खाद्य तेलों के वैश्विक रुख से घरेलू बाजार हलकान, आयात शुल्क में कटौती से भी कम नहीं हो रही हैं बाजार में कीमत

वैश्विक स्तर पर खाद्य तेलों में लगी आग से घरेलू बाजार में कीमतें बेकाबू होने लगी हैं। खाद्य तेलों की इस तेजी को रोकने के लिए सरकार की ओर से आयात शुल्क में कटौती के कदम से भी उपभोक्ताओं को कोई राहत नहीं मिल पा रही है।

By Ankit KumarEdited By: Publish:Mon, 01 Mar 2021 02:05 PM (IST) Updated:Tue, 02 Mar 2021 07:16 AM (IST)
खाद्य तेलों के वैश्विक रुख से घरेलू बाजार हलकान, आयात शुल्क में कटौती से भी कम नहीं हो रही हैं बाजार में कीमत
घरेलू बाजार की कुल खपत का 65 फीसद से अधिक खाद्य तेल आयात किया जाता है।

नई दिल्ली, सुरेंद्र प्रसाद सिंह। वैश्विक स्तर पर खाद्य तेलों में लगी आग से घरेलू बाजार में कीमतें बेकाबू होने लगी हैं। खाद्य तेलों की इस तेजी को रोकने के लिए सरकार की ओर से आयात शुल्क में कटौती के कदम से भी उपभोक्ताओं को कोई राहत नहीं मिल पा रही है। खाद्य तेलों के प्रमुख उत्पादक देशों से आपूर्ति घटने से अंतरराष्ट्रीय जिंस बाजार में तेजी का रुख है, जिसका सीधा असर घरेलू बाजार पर पड़ रहा है। कोरोना काल के दौरान आयातित पाम आयल की कीमतें 80 से 85 फीसद तक बढ़ी हैं।

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घरेलू बाजार की कुल खपत का 65 फीसद से अधिक खाद्य तेल आयात किया जाता है, जिस पर सालाना 70 हजार करोड़ रुपये से अधिक खर्च करना पड़ता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस असंतुलन को लेकर पिछले दिनों अपनी चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था कि खाद्य तेलों की कमी को हमारे किसान पूरा कर सकते हैं, जिसके एवज में आयात पर खर्च होने वाला धन किसानों के बैंक खातों में जमा कराया जा सकता है।

कांडला पोर्ट पर मई, 2020 में रिफाइंड पाम आयल का थोक भाव 68 रुपये प्रति किलो था, जो अब बढ़कर 116 रुपये हो गया है। कमोबेश अन्य आयातित खाद्य तेलों का भाव भी इसी तरह बढ़ा है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक, देश में सालाना 2.10 करोड़ टन खाद्य तेलों की खपत होती है, जिसमें लगभग 1.50 करोड़ टन का आयात करना पड़ता है। देश में 45 लाख टन सोयाबीन तेल, 75 लाख टन पाम आयल, 25 लाख टन सूरजमुखी तेल के साथ पांच लाख टन अन्य तेलों का आयात किया जाता है।

चालू रबी सीजन में सरसों की बंपर 1.04 करोड़ टन पैदावार का अनुमान लगाया गया है। 1.37 करोड़ टन सोयाबीन और 1.01 करोड़ टन मूंगफली की पैदावार का अनुमान है। उत्पादन के इस स्तर से घरेलू मांग पूरी नहीं हो सकती है। सरसों की फसल बाजार में आने से कीमतें कुछ समय के लिए थम सकती हैं, लेकिन महंगे आयात के कारण बहुत राहत की अभी उम्मीद नहीं दिख रही।

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