इस बार काम नहीं आएंगी आलोचना, बजट-2021 में सरकार ने सही दिशा में उठाए सही कदम
बजट को लेकर जो आलोचनाएं की जाती रही हैं वो इस बार के बजट के लिए नहीं की जा सकती हैं। सरकार ने इस बार देश को गति देने के लिए सही दिशा में सही कदम उठाया है।
भरत झुनझुनवाला। चालू वित्त वर्ष में विनिवेश से जो केवल 20 हजार करोड़ की रकम अर्जित की गयी थी उसके सामने इस आगामी वर्ष में 1.75 लाख करोड़ की रकम निजीकरण से अर्जित करने का लक्ष्य है। इसमें विशेष अंतर है कि पिछले वर्ष रकम सरकारी कंपनियों के आंशिक शेयरों को बाजार में बेच कर अर्जित की गयी थी जिसके बाद विनिवेशित कंपनी का मैनेजमेंट सरकारी अधिकारियों के हाथ में बना रहता था। आगामी वर्ष में इन कंपनियों का निजीकरण किया जाएगा यानी इनके नियंत्रक शेयर किसी विशेष निजी क्रेता के हाथ में बेच दिए जायेंगे जिससे कंपनी पर सरकारी अधिकारियों का वर्चस्व कम हो जाएगा और वह निजी कंपनी के रूप में आगे कार्य करेगी। सरकारी सिस्टम में अकुशलतायें और भ्रष्टाचार से छुटकारा मिल जाएगा।
निजीकरण के संबंध में प्रमुख आलोचना यह की जाती है कि सरकार इस मद से अर्जित रकम को अपने चालू खर्चों या वित्तीय घाटे को पोषित करने के लिए उपयोग करती है जबकि इसका उपयोग नये निवेश को करने के लिए किया जाना चाहिए। यह आलोचना इस बजट के संबंध में नहीं टिकती है। इस बजट में निजीकरण से अर्जित रकम 20 हजार करोड़ से बढ़ा कर 1.7 लाख करोड़ की गयी है यानी इसमें 1.55 लाख करोड़ की वृद्धि की गयी है, वहीं सरकार के पूंजी खर्चों को 4.39 लाख करोड़ से बढाकर 5.54 लाख करोड़ यानी इसमें 1.15 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि की गयी है। यद्यपि पूंजी खर्चों में वृद्धि पूरी तरह निजीकरण से अर्जित रकम के बराबर नहीं है फिर भी कमोबेश बराबर ही है। इसलिए यह कदम सही दिशा में है।
सरकार की वाणिज्यिक क्षेत्र में प्रवेश का मूल आधार यह है कि जो काम निजी कंपनियां नहीं कर पाती हैं उन्हें करने के लिए सरकार निवेश करे। जैसे यदि निजी उद्यमी बैंक को चलाने में सक्षम है तो उस कार्य के लिए आज सरकार को निवेश करने का कोई औचित्य नहीं रहता है। इसलिए जो क्षेत्र परिपक्व हो चुके हैं, उनसे सरकार को बाहर हटकर नये क्षेत्र में निवेश करना चाहिए। और भी अच्छा होता यदि सरकार साथ-साथ अपने चालू खर्च में कटौती करती और पूंजी खर्चों को और अधिक बढ़ाती।
दूसरी आलोचना इस बात को लेकर की जा रही है कि सार्वजनिक इकाइयों की स्थापना सामाजिक दायित्वों की पूíत के लिए की गयी थी। बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था जिससे कि बैंक ग्रामीण क्षेत्र में अपनी शाखाएं खोलें और ग्रामीण क्षेत्र के विकास में सहयोग दें। सरकारी बैंकों ने ऐसा किया भी है परंतु साथ-साथ सार्वजनिक बैंकों में अकुशलता और भ्रष्टाचार भी व्याप्त है। इसलिए सार्वजनिक बैंकों के ग्रामीण क्षेत्र पर दो परस्पर विरोधी प्रभाव पड़ते हैं। एक तरफ ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध होती हैं तो दूसरी तरफ सरकारी बैंकों की अकुशलता के कारण उनमें सरकार को पूंजी निवेश करना पड़ता है और इस पूंजी निवेश के लिए जो रकम सरकार निवेश करती है वह अंतत: उन्हीं आम आदमी पर टैक्स बढाकर अर्जित की जाती है।
इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्र में सरकारी बैंकों के प्रवेश से सीधा सकारात्मक प्रभाव दिखता है लेकिन जो अप्रत्यक्ष नकारात्मक प्रभाव है वह दिखता नहीं है यद्यपि यह प्रभाव तो पड़ता ही है। अंत में ग्रामीण क्षेत्र को कुछ मिलता नहीं है। इसके अतरिक्त सरकारी बैंकों को ग्रामीण क्षेत्रों को सेवायें उपलब्ध करने के लिए रिजर्व बैंक के पास पर्याप्त अधिकार हैं। रिजर्व बैंक निजी अथवा सरकारी बैंकों को मजबूर कर सकती है कि वे ग्रामीण क्षेत्रों में शाखाएं खोलें। इस कार्य के लिए बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना आवश्यक नहीं है। वास्तव में यह कार्य रिजर्व बैंक को 1971 में ही करना था लेकिन सरकार ने रिजर्व बैंक की नाकामी को ठीक करने के स्थान पर बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया।
बजट के बाद यह सवाल उठता है कि तमाम आवंटनों के लिए रकम कहां से आएगी। इस बार विनिवेश का लक्ष्य कई गुना बढ़ा है, जिसे हासिल करने का तरीका अलग है। साथ ही दशकों से चले आ रहे गलत फैसले को दुरुस्त करते हुए कुछ बैकों के निजीकरण का भी प्रस्ताव दिया है।
(वरिष्ठ अर्थशास्त्र)