटल आइपीओ के राजा बिना कपड़ों के हैं। ना तो इन कंपनियों ने कोई मुनाफा कमाया है और ना किसी ने इनसे पैसा बनाया। ऐसे में यह भी सवाल उठता है कि इन्हें बिजनेस कहा भी जा सकता है या नहीं। जो तीन बड़े डिजिटल आइपीओ आने वाले थे, उनकी धूल का गुबार अब छंट रहा है। नतीजा साफ है। जोमैटो और नायका एक तरह से असफल रहे हैं और जबकि पेटीएम को जबरदस्त सफलता मिली है। जो मैं कह रहा हूं, उसे सुनकर आप चौंक गए होंगे। हालांकि, इसे काफी सरलता से समझा जा सकता है।
इन आइपीओ का एकमात्र मकसद था, बिजनेस के लिए पैसा जुटाना और संस्थापक व कंपनी में निवेश करने वालों की जेब में ढेर सारा पैसा पहुंचाना। ये उद्देश्य हासिल करने में पेटीएम पूरी तरह सफल रहा। जोमैटो और नायका जितना पैसा जुटा सकते थे उसका आधा ही उठा पाए। जबकि पेटीएम ने प्लेट और कटोरी सब साफ कर दी और टेबल पर कुछ भी बाकी नहीं छोड़ा।
पिछले कुछ समय से कई विश्लेषक यह कह रहे थे डिजिटल आइपीओ के राजा बिना कपड़ों के हैं। ना तो इन कंपनियों ने कोई मुनाफा कमाया है और ना किसी ने इनसे पैसा बनाया। ऐसे में यह भी सवाल उठता है कि इन्हें बिजनेस कहा भी जा सकता है या नहीं। इन आइपीओ से सीखने वाली बात यह है कि आइडिया और बिजनेस माडल से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है, इन्हें सही तरीके से चलाने की काबिलियत होना। मीडिया और उनके यहां होने वाले कार्यक्रमों में बोलने वालों का इन डिजिटल स्टार्टअप के बिजनेस माडल के कारगर होने पर बहुत ज्यादा जोर है।
अब इस मसले को दूसरे एंगल से देखते हैं। किसी एक बढि़या स्टाक के बारे में सोचिए, जिसमें आपने पिछले कुछ सालों के दौरान निवेश किया हो। क्या उसमें से कोई भी बिजनेस यूनीक किस्म का था। एचडीएफसी बैंक, एशियन पेंट्स, इन्फोसिस, टीसीएस और ऐसी कितनी ही कंपनियां हैं, जिनका बिजनेस यूनीक नहीं है। इन कंपनियों को जो दूसरों से अलग करता है है वह है उनकी मैनेजमेंट क्वालिटी। ये बात बिजनेस की लाइन की नहीं है बल्कि इसकी है कि कंपनी का मैनेजमेंट उस बिजनेस के साथ क्या करता है। वो उसे कैसे फाइन ट्यून करते हैं, और कैसे उस पर अमल करते हैं। आइडिया अपने आप में कुछ भी नहीं है, ये काम के तरीके की बात है। करीब-करीब सारे ही सफल स्टाक एनालिसिस, क्वालिटी मैनेजमेंट की तलाश ही तो है। आप को लगता है कि आप फाइनेंशियल नंबरों को देख रहे हैं, लेकिन वह सिर्फ इस बात का इशारा होता है कि कंपनी भविष्य में कितनी अच्छी तरह से चलेगी। इसी से भविष्य का स्टाक प्राइस तय होगा और निवेशक को सिर्फ इसी बात की फिक्र है।
अगर आप डिजिटल स्टाक में शून्य फायदे के लिए भी निवेश करते हैं तो मेरा सुझाव है कि बिजनेस माडल के बारे में सोचने से बेहतर है, आप एक बार कंपनी को इस नजरिये से गौर से देखें। हो सकता है तब आपको पता चले कि ऐसी भी कंपनियां हैं, जिनके मैनेजमेंट का व्यवहार तीन साल के उस बच्चे की तरह हो, जो अपने नए चमचमाते हुए खिलौने कुछ दिन खेलता है, और फिर तोड़ देता है। ये सब तब तक ठीक है जब तक मां-बाप नए और महंगे खिलौने खरीदते रहते हैं। मगर तब क्या होता है, जब पैसे खत्म हो जाते हैं और बिगड़े हुए बच्चे को उसी पुराने खिलौने को ही ठीक करना पड़ता है।
(लेखक वैल्यू रिसर्च आनलाइन डाट काम के सीईओ हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)