कोरोना ने GDP को बड़ा नुकसान पहुंचाया, तेज वैक्सीनेशन से ही पटरी पर आएगी इकोनॉमी: अशु सुयश

पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में काफी तेज गिरावट के बाद चौथी तिमाही में भारत की आर्थिक विकास दर महामारी से पूर्व की स्थिति में लौट पाई थी। हालांकि हमने जो प्रगति की थी उस पर इस वर्ष की पहली तिमाही ने कुछ हद तक पानी फेर दिया है।

By Pawan JayaswalEdited By: Publish:Sun, 11 Jul 2021 07:58 AM (IST) Updated:Mon, 12 Jul 2021 06:57 AM (IST)
कोरोना ने GDP को बड़ा नुकसान पहुंचाया, तेज वैक्सीनेशन से ही पटरी पर आएगी इकोनॉमी: अशु सुयश
Indian Economy ( P C : Flickr )

नई दिल्ली, जय प्रकाश रंजन। देश की प्रमुख रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की एमडी व सीईओ अशु सुयश मानती हैं कि कोरोना महामारी ने जीडीपी को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। फिलहाल सरकार को दो मुद्दों पर सबसे ज्यादा ध्यान देना चाहिए। पहला, टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाई जानी चाहिए। दूसरा, जिन सेक्टर पर सबसे ज्यादा कोरोना महामारी का असर हुआ है, उन्हें मदद देने की विशेष कोशिश होनी चाहिए। दैनिक जागरण के जय प्रकाश रंजन से बातचीत के प्रमुख अंश:

सवाल: कोरोना की दूसरी लहर के देश की इकोनॉमी पर असर का आकलन क्रिसिल किस तरह से कर रहा है?

जवाब: हमारा मानना है कि दूसरी लहर ने भारत में निजी खपत व निवेश पर काफी असर डाला है। इन दोनों को आर्थिक विकास के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। कोरोना की पहली लहर से इकोनॉमी में देश की आजादी के बाद की सबसे बड़ी गिरावट आई। उससे उबरने की कोशिशों के बीच ही कोरोना ने दोबारा असर दिखाना शुरू किया और इससे स्थिति काफी बदल गई। लॉकडाउन का उपभोक्ताओं और कारोबारियों के मनोबल पर काफी असर दिखा है। दूसरी लहर अब काफी कमजोर हो चुकी है लेकिन रोजाना नए संक्रमण की संख्या बहुत कम नहीं कही जा सकती। तीसरी लहर की भी बात हो रही है और टीकाकरण की रफ्तार भी पर्याप्त नहीं है। कई सेक्टरों के लिए अभी भी लॉकडाउन है। इन सभी हालातों को देखते हुए हमने चालू वित्त वर्ष के लिए देश का आर्थिक विकास अमुमान 11 फीसद से घटाकर 9.5 फीसद किया है। वैसे, बेहद निराशा भरे माहौल में भी हम इस वर्ष आर्थिक विकास दर कम से कम आठ फीसद पर रहने की उम्मीद कर रहे हैं।

सवाल: विकास दर की स्थिति कब सामान्य होने की उम्मीद आप कर रही हैं और अगले तीन-चार वर्षों की स्थिति कैसी दिखाई दे रही है?

जवाब: पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में काफी तेज गिरावट के बाद चौथी तिमाही में जाकर ही भारत की आर्थिक विकास दर महामारी से पूर्व की स्थिति में लौट पाई थी। हालांकि हमने जो प्रगति की थी, उस पर इस वर्ष की पहली तिमाही ने कुछ हद तक पानी फेर दिया है। ऐसा लगता है कि एक तिमाही से ज्यादा का समय लगेगा जब हालात महामारी से पहले वाली में पहुंच सके। हमने 9.5 फीसद ग्रोथ रेट का अनुमान इस आधार पर लगाया है कि दूसरी तिमाही के बाद हालात में ज्यादा तेजी से सुधार होगा। अगर मध्यावधि यानी 2021 से वर्ष 2025 के बीच का अनुमान लगाया जाए तो महामारी की वजह से रीयल जीडीपी का आकार 10.9 फीसद घटता दिख रहा है। महामारी की वजह से इकोनॉमी में इसे स्थायी हानि के तौर पर देखा जा सकता है। इकोनॉमी में तेजी से सुधार या तेज वृद्धि का दौर हमें वित्त वर्ष 2022-23 में ही लौटता दिखाई देता है। तब तक अधिकांश आबादी को वैक्सीन लग चुकी होगी। सरकार का दावा है कि इस वर्ष अंत तक 88 फीसद वयस्कों को वैक्सीन लग चुकी होगी। लेकिन हमारा अनुमान है कि 70 फीसद वयस्कों को ही वैक्सीन लग सकेगी।

सवाल: इस हालात में आप किस तरह के राजकोषीय कदम उठाने का सुझाव देना चाहेंगी?

जवाब: महामारी ने जिन सेक्टरों पर सबसे ज्यादा असर डाला है, उन्हें आसानी से कम दर पर कर्ज की व्यवस्था करनी होगी। हेल्थकेयर, छोटे कारोबारियों और उपभोक्ताओं को तरलता की परेशानी का समाधान निकालना होगा। आरबीआइ की मौद्रिक नीति के साथ ही सरकार की वित्तीय नीति भी मौजूदा हालात में काफी जरूरी है जो आम जनता तक राहत पहुंचाने में ज्यादा कारगर साबित हो सकती है। दो क्षेत्रों में सरकार अपने फंड का इस्तेमाल बेहतर तरीके से कर सकती है। पहला, टीकाकरण की तेजी पर, क्योंकि जब तक सभी को टीका लगाकर सुरक्षित नहीं किया जाएगा तब तक महामारी के आगामी प्रकोप को रोकना मुश्किल है। दूसरा, छोटे उद्यमियों, ग्रामीण आय, सेवा सेक्टर और शहरी गरीबों की दशा सुधारने पर पर्याप्त खर्च करना, क्योंकि लॉकडाउन से इन चारों सेक्टरों की स्थिति काफी खराब हुई है। ग्रामीण इकोनॉमी के लिए मनरेगा और पीएम आवास योजना पर फोकस देने व आवंटन बढ़ाने से काफी फर्क दिखेगा। शहरी इकोनॉमी की बात करें तो वहां असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को मदद देना अभी जरूरी है। सर्विस सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित है और लॉकडाउन खुलने के बावजूद इसकी स्थिति में कोई खास सुधार नही दिख रहा है। शहरों की 70 फीसद इकोनॉमी सर्विस सेक्टर से ही चलती है। इस सेक्टर में कोई जॉब गारंटी नहीं है। छोटी कंपनियो को तो तीन तरफ से झटका लगा है। मांग भी नहीं है, आपूर्ति में समस्या है और लागत भी बढ़ रही है। इन्हें सरकार से और ज्यादा मदद की जरूरत है।

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