दवाइयों के कच्चे माल की कीमत में उतार-चढ़ाव से ग्राहकों पर नहीं पड़ेगा कोई असर

दवा की खुदरा कीमत में बढ़ोतरी के लिए दवा कीमत नियंत्रण एजेंसी से इजाजत लेनी होती है भले ही कच्चे माल की कीमत में बढ़ोतरी क्यों न हो जाए। PC Pixabay

By Pawan JayaswalEdited By: Publish:Sat, 15 Aug 2020 12:54 PM (IST) Updated:Sun, 16 Aug 2020 09:52 AM (IST)
दवाइयों के कच्चे माल की कीमत में उतार-चढ़ाव से ग्राहकों पर नहीं पड़ेगा कोई असर
दवाइयों के कच्चे माल की कीमत में उतार-चढ़ाव से ग्राहकों पर नहीं पड़ेगा कोई असर

नई दिल्ली, राजीव कुमार। दवा के लिए आने वाले कच्चे माले के आयात शुल्क में बढ़ोत्तरी की संभावना जताई जा रही है। लेकिन इस बढ़ोत्तरी का असर दवा उपभोक्ताओं पर फिलहाल नहीं होगा। दरअसल दवा की खुदरा कीमत में बढ़ोतरी के लिए दवा कीमत नियंत्रण एजेंसी से इजाजत लेनी होती है, भले ही कच्चे माल की कीमत में बढ़ोतरी क्यों न हो जाए। कच्चे माल की कीमत में बढ़ोतरी का वहन उत्पादक करता है। दवा की खुदरा कीमत बढ़ाने का एक मैकेनिज्म होता है और एक साल में 10 फीसद से अधिक की बढ़ोतरी नहीं की जा सकती है।

दूसरी वजह है कि दवा निर्माण के लिए चीन से आने वाले कच्चे माल की कीमत गत मार्च-अप्रैल के मुकाबले 15-20 फीसद तक कम हो गई है। क्योंकि चीन में अब दवा के कच्चे माल या बल्क ड्रग का उत्पादन बिल्कुल सुचारू हो गया है। कोरोना की वजह से मार्च-अप्रैल के दौरान चीन में उत्पादन कम हो रहा था जिससे कच्चे माल की कीमत बढ़ गई थी।

चीन से कई प्रकार के बल्क ड्रग का आयात करने वाली कंपनी इनोवा कैपटैब के निदेशक मनोज अग्रवाल कहते हैं, कच्चे माल की कीमत में गिरावट की वजह से ही फेविपीरावीर नामक दवा की एक गोली के दाम अब सिर्फ 35 रुपए रह गए है जो एक-दो महीने पहले तक 105 रुपए थे।

अग्रवाल ने बताया कि अगर कच्चे माल के आयात शुल्क में बढ़ोतरी से खुदरा कीमत पर असर नहीं होगा तो बल्क ड्रग की कीमत में 20 फीसद तक की गिरावट का भी फायदा आम ग्राहकों को फिलहाल नहीं मिलने जा रहा है। भारत में दवा निर्माण का सालाना कारोबार 3 लाख करोड़ रुपए का है। इनमें से 1.5 लाख करोड़ की दवा का भारत निर्यात करता है और 1.5 लाख करोड़ का कारोबार घरेलू स्तर पर होता है।

चीन से आने वाले कई कच्चे माल का आसानी से हो सकता है निर्माण

दवा निर्माताओं के मुताबिक चीन से आने वाले कई कच्चे माल का निर्माण भारत में आसानी से और कम समय में शुरू किया जा सकता है। इस साल फरवरी में सरकार द्वारा लोकसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक भारत अपने बल्क ड्रग आयात का 70 फीसद चीन से लेता है और वित्त वर्ष 2018-19 में भारत ने चीन से 2.4 अरब डॉलर का बल्क ड्रग और इंटरमीडिएट्स का आयात किया था।

इंडियन ड्रग मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के कार्यकारी निदेशक अशोक कुमार मदान ने बताया कि चीन से कई स्मॉल मोलिक्यूल वाले बल्क ड्रग के आयात होते है जिसे भारत में आसानी से बनाए जा सकते हैं। लेकिन जिन बल्क ड्रग को भारत चीन से आयात करता है, उसका निर्माण भारत में करने पर भारतीय बल्क ड्रग की कीमत चीन के मुकाबले 25-30 फीसद अधिक होती है।

हालांकि, दवा निर्माताओं का कहना है कि सरकार ने हाल ही में दवा के कच्चे माल के निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए जो प्रोडक्शन लिंक्ड स्कीम (पीएलआई) लाई है, उससे उनकी लागत कम होगी और चीन की बराबरी की जा सकेगी, लेकिन इस काम में कम से कम दो साल का वक्त लगेगा। हिमाचल ड्रग मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के सलाहकार सतीश सिंगला कहते हैं, वर्ष 1998 में चीन से सिर्फ 3 फीसद बल्क ड्रग का आयात किया जाता था जो 2020 तक बढ़कर 70 फीसद हो गया, अब इसे कम होने में भी समय लगेगा।

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