टेलीकॉम सेक्‍टर को सरकार दे सकती है बड़ी राहत, स्पेक्ट्रम शुल्क के लिए 2 वर्षों का मिल सकता है वक्‍त

कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में गठित सचिव समूह यह सुझाव दे सकता है कि टेलीकॉम कंपनियों को स्पेक्ट्रम शुल्क अदायगी में दो वर्ष की मोहलत दे दी जाए।

By Manish MishraEdited By: Publish:Tue, 19 Nov 2019 09:46 AM (IST) Updated:Tue, 19 Nov 2019 09:49 AM (IST)
टेलीकॉम सेक्‍टर को सरकार दे सकती है बड़ी राहत, स्पेक्ट्रम शुल्क के लिए 2 वर्षों का मिल सकता है वक्‍त
टेलीकॉम सेक्‍टर को सरकार दे सकती है बड़ी राहत, स्पेक्ट्रम शुल्क के लिए 2 वर्षों का मिल सकता है वक्‍त

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। गंभीर वित्तीय दबाव झेल रहे और एजीआर की जख्म खाए टेलीकॉम उद्योग को सरकार बड़ी राहत देने की तैयारी कर रही है। इसके तहत कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में गठित सचिव समूह यह सुझाव दे सकता है कि टेलीकॉम कंपनियों को स्पेक्ट्रम शुल्क अदायगी में दो वर्ष की मोहलत दे दी जाए। इसके साथ ही समूह यह भी मानता है कि लाइसेंस शुल्क की दर को एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) के मौजूदा आठ प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत किए जाने तक की राहत दी जा सकती है। हालांकि, इनपुट टैक्स क्रेडिट के रिफंड जैसे जीएसटी से जुड़े मामले जीएसटी काउंसिल को सौंपे जा सकते हैं। टेलीकॉम उद्योग इससे कहीं अधिक राहत की उम्मीद कर रहा और उसके लिए दबाव बना रहा है।

सचिवों का यह समूह सरकार की उस सोच से भी सहमति रखता है कि देश में तीन से ज्यादा टेलीकॉम आपरेटरों की आवश्यकता नहीं है। समूह की सिफारिशों पर कैबिनेट में इसी सप्ताह चर्चा की संभावना है। वैसे, टेलीकॉम कंपनियां समूह के रुख से संतुष्ट नहीं हैं और अधिक राहत पाने के लिए सरकार पर दबाव बना रही हैं।

सोमवार को टेलीकॉम उद्योग के संगठन सेल्यूलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI) ने स्पेक्ट्रम शुल्क की अदायगी के लिए दो के बजाय तीन साल की मोहलत दिए जाने की सरकार से मांग की। सीओएआइ के महानिदेशक राजन मैथ्यूज ने कहा कि ऑपरेटरों को बड़ी राहत की जरूरत है। इसलिए सरकार को टेलीकॉम कंपनियों के सभी बकायों के कर्ज-पुनर्गठन के बारे में भी विचार करना चाहिए। 

चूंकि ज्यादातर 4G लाइसेंस और 11 वर्ष तक ही वैध रहेंगे। लिहाजा सरकार को इनकी वैधता अवधि अतिरिक्त 10 वर्षो के लिए बढ़ानी चाहिए, ताकि ऑपरेटर लाइसेंस अवधि में ही अपने बकायों को भुगतान कर सकें। इसके अलावा एजीआर को नए सिरे से परिभाषित किया जाना चाहिए। 

इससे पहले सीओएआइ कुल लाइसेंस शुल्क को मौजूदा आठ प्रतिशत से घटाकर चार प्रतिशत तथा यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फीस (यूएसओएफ) को मौजूदा पांच प्रतिशत से घटाकर तीन प्रतिशत करने की मांग कर चुका है। संगठन ने यूएसओएफ की वसूली भी तब तक स्थगित करने की मांग रखी है, जब तक पूर्व में एकत्र यूएसओएफ कोष का पूरा इस्तेमाल नहीं हो जाए। वर्ष 2003 से 2019 के बीच उद्योग ने यूएसओएफ में 99,674 करोड़ रुपये का योगदान किया। जिसमें से 50,554 करोड़ रुपये का अभी तक कोई उपयोग नहीं हुआ है।

गौरतलब है कि सूचीबद्ध टेलीकॉम कंपनियों का कुल घाटा सितंबर के अंत तक बढ़कर एक लाख करोड़ रुपये पर पहुंच चुका था। सितंबर को समाप्त तिमाही में देश की दो अग्रणी टेलीकॉम कंपनियों वोडाफोन आइडिया तथा भारती एयरटेल का संयुक्त घाटा करीब 74 हजार करोड़ रुपये हो गया था। इसमें वोडाफोन आइडिया की हिस्सेदारी 50,921 करोड़ रुपये है। पिछले सप्ताह शुक्रवार को रिलायंस कम्यूनिकेशंस ने भी 30,142 करोड़ रुपये का घाटा घोषित किया है। माना जाता है कि एजीआर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते ही इन कंपनियों के घाटों में इतनी बढ़ोतरी हुई है।

सुप्रीम कोर्ट ने एजीआर की गणना को लेकर सरकार के नजरिये को सही ठहराया है। सरकार ने गैर-दूरसंचार व्यवसायों से प्राप्त राजस्व को भी एजीआर का हिस्सा माना है। इस हिसाब से भारती एयरटेल, वोडाफोन आइडिया तथा अन्य टेलीकॉम कंपनियों को लाइसेंस शुल्क के तौर पर सरकार को 1.40 लाख करोड़ रुपये अदा करने हैं। इनमें भारती एयरटेल को 62,187 करोड़ रुपये, वोडाफोन आइडिया को 54,184 करोड़ रुपये तथा बीएसएनएल, एमटीएनएल तथा कुछ दिवालिया हो चुकी टेलीकॉम कंपनियों को बाकी रकम अदा करनी है।

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