छह वर्ष से MSP से दोगुनी कीमत पर बेच रहे फसल, प्रति एकड़ हर साल पचास हजार की आय

सुरजीत सिंह जिनकी उपज छह वर्षो से एमएसपी से बहुत अधिक कीमत पर बिक जाती है। फतेहाबाद के भट्टू गांव निवासी सुरजीत सिंह हिसार जिले के काजला गांव में 23 एकड़ में जैविक खेती करते हैं। उनका कहना है कि किसान अपनी सरकार पर भरोसा करें।

By Pawan JayaswalEdited By: Publish:Sat, 26 Sep 2020 09:56 AM (IST) Updated:Sun, 27 Sep 2020 07:37 PM (IST)
छह वर्ष से MSP से दोगुनी कीमत पर बेच रहे फसल, प्रति एकड़ हर साल पचास हजार की आय
भारतीय किसानों के लिए प्रतीकात्मक तस्वीर PC Pexels

हिसार, चेतन सिंह। कृषि विधेयक और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर हंगामे के बीच कई किसान ऐसे भी हैं, जो अपनी फसल को एमएसपी से अधिक पर बेच रहे हैं। ऐसे ही किसान हैं सुरजीत सिंह, जिनकी उपज छह वर्षो से एमएसपी से बहुत अधिक कीमत पर बिक जाती है। फतेहाबाद के भट्टू गांव निवासी सुरजीत सिंह हिसार जिले के काजला गांव में 23 एकड़ में जैविक खेती करते हैं। उनका कहना है कि किसान अपनी सरकार पर भरोसा करें। एमएसपी तय होने से कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है।

किसानों को अपनी तकनीक में बदलाव करना होगा। यदि वे ऐसा करते हैं तो फसल अपने आप महंगे दामों पर बिकेगी। वह कहते हैं कि कृषि विधेयकों का विरोध उचित नहीं है। इनको लागू होने दें। यदि बाद में इनका बुरा प्रभाव पड़े तो विरोध करें।

प्रति एकड़ हर साल पचास हजार की आय

सुरजीत 5000 से 6000 रुपये प्रति क्विंटल गेहूं बेचते हैं जबकि एमएसपी 1975 रुपये प्रति क्विंटल है। वह कहते हैं कि किसान कीटनाशक का अधिक उपयोग करते हैं, लेकिन वह (सुरजीत) देसी खाद से जहरमुक्त अनाज पैदा करते हैं। अब लोग स्वास्थ्य के प्रति सचेत हो रहे हैं और महंगे दाम पर अच्छा अनाज खरीदने में नहीं हिचकते। वह बताते हैं कि सरसों का एमएसपी 4600 रुपये प्रति क्विंटल है, लेकिन वह 6000 रुपये प्रति क्विंटल सरसों बेच रहे हैं। वह सीधे सरसों नहीं बेचते, बल्कि तेल और खल निकालकर बेचते हैं। इसी प्रकार देसी बाजरा, जिसका एमएसपी 1800 रुपये प्रति क्विंटल है, वह 3500 रुपये प्रति क्विंटल बेच रहे हैं। सुरजीत ने बताया कि जहां उनके खेत हैं, वहां खेती के लिए पानी की उपलब्धता कम है। बावजूद इसके, वह हर साल 50 हजार रुपये प्रति एकड़ शुद्ध लाभ कमा रहे हैं।

बिना बिचौलियों के ही बेचते हैं अपनी उपज

सुरजीत ने बताया कि उन्होंने जिन लोगों को अपनी फसल बेची, उन्होंने ही उसकी मार्के¨टग कर दी। इसका फायदा सीधा उनको हुआ। अब सरकार भी यही कर रही है। कृषि विधेयक में बिना बिचौलिये के फसल बेचने की आजादी दी गई है। अगर किसान की उपज अच्छी है तो वह अच्छे दाम पर स्वत: बिक जाएगी। बिचौलिए की आवश्यकता ही नहीं होगी।

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