मीठी क्रांति: मात्र एक उन्नतिशील प्रजाति ने गन्ना किसानों व चीनी उद्योग की यूं बदली तस्वीर

सीओ-0239 उत्तरी राज्यों के गन्ना किसानों की सबसे चहेती प्रजाति बन चुकी है। गन्ने का उत्पादन जहां प्रति हेक्टेयर 61.6 टन था वह बढ़कर 81 टन को पार करने लगा है। इससे रकबा बढ़ाए बगैर उत्तर प्रदेश जैसे प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य में गन्ने की पैदावार बढ़ गई है।

By Pawan JayaswalEdited By: Publish:Mon, 26 Oct 2020 07:20 PM (IST) Updated:Tue, 27 Oct 2020 06:23 AM (IST)
मीठी क्रांति: मात्र एक उन्नतिशील प्रजाति ने गन्ना किसानों व चीनी उद्योग की यूं बदली तस्वीर
खेत में गन्ने की फसल P C: Pixabay

नई दिल्ली, सुरेंद्र प्रसाद सिंह। गन्ने की मात्र एक उन्नतिशील प्रजाति ने गन्ना किसानों और चीनी उद्योग की तकदीर और तस्वीर बदल दी है। उत्पादकता के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर गन्ना उत्पादक ब्राजील जैसे देश को मात देने वाली इस अनूठी प्रजाति सीओ 0238 ने उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा में मीठी क्रांति की वाहक बन गई है। वैसे तो इसकी कवरेज राष्ट्रीय स्तर पर 53 फीसद तक पर चुकी है। जबकि उत्तरी क्षेत्र के इन पांच राज्यों में यह 83 फीसद पहुंच गई है।

सीओ-0239 उत्तरी राज्यों के गन्ना किसानों की सबसे चहेती प्रजाति बन चुकी है। गन्ने का उत्पादन जहां प्रति हेक्टेयर 61.6 टन था, वह बढ़कर 81 टन को पार करने लगा है। इससे रकबा बढ़ाए बगैर उत्तर प्रदेश जैसे प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य में गन्ने की पैदावार बढ़ गई है जो किसानों की माली हालत को बेहतर बना रही है।

इसी तरह चीनी उद्योग के लिए भी यह प्रजाति वरदान साबित हो गई है। इसमें चीनी की रिकवरी दर औसतन 11.73 फीसद प्राप्त हो रही है। जबकि कई आधुनिक चीनी मिलों में चीनी की रिकवरी दर 14.01 फीसद तक दर्ज की गई है। इस प्रजाति के अस्तित्व में आने से पहले उत्तर प्रदेश में चीनी की रिकवरी दर कभी 9.5 फीसद मुश्किल से पहुंच पाती थी।

सीओ-0238 के जनक डॉक्टर बख्शीराम ने बताया कि ब्राजील में गन्ने की उत्पादकता 74.5 टन प्रति टन है। जबकि भारत में इसकी उत्पादकता 81 टन पहुंच गई है। पिछले सौ सालों में लखनऊ और कोयंबटूर के दोनों अनुसंधान संस्थानों समेत दो दर्जन रिसर्च सेंटरों में गन्ने की 3186 प्रजातियां विकसित की गईं हैं। लेकिन इनमें से केवल 168 प्रजातियां ही किसानों में प्रचलित हो सकीं।

बख्शी ने करनाल स्थित गन्ना रिसर्च सेंटर में विकसित सीओ-0238 ने यह कमाल किया था। डॉ. राम फिलहाल कोयंबटूर स्थित गन्ना अनुसंधान संस्थान के निदेशक हैं। उन्होंने बताया कि उत्पादकता और चीनी की रिकवरी दर के चलते इस प्रजाति का जिस तेजी से रकबा बढ़ा है, उससे एक नये तरह का खतरा भी पैदा हो सकता है। उनकी यह आशंका इस प्रजाति में किसी तरह के रोग लग जाने को लेकर है। हालांकि इस प्रजाति को उन्होंने गन्ने में लगने वाले सबसे खतरनाक बीमारी रेड रॉट से रहित विकसित किया है। लेकिन बढ़ते समय के साथ यह बीमारी पकड़ सकती है।

इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के महानिदेशक अविनाश वर्मा का कहना है कि डॉ. बख्शीराम की इस प्रजाति ने चीनी उद्योग को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है। वैश्विक स्तर पर हमारा रिकवरी रेट पहुंच गया है। पिछले पांच छह साल में उत्तरी राज्यों का चीनी उद्योग की चीनी उत्पादकता बढ़ी है। उत्तर प्रदेश में बिना रकबा बढे़ जहां पांच साल पहले 71 लाख टन चीनी का उत्पादन होता था, वह बढ़कर 1.25 करोड़ टन हो चुका है। वर्मा इसका पूरा श्रेय सीओ-0238 को देते हैं।

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