ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नुकसान से बचाने के लिए कृषि क्षेत्र में लाना होगा परिवर्तन, क्रॉपिंग पैटर्न बदलने की जरूरत

वरिष्ठ कृषि अर्थशास्त्री डॉ. पीके जोशी का कहना है कि फसल विविधीकरण कृषि क्षेत्र की ज्यादातर चुनौतियों का समाधान है। इसके अलावा कई नीतिगत फैसले लेने होंगे जिसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का रणनीतिक उपयोग से किसानों को आकर्षित किया जा सकता है।

By Pawan JayaswalEdited By: Publish:Wed, 16 Jun 2021 07:48 PM (IST) Updated:Wed, 16 Jun 2021 08:50 PM (IST)
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नुकसान से बचाने के लिए कृषि क्षेत्र में लाना होगा परिवर्तन, क्रॉपिंग पैटर्न बदलने की जरूरत
जलवायु के अनुरूप बदले खेती P C : Pexels

नई दिल्ली, सुरेंद्र प्रसाद सिंह। अगर कृषि क्षेत्र ने जलवायु परिवर्तन के अनुरूप खुद में बदलाव नहीं किया तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो सकता है। इसके मद्देनजर सरकार को कुछ और बड़े अहम कदम उठाने होंगे, जिसके लिए कई उपायों पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। क्लाइमेटिक जोन के हिसाब से क्रॉपिंग पैटर्न बदलने की तत्काल जरूरत है। लेकिन यह तभी संभव है जब किसानों को बेहतर लाभ वाले विकल्प मुहैया कराए जाएं। ज्यादातर खाद्यान्न उत्पादक क्षेत्रों में अत्यधिक दोहन से जमीन की उर्वरता घट रही है। इससे उत्पादकता पर विपरीत असर पड़ने लगा है।

हालांकि, जलवायु परिवर्तन के अनुरूप कृषि पैटर्न में बदलाव के लिए किसानों को राजी करना आसान नहीं है। इसकी वजह यह है कि किसान वही बोएगा जिसमें उसे फायदा होगा। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे जलवायु क्षेत्र में बरसात औसत से कम होती है, लेकिन यहां अत्यधिक पानी वाली फसल धान व गन्ने की खेती को तरजीह दी जाती है। इसी तरह कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में पानी की भारी कमी के बावजूद गन्ने की खेती की जाती है, क्योंकि यह फायदे की खेती है।

क्रॉपिंग पैटर्न में बदलाव को स्वीकार करने के लिए सरकार को नीतिगत कुछ अहम फैसले लेने होंगे। इसमें कृषि की आधुनिक टेक्नोलॉजी, जागरूकता, न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी, वित्तीय मदद, उपज की खरीद को सुनिश्चित करने जैसे उपाय प्रमुख होंगे। इसमें केंद्र के साथ राज्यों की भूमिका अधिक होगी। कृषि क्षेत्र में मुफ्त बिजली, विभिन्न इनपुट में सब्सिडी के प्रविधानों पर भी पुनर्विचार की जरूरत है।

हरियाणा, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में फसल विविधीकरण को अपनाने के लिए किसानों के समक्ष कई तरह की योजनाएं शुरू की हैं, जिसके नतीजे भी उत्साहजनक मिलने लगे हैं। हरियाणा में धान की जगह अन्य फसलों की खेती करने वालों को 7000 से 10,000 रुपये प्रति एकड़ तक की नकद सब्सिडी देने का प्रविधान है। इसी तरह तेलंगाना के साथ उत्तर प्रदेश में 'वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट' योजना शुरू की गई है। इसके तहत जिले में फसल विशेष की खेती को प्रोत्साहन दिया जाएगा।

देश के लगभग 1,600 ब्लॉक ऐसे हैं, जिन्हें डार्क एरिया घोषित किया गया है। इन क्षेत्रों में क्रॉपिंग पैटर्न बदलने की तत्काल जरूरत है। यहां ज्यादा पानी वाली फसलों की खेती पर प्रतिबंध होना चाहिए। मोटे तौर पर पूरे देश को 15 बड़े क्लाइमेटिक जोन या जलवायु क्षेत्र में बांटा गया है, जिसे भारतीय कृषि अऩुसंधान परिषद ने कृषि के लिहाज से 121 एग्रो क्लाइमेटिक जोन में विभाजित कर दिया है। उसी के हिसाब से फसलों का चयन भी करने की जरूरत है। सिंचाई के पुराने तरीके तो तत्काल बदलना होगा।

वरिष्ठ कृषि अर्थशास्त्री डॉ. पीके जोशी का कहना है कि फसल विविधीकरण कृषि क्षेत्र की ज्यादातर चुनौतियों का समाधान है। इसके अलावा कई नीतिगत फैसले लेने होंगे, जिसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का रणनीतिक उपयोग से किसानों को आकर्षित किया जा सकता है। उपज की सुनिश्चित खरीद का प्रविधान करना होगा। खरीद सुनिश्चित होने की वजह से ही धान और गेहूं जैसी फसलों को किसान नहीं छोड़ना चाहता है। जोशी का कहना है कि पीएम-किसान जैसी 62,000 करोड़ रुपये की योजना का लाभ देश के 9.5 करोड़ किसानों को प्राप्त हुआ। लेकिन धान की खरीद का लाभ चुनिंदा क्षेत्र के सीमित किसानों को मिला, जिस पर पौने दो लाख करोड़ रुपये खर्च हुए।

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