आत्मनिर्भर भारत अभियान को नई ऊंचाई देगी हिंदुस्तान जिंक, इस दिशा में कई कदम उठाएगी कंपनी
हिंदुस्तान जिंक के नए सीईओ अरुण मिसरा का कहना है कि कंपनी इस अभियान को नई ऊंचाई देने के लिए तैयार है। PC www.hzlindia.com
हिंदुस्तान जिंक सिर्फ वेदांता समूह की सबसे प्रमुख कंपनी ही नहीं है बल्कि भारत सरकार के सफल विनिवेश में से एक है। कोविड-19 से उबरती अर्थव्यवस्था और आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ते कदमों के बीच हिंदुस्तान जिंक के नए सीईओ अरुण मिसरा का कहना है कि कंपनी इस अभियान को नई ऊंचाई देने के लिए तैयार है। दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता जयप्रकाश रंजन से बातचीत के अंश :
प्रश्न- केंद्र सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान को हिंदुस्तान जिंक किस तरह से देख रही है?
उत्तर- आत्मनिर्भर भारत योजना सही समय पर लाई गई नीति है, जिसे हम सही परिप्रेक्ष्य में लागू करने की मंशा रखते हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने इस नीति का मतलब यह समझाया है कि हमें लोकल के लिए वोकल होना है, साथ ही वैश्विक बाजार के मुताबिक काम भी करना है। हिंदुस्तान जिंक की तरफ से इस क्रम में कई कदम उठाए जाएंगे। वैसे जिंक की बात करें तो भारत में इसकी खपत बढ़ने की काफी संभावना है। वैश्विक स्तर पर जिंक की खपत प्रति व्यक्ति दो किलोग्राम है जबकि भारत में सिर्फ 0.5 किलोग्राम है। नेस (नेशनल कमीशन ऑफ कॉरीसन इंजीनियर्स) नाम की एक अंतरराष्ट्रीय एजेंसी है, जिसका कहना है कि धातुओं में जंग लगने के कारण भारत को जीडीपी के 4.2 फीसद के बराबर का नुकसान होता है। इसे दूर करने के लिए हमें जिंक की खपत बढ़ानी होगी। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि हम इन्फ्रास्ट्रक्चर पर बहुत खर्च करने जा रहे हैं। कोविड-19 ने हमें यह मौका दिया है कि हम घरेलू के साथ ही वैश्विक बाजार में तेजी से विकास करें।
प्रश्न- इस राह में क्या बाधा लग रही है?
उत्तर- बाधा नहीं है लेकिन हमें वैश्विक कंपनियों के सामने टिकने के लिए समान अवसर चाहिए। मैं यहां जापान व दक्षिण कोरिया के साथ किए गए मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) का जिक्र करना चाहूंगा। एफटीए होने की वजह से इन देशों की कंपनियों को घरेलू कंपनियों के मुकाबले कई तरह के फायदे मिल सकते हैं। दूसरे देशों से आयातित जिंक व दूसरे मिनरल्स कई बार सस्ते पड़ते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए कि अब जबकि सरकार ने घरेलू मैन्युफैक्चरिंग पर ध्यान देना शुरू किया है, वह कुछ दूसरी वजहों से असफल हो जाए। हमें यह समझना होगा कि सर्विस सेक्टर की अपनी अहमियत है, लेकिन इकोनॉमी को असली मजबूती मैन्युफैक्चरिंग से मिलेगी। साथ ही हमें ज्यादा से ज्यादा माइनिंग करने की नीति लानी होगी। अभी भारत में जितनी माइनिंग की जा सकती है, उसके महज 10-12 फीसद पर ही माइनिंग हो रही है। सरकार को इस बारे में स्पष्ट नीति लानी होगी। बड़ी मैन्युफैक्चरिंग शक्ति बनने के लिए हमें ज्यादा से ज्यादा माइनिंग की जरूरत है।
प्रश्न- चांदी की कीमतों में हाल की बढ़ोत्तरी को लेकर आप कितने उत्साहित हैं?
उत्तर- जब भी वैश्विक इकोनॉमी की स्थिति डांवाडोल होती है, तो सोने के साथ चांदी की कीमतों में भी तेजी आती है। इसकी वजह साफ है कि निवेशक इसे सुरक्षित मानकर इसमें निवेश करते हैं। ऐसा इस बार भी हो रहा है। हम चांदी माइनिंग में भी एक बड़ी कंपनी हैं। हिंदुस्तान जिंक ने सिल्वर बिजनेस पर एक अलग इकाई ही बना दी है। वैसे इस वर्ष की पहली तिमाही में चांदी का उत्पादन कम रहा है। हम मौजूदा तिमाही में पहला जिंक फ्यूमर प्लांट शुरू करने पर ध्यान दे रहे हैं। इसके लिए हमें विदेश से विशेषज्ञों को लाना है, जो नहीं हो पा रहा है। इसके बाद हम चांदी खनन बढ़ाने पर ध्यान देंगे।