Future RIL deal पर अब आएगा सुप्रीम फैसला, जानिए अब तक कहां पहुंचा केस

फ्यूचर रिटेल (एफआरएल) के रिलायंस रिटेल के साथ विलय सौदे पर रोक लगाने के सिंगापुर आपात पंचाट (ईए) के फैसले के कानून सम्मत होने के बारे में अब Supreme Court अपना फैसला सुनाएगा। एफआरएल के रिलायंस के साथ 24713 करोड़ रुपये के विलय सौदे को लेकर केस चल रहा है।

By Ashish DeepEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 08:33 AM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 08:33 AM (IST)
Future RIL deal पर अब आएगा सुप्रीम फैसला, जानिए अब तक कहां पहुंचा केस
Amazon.com एनवी इन्वेस्टमेंट होंल्डिंग्स और फ्यूचर रिटेल कानूनी लड़ाई में उलझे हैं। (pti)

नई दिल्‍ली, पीटीआइ। फ्यूचर रिटेल (एफआरएल) के रिलायंस रिटेल के साथ विलय सौदे पर रोक लगाने के सिंगापुर आपात पंचाट (ईए) के फैसले के कानून सम्मत होने के बारे में अब Supreme Court अपना फैसला सुनाएगा। शीर्ष अदालत ने कहा है कि सिंगापुर आपात पंचाट का यह फैसला भारतीय कानून के तहत वैध है या नहीं और क्या इसका प्रवर्तन किया जा सकता है, इस बारे में वह निर्णय सुनाएगा।

एफआरएल के रिलायंस रिटेल के साथ 24,713 करोड़ रुपये के विलय सौदे को लेकर अमेरिका की ई-कॉमर्स क्षेत्र की दिग्गज Amazon.com एनवी इन्वेस्टमेंट होंल्डिंग्स और फ्यूचर रिटेल कानूनी लड़ाई में उलझे हैं।

न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने कहा कि हम यह तय करेंगे कि क्या ईए का फैसला मधयस्थता और सुलह कानून की की धारा 17 (1) के तहत आता है। यह धारा पंचाट न्यायाधिकरण के अंतरिम फैसले से संबंधित है। साथ ही क्या इस फैसले का प्रवर्तन कानून की धारा 17 (2) के तहत किया जा सकता है।

एफआरएल की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता की हरीश साल्वे ने पंचाट निर्णय की वैधता तथा इसके प्रवर्तन का उल्लेख किया, जिसके बाद पीठ ने यह निष्कर्ष दिया। एकल न्यायाधीश ने अमेजन को राहत देते हुए कहा था कि ईए का फैसला प्रवर्तन योग्य है। साल्वे ने कहा कि यह एक तरह से पंचाट और सुलह कानून में संशोधन करने जैसा है।

इस पर पीठ ने कहा कि हम यह फैसला करेंगे कि क्या ईए का फैसला टिकने योग्य है और क्या इस आदेश का प्रवर्तन हो सकता है।

क्‍या है विवाद

बता दें कि Amazon और Future Group के बीच कानूनी विवाद चल रहा है। अमेरिकी कंपनी ने फ्यूचर समूह के खिलाफ सिंगापुर के आपातकालीन मध्यस्थता न्यायाधिकरण में मामला दर्ज किया है। उसकी दलील है कि भारतीय कंपनी ने प्रतिद्वंद्वी रिलायंस इंडस्ट्रीज के साथ समझौता कर अनुबंध का उल्लंघन किया है।

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