IBC में एक और संशोधन की तैयारी, फैसले के लिए तय होगी समयसीमा, प्रमोटर्स नहीं डाल पाएंगे अड़चन

पांच वर्ष पहले जब सरकार ने इंसॉल्वेंसी व बैंक्रप्सी कोड यानी आइबीसी को लागू किया था तब यह माना गया था कि देश के बैंकिंग सेक्टर के फंसे कर्जे को वसूलने के लिए यह अमोघ अस्त्र की तरफ काम करेगा।

By Ankit KumarEdited By: Publish:Wed, 16 Jun 2021 11:02 AM (IST) Updated:Wed, 16 Jun 2021 11:02 AM (IST)
IBC में एक और संशोधन की तैयारी, फैसले के लिए तय होगी समयसीमा, प्रमोटर्स नहीं डाल पाएंगे अड़चन
केंद्र सरकार ने आइबीसी में एक और संशोधन करने की तैयारी शुरू कर दी है।

नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। पांच वर्ष पहले जब सरकार ने इंसॉल्वेंसी व बैंक्रप्सी कोड यानी आइबीसी को लागू किया था तब यह माना गया था कि देश के बैंकिंग सेक्टर के फंसे कर्जे को वसूलने के लिए यह अमोघ अस्त्र की तरफ काम करेगा। शुरुआत काफी उत्साहजनक होने के बावजूद इस दिवालिया कानून की धार कुंद होती जा रही है। नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) की देशभर की पीठ में सैकड़ों मामले लंबित हैं जिन पर समयबद्ध तरीके से फैसला नहीं हो पा रहा है। अगर फैसला हो भी रहा है तो उसे अमल में लाना मुश्किल हो रहा है। कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहां दिवालिया प्रक्रिया से गुजर रही कंपनी के प्रमोटर फैसलों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं।

इन सब मुद्दों से चिंतित केंद्र सरकार ने आइबीसी में एक और संशोधन करने की तैयारी शुरू कर दी है। संशोधन का अहम मकसद यही होगा कि दिवालिया के लिए आए मामलों पर एक निश्चित समय सीमा के भीतर फैसला हो और कंपनियों के प्रमोटर्स द्वारा लगाई जा रही अड़चनों को खत्म किया जा सके। सूत्रों ने बताया कि अगर आइबीसी का हश्र भी कर्ज वसूली प्राधिकरणों (डीआरटी) या इस तरह के अन्य कानूनों जैसा हो तो यह देश की बैंकिंग व्यवस्था को बड़ा धक्का लगेगा। पिछले दिनों बैंकों की तरफ से भारतीय रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के समक्ष एक विस्तृत प्रजेंटेशन देकर आइबीसी को लागू करने में आ रही दिक्कतों के बारे में बताया गया है।

सरकार नया संशोधन इसलिए भी लाना चाहती है कि आने वाले दिनों में आइबीसी के तहत आने वाले मामलों में तेजी से वृद्धि होने की संभावना है। पिछले वर्ष कोरोना की पहली लहर के मद्देनजर केंद्र सरकार ने कर्ज नहीं चुकाने के बावजूद कंपनियों को आइबीसी से एक वर्ष के लिए राहत देने का एलान किया था। दूसरी तरफ एनसीएलटी को एक साथ सैकड़ों मामलों को देखना पड़ रहा है। नए मामलों से सुनवाई व फैसले की रफ्तार और धीमी हो सकती है।

ऐसी हैं दिक्कतें

बैंकों का मानना है कि मौजूदा कानून में कुछ ऐसे प्रविधान हैं जिनका फायदा प्रमोटर्स से जुड़ी कंपनियां उठा सकती हैं- बैंकों ने मंत्रालय के समक्ष ऐसे कई मामले रखे हैं जिसमें प्रमोटर्स की तरफ से दिवालिया प्रक्रिया को बाधित करने की कोशिश की गई हैकई मामलों में तो सुप्रीम कोर्ट की तरफ से साफ निर्देश के बावजूद प्रमोटर्स से जुड़े कर्जदाताओं ने प्रक्रिया को लंबे समय तक बाधित कर दिया हैएक जैसे मामले में एनसीएलटी की पीठों की तरफ से अलग-अलग फैसले दिए जा रहे हैं, इससे एनपीए वसूली की पूरी प्रक्रिया बाधित हो रही है।

यह है हाल

पिछले वर्ष दिवालिया मामलों को देख रहे न्यायालयों में कुल 1,953 मामले दायर किए गए थे- इन मामलों में कर्जदाताओं के कुल 2.32 लाख करोड़ फंसे हुए थे, जिनमें 1.05 लाख करोड़ रुपये की वसूली हो सकी है- सरफेसी कानून के तहत कर्ज वसूली की दर 25 फीसद रही थी- वर्ष 2017 के बाद से दिवालिया कोर्ट में कुल 4,300 मामले दायर किए गए हैं, जिनमें से सिर्फ आठ फीसद मामलों का पूरी तरह से निपटारा हुआ है, 40 फीसद पर सुनवाई चल रही है और बाकी लंबित हैं

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