रबी की शून्य जोताई विधि से खेती के लिए पंचायतों में मिल रहा प्रशिक्षण
बेतिया । किसानों की आय दोगुनी और खेती में लागत कम करने के लिए केंद्र व राज्य सरकार संकल्पित है।
बेतिया । किसानों की आय दोगुनी और खेती में लागत कम करने के लिए केंद्र व राज्य सरकार संकल्पित है। इसके मद्देनजर कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा किसानों के हित में अनेक योजनाएं व कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इस परिप्रेक्ष्य में जलवायु अनुकूल कार्यक्रम के तहत जीरो टिलेज यानी शून्य जुताई विधि को बढ़ावा देने के लिए विज्ञान केंद्र के विज्ञानियों द्वारा पंचायतों में पहुंचकर किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उन्हें अवगत कराया जा रहा कि जीरो टिलेज यंत्र द्वारा गेहूं समेत रबी फसलों की बुवाई कितनी सहज और लाभकारी है। वरिष्ठ विज्ञानी डा. आरपी सिंह ने बताया कि धान-गेहूं फसल प्रणाली में अधिक पैदावार देने वाली धान की किस्में बोने से पकने में जो ज्यादा समय लेती हैं। इससे गेहूं की बुवाई समय पर नहीं हो पाती। जिससे गेहूं की पैदावार में कमी आती है। गेहूं की बुवाई 30 नवंबर के बाद करने से प्रति हेक्टेयर प्रतिदिन 25 से 30 किलोग्राम गेहूं की पैदावार में कमी आती है। इसलिए जीरो टिलेज तकनीक का अधिक से अधिक इस्तेमाल करें।
जीरो टिलेज तकनीकी से खेती के फायदे
कृषि विज्ञानी ने बताया कि जीरो टिलेज मशीन से गेहूं की बुवाई दस से पंद्रह दिन पहले की जा सकती है। देर से बुवाई के कारण पैदावार में होने वाले नुकसान की भरपाई होगी। कम समय में अधिक क्षेत्रफल की बुवाई की जा सकेगी। बुवाई करने पर पहली सिचाई के बाद गेहूं के पौधे पीले नहीं पड़ते हैं तथा पूरे खेत में समान रूप से पानी लग जाता है। परंपरागत विधि की अपेक्षा इससे गेहूं की बुवाई करने से बीज का अंकुरण भी अधिक एवं दो से तीन दिन पहले हो जाता है। मृदा संरचना एवं उर्वरता बनी रहती है, जिससे गेहूं के पौधे की बढ़वार ठीक होती है। खरपतवार कम उगते हैं एवं खरपतवार नियंत्रण में लगने वाली लागत कम होती है।