स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति अब विशेष रिजोल्यूशन से ही हो पाएगी, जनवरी से लागू होगा नियम

लगभग सभी संस्थागत निवेशक चाहे भारतीय हों या विदेशी वे प्रॉक्सी सलाहकार फर्मों की सलाह के आधार पर ही काम करते हैं। वास्तव में इसका मतलब यह है कि भारत और विदेशों में बैठे मुट्ठी भर प्रॉक्सी सलाहकार फर्म ही इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स की नियुक्ति को प्रभावित करने लगेंगे।

By NiteshEdited By: Publish:Fri, 06 Aug 2021 07:47 AM (IST) Updated:Fri, 06 Aug 2021 07:47 AM (IST)
स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति अब विशेष रिजोल्यूशन से ही हो पाएगी, जनवरी से लागू होगा नियम
रिटेल निवेशकों की उपस्थिति बहुत कम होती है

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। कंपनियों में स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति अब एक विशेष रिजोल्यूशन के तहत ही हो सकेगी। यह नियम जनवरी से लागू होगा। सेबी ने कुछ समय पहले ही इस संबंध में दिशा निर्देश जारी किया था। सेबी के पूर्व चेयरमैन एम. दामोदरन ने कहा कि स्वतंत्र निदेशकों (Independent Directors) की स्वतंत्रता में सुधार के लिए सेबी की कोशिश जारी रहेगी। हाल ही में उठाए गए एक कदम में यह प्रावधान किया गया है कि 1 जनवरी, 2022 से इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स की नियुक्ति या फिर से नियुक्ति विशेष रिजोल्यूशन के माध्यम से ही होगी। इसका मतलब यह होगा कि 75% शेयरधारकों का समर्थन इसके लिए जरूरी होगा।

एक्सीलेंस एनेबलर्स के चेयरमैन दामोदरन ने कहा कि मौजूदा समय में यह स्थिति कि पहले नियुक्ति एक ऑर्डिनरी रिजोल्यूशन के माध्यम से होती थी। सेबी इस बदलाव के जरिए यह सुनिश्चित करना चाह रही है कि माइनॉरिटी शेयरधारकों की भी इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स की नियुक्ति में सुनी जाए।

मार्केट कैप के अनुसार टॉप 50 कंपनियों के लिए वोटिंग पैटर्न को देखने से पता चलता है कि पिछले 1 वर्ष में 199 मामलों में से केवल एक मामला ऐसा था जिसमें शेयरधारकों का समर्थन 75% से नीचे था। वह भी बहुत मामूली (74.489%) रूप से। इससे पता चलता है कि कंपनियों में नियुक्ति के लिए प्रस्तावित किए जा रहे उम्मीदवारों के साथ माइनॉरिटी शेयरधारकों को कोई समस्या खड़ी नहीं हुई है। इस तरीके से रिटेल निवेशकों को प्रतिनिधित्व देने पर विचार किया गया है। यह देखा गया है कि सभी मामलों में टॉप 50 कंपनियों में शेयरधारकों के गठन में संस्थागत निवेशकों का एक बड़ा हिस्सा होता है।

रिटेल निवेशकों की उपस्थिति बहुत कम होती है। बदलाव का असर यह होगा कि इससे इस कैटेगरी के लोग इसके लिए सक्षम होंगे। लगभग सभी संस्थागत निवेशक, चाहे भारतीय हों या विदेशी, वे प्रॉक्सी सलाहकार फर्मों की सलाह के आधार पर ही काम करते हैं। वास्तव में इसका मतलब यह है कि भारत और विदेशों में बैठे मुट्ठी भर प्रॉक्सी सलाहकार फर्म ही इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स की नियुक्ति को प्रभावित करने लगेंगे।

दामोदरन ने कहा कि भारत में कारोबार गहरे अविश्वास के माहौल में होता है। ऐसा लगता है कि यह अविश्वास व्यापारियों से इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स में ट्रांसफर हो गया है। सेबी के कंसल्टेशन पेपर ने इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स की नियुक्ति के लिए दो चरणों में अप्रूवल प्रोसेस की बात कही है। इसमें पहला चरण मौजूदा प्रावधान को ही आगे बढ़ाने वाला था। इसके मुताबिक, इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स के रूप में किसी व्यक्ति की नियुक्ति के लिए कोई प्रस्ताव शेयरधारकों के बहुमत के समर्थन से पारित किया जाना चाहिए।

प्रस्ताव में यह कहा गया था कि जहां किसी व्यक्ति की उम्मीदवारी बहुसंख्यक अल्पसंख्यकों (majority of the minority) के अप्रूवल से से मैच नहीं होती है, वहां कंपनी फिर से इस प्रस्ताव को शेयरधारकों के पास ले जा सकती है और सिंपल मैजोरिटी से अप्रूवल प्राप्त कर सकती है।

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