अब थरुहट और थारूओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेगी पहचान

बेतिया। इंडो-नेपाल बॉर्डर पर बसे अनुसूचित जनजाति (थारूओं) के साथ ही इस थरुहट क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 08 Jan 2020 12:31 AM (IST) Updated:Wed, 08 Jan 2020 12:31 AM (IST)
अब थरुहट और थारूओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेगी पहचान
अब थरुहट और थारूओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेगी पहचान

बेतिया। इंडो-नेपाल बॉर्डर पर बसे अनुसूचित जनजाति (थारूओं) के साथ ही इस थरुहट क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी। यहां के हस्तनिर्मित उत्पादों को अब बुलंदियां छूने का मौका मिल सकेगा। जिले से बाहर निकलकर इनके उत्पाद राष्ट्रीय स्तर पर अपनी धाक जमाएंगे। शीघ्र ही ऐसा होने वाला है। थारूओं के सांस्कृतिक विकास एवं उन्हें रोजगार मुहैया कराने के लिए नेपाल की एक संस्था मदद को तैयार है। थारू जनजातियों की सांस्कृतिक विरासत, उनके रहन सहन आदि को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने की तैयारी चल रही है। इसको लेकर भारत सरकार की एक टीम भी आई है। थरुहट क्षेत्र विकास अभिकरण के अधिकारियों के साथ टीम के सदस्य दो दिनों तक थरुहट के गांवों में जाएंगे। थारू जनजातियों के रहन-सहन, उनकी सांस्कृतिक पहचान और रोजगार की संभावनाओं की तलाश करेंगे। डीएम डॉ. निलेश रामचंद्र देवरे ने बताया कि इसमें नेपाल की एक संस्था की मदद ली जा सकती है। जिले में रहने वाले थारूओं की सांस्कृतिक विरासत के साथ ही जंगल की सुरक्षा एवं संरक्षण से भी वहां के थारूओं को जोड़ना है।

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नेपाल के प्रयोग को वीटीआर में उतारने की कोशिश

नेपाल में जंगलों के बीच बसे आधा दर्जन ऐसे गांव हैं जो वनों के सामूहिक प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक उन्नति के अपने अनोखे प्रयोग के चलते प्रसिद्ध हुए हैं। इन गांवों में बाघों और जंगली जानवरों के हमले से परेशान थारू समुदाय ने अपने परंपरागत ज्ञान और सामूहिक प्रयास से हिसक जानवरों से जान माल की सुरक्षा का टिकाऊ और लाभदायक तरीक़ा खोज लिया है। इसी प्रकार जंगली जानवरों से फसलों के नुकसान को बचाने के लिए तोड़ निकाला है। वैसे, फसलों की खेती कर आर्थिक रूप से समृद्ध हुए हैं, जिन फसलों को जंगली जानवर क्षति नहीं पहुंचाते। परंपरागत गेहूं की खेती के मुक़ाबले मिट और कैमामिल की खेती से आमदनी कई गुना बढ़ गई है। मेंथा और कैमामिल फूलों के तेल का निर्यात ऊंचे दाम पर यूरोप एवं अन्य देशों को होता है। जलावन की लकड़ी की निर्भरता को खत्म करने के लिए घरों में गोबर गैस प्लांट लगाए गए हैं। बिजली के वितरण की व्यवस्था पंचायतों के हवाले है। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए होम स्टे या पेईग गेस्ट की व्यवस्था की है। थारू परिवार पर्यटकों को अपना परंपरागत खाना और नाश्ता देते हैं। शाम को मनोरंजन के लिए थारू नृत्य का कार्यक्रम होता है। नेपाल में जंगल के बीच बसे गांवों के इस प्रयोग को प्रशासन की ओर से वीटीआर में उतारने की कोशिश है।

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कोट--

जिले को पर्यटन के क्षेत्र में विश्व स्तरीय पहचान दिलाने के लिए कोशिश हो रही है। जंगल भी सुरक्षित रहे। जंगली जानवरों का भी संरक्षण हो और वहां निवास करने वाले लोगों का विकास हो, इसकी कवायद जारी है।

-- डॉ. निलेश रामचंद्र देवरे, डीएम, बेतिया।

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