Gold Hallmarking क्या है और क्या पड़ेगा इससे असर, जानिए अहम सवालों के जवाब

Gold Hallmarking इस बात का प्रमाण है कि जेवर और कलाकृतियों (फिलहाल सोने और चांदी) की गुणवत्ता क्या है। इसका संचालन और प्रमाणीकरण भारतीय मानक ब्यूरो यानी बीआइएस द्वारा किया जाता है। हॉलमार्किंग ज्वैलरों के लिए अनिवार्य है यानी वे ग्राहक को बिना हॉलमार्किंग वाली ज्वैलरी नहीं बेच सकते हैं।

By Pawan JayaswalEdited By: Publish:Sun, 20 Jun 2021 09:58 AM (IST) Updated:Mon, 21 Jun 2021 07:07 AM (IST)
Gold Hallmarking क्या है और क्या पड़ेगा इससे असर, जानिए अहम सवालों के जवाब
Gold Hallmarking ( P C : Pixabay )

नई दिल्ली, जेएनएन। इस सप्ताह बुधवार से चुनिंदा स्वर्ण आभूषणों एवं कलाकृतियों की हॉलमार्किंग अनिवार्य कर दी गई है। फिलहाल यह 256 जिलों में शुरू की गई है और अगस्त के आखिर तक वैकल्पिक है। लेकिन देशभर के कई हिस्सों में ज्वैलरों और ग्राहकों में इसे लेकर कई संशय और सवाल हैं, जिसके चलते पिछले तीन दिनों के दौरान सोने के भाव में कई जगह गिरावट आई है। हकीकत यह है कि इस नई व्यवस्था से ज्वैलर या ग्राहक, किसी को भी परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है।

हॉलमार्किंग क्या है और किनके लिए जरूरी है?

मोटे तौर पर हॉलमार्किंग इस बात का प्रमाण है कि जेवर और कलाकृतियों (फिलहाल सोने और चांदी) की गुणवत्ता क्या है। इसका संचालन और प्रमाणीकरण भारतीय मानक ब्यूरो यानी बीआइएस द्वारा किया जाता है। हॉलमार्किंग ज्वैलरों के लिए अनिवार्य है, यानी वे ग्राहक को बिना हॉलमार्किंग वाली ज्वैलरी नहीं बेच सकते हैं। इसमें फिलहाल उन ज्वैलर्स को शामिल नहीं किया गया है, जिनका सालाना राजस्व 40 लाख रुपये से कम है। सरकार ने चुनिंदा गहनों को अभी इससे छूट दी हुई है।

हॉलमार्किंग की जरूरत क्या है?

असल में हॉलमार्किंग की जरूरत सिर्फ इतनी है कि वह ग्राहकों को आश्वस्त करता है कि ज्वैलर उसे जो ज्वैलरी बेच रहा है, उसकी गुणवत्ता वही है, जो ज्वैलर बता रहा है। यह जानना दिलचस्प है कि भारत दुनिया का सबसे बडा स्वर्ण उपभोक्ता बाजार है। लेकिन यहां वर्तमान में सिर्फ 30 फीसद ज्वैलरी की हॉलमार्किंग हो रही है। इसका मतलब यह है कि 70 फीसद जेवर के मालिकों के पास ज्वैलर पर भरोसा करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है कि जो ज्वैलरी उन्होंने खरीदी है वह असली है या नहीं, और कितनी असली है।

मान लीजिए कि किसी ज्वैलर ने ग्राहक को बिना हॉलमार्क वाली कोई ज्वैलरी 22 कैरेट की बताकर बेची। लेकिन उसी ज्वैलरी को जब ग्राहक किसी दूसरे ज्वैलर के पास ले गया, तो वहां पता चला कि वह उतने कैरेट का नहीं है। यह भी हो सकता है कि दूसरे ज्वैलर ने उसे सस्ते में खरीदने के लिए उसकी गुणवत्ता कम बताई। ऐसे में ग्राहक बड़ी धोखाधड़ी का शिकार होता है। हॉलमार्किंग स्वर्ण आभूषणों की खरीद-फरोख्त में अब तक बड़े पैमाने पर हो रही इसी धोखाधड़ी और विश्वासघात का समाधान है।

हॉलमार्किंग के तहत कितने कैरेट की ज्वैलरी मान्य हैं?

सरकार ने अभी हॉलमार्किंग के तहत 14, 18 और 22 कैरेट की ज्वैलरी को रखा है। इसका मतलब यह है कि ज्वैलर इन्हीं तीन गुणवत्ता कैटेगरी की ज्वैलरी बनाकर ग्राहकों को बेच सकते हैं। हालांकि, सोने के 20, 23 और 24 कैरेट के अन्य स्वरूपों की भी हॉलमार्किंग की इजाजत है।

क्या हॉलमार्किंग के बिना घर में रखे पुराने जेवरों के मूल्य पर कोई असर होगा?

बिल्कुल नहीं। हॉलमार्किंग के बिना भी किसी जेवर का मोल उसमें मौजूद सोने के तात्कालिक मूल्य के आधार पर ही निर्धारित किया जाएगा। इतना जरूर है कि उस जेवर की हॉलमार्किंग करा लेने से यह संतुष्टि मिल जाएगी कि उसकी गुणवत्ता असल में उतनी ही है, जितनी पता थी। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि ज्वैलर किसी ग्राहक से बिना हॉलमार्क वाली ज्वैलरी पहले की तरह खरीदना जारी रखेंगे।

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