कोरोना व लॉकडाउन का नाम सुनते ही सहम जाते हैं लोग

बगहा। कोरोना संक्रमण को देखते हुए बीते वर्ष 25 मार्च से लॉकडाउन की शुरुआत हुई थी। लॉक

By JagranEdited By: Publish:Thu, 25 Mar 2021 12:41 AM (IST) Updated:Thu, 25 Mar 2021 12:41 AM (IST)
कोरोना व लॉकडाउन का नाम सुनते ही सहम जाते हैं लोग
कोरोना व लॉकडाउन का नाम सुनते ही सहम जाते हैं लोग

बगहा। कोरोना संक्रमण को देखते हुए बीते वर्ष 25 मार्च से लॉकडाउन की शुरुआत हुई थी। लॉकडाउन के चलते ट्रेन, बस और हवाई सेवा बंद कर दी गई थी। जरूरी सेवाओं यथा दूध, दवा, किराना, सब्जी आदि को छोड़कर सभी दुकानें बंद थीं। लोगों को एक-दूसरे से अलग रहने के लिए कहा जा रहा था। हर व्यक्ति ने ऐसा किया भी क्योंकि लोगों के लिए लॉकडाउन एक नया अनुभव था। इस दौरान हालात ऐसे बने कि चारों ओर अनिश्चितता का माहौल कायम हो गया था। पहले 15 दिन लॉकडाउन की घोषणा हुई। बाद में बढ़ा दिया गया था। परदेस में रह रहे तमाम लोग अपने घर पहुंचने को बेचैन होने लगे। कई वर्षों से बाहर रहने वाला व्यक्ति भी अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे थे। नतीजा हुआ कि जो जहां था। वहीं से घर की ओर चल पड़े। जिसमें पैदल से लेकर साइकिल वाले भी शामिल थे।

पैदल घर पहुंचे नौतनवां निवासी शैलेश कुमार, राजीव कुशवाहा, शकुंतला देवी, रीना कुमारी आदि ने बताया कि जिदगी का कोई भरोसा नहीं दिख रहा था। 20 सालों से जिस कंपनी में काम कर रहे थे उसने पैसा देना बंद कर दिया। जिसका नतीजा हुआ कि 15 साल पुराना मकान मालिक घर खाली करने को बोल दिया। ऐसे में चहुंओर अनिश्चितता व अंधकार दिखने लगा था। सो बिना कोई परवाह किए पैदल ही घर को निकल गए। उस दौरान अपने ऊपर बीते अनुभवों को साझा करते हुए रीना कुमारी ने बताया कि दुनिया में अपना घर व अपना गांव सबसे उत्तम है। परदेस में काम करने से पैसा मिल सकता है लेकिन, मौके पर काम आने के लिए अपना गांव व अपने लोगों का होना जीवन के लिए बहुत जरूरी होता है।

प्रवासियों के लिए धरातल पर नहीं दिख रहीं योजनाएं

परदेस से वापस लौटने वालों के लिए सरकार के द्वारा तमाम घोषणाएं की गई थी। लेकिन, धरातल पर ऐसा कुछ भी नहीं दिखा। ट्रेन से उतरने वालों को जानवरों की तरह बस में ठूंस कर लाया जाता था। जिसका संबंधित प्रखंड मुख्यालय पर रखकर पीएचसी में स्क्रीनिग करने की व्यवस्था थी। जिसके लिए घंटों लंबी लाइन में खड़े होने की मजबूरी थी। शास्त्रीनगर के मो. इरशाद ने बताया कि बेतिया से बस में बैठाकर यहां भेज दिया गया। बिना कुछ खाए-पीए घंटों लाइन में लगकर स्क्रीनिग कराने के लिए खड़े रहना पड़ा। उसके बाद विद्यालय में भेज दिया गया। वहां एक बार सुबह व एक बार शाम में भोजन मिलता था। वह भी एक दिन था। बीत गया। याद आता है तो कलेजा मुंह को आ जाता है। जब अपने लोग चहारदीवारी के बाहर से देखते थे। लेकिन, मिलने की विवशता थी। किसी तरह वह 14 दिन भी बीत ही गया। सपरिवार पैदल चलकर पूना से बगहा पहुंचे कैलाश गिरी ने बताया कि ढोलबजवा जाने के लिए ऑटो वाला एक हजार रुपया मांग रहा था। पानी के लिए गला सूख रहा था। एक सज्जन के द्वारा बगहा चौक के पास मेरे डेढ़ वर्षीय बेटा को एक लीटर दूध देते हुए मेरे साथ पत्नी को भी अपने घर ले जाकर स्नान कराकर भोजन कराया गया। जिसका उपकार आज भी मेरे माथे पर हुआ है। उस दिन को याद करते हुए कैलाश व उनकी पत्नी ने कहा कि दो दिन के भूखे प्यासे अंजान व्यक्ति को अपने घर में शरण देकर इतना कुछ करने वाले व्यक्ति को हमलोग देवता मानते हैं। कहते हुए उनकी आंखे भर आई । डुमवलिया के छोटे मियां ने बताया कि हर कदम पर काम आने का वादा करने वाले विधायक सांसद सहित अन्य जन प्रतिनिधियों को भी याद किए लेकिन कोई काम नहीं आया। बताया कि

सरकारी आदेश के अनुसार जिले में जितने विद्यालय थे सबको क्वारंटाइन सेंटर बना दिया गया था। उसमें सिर्फ प्रवासी ही रहते थे। उनके रहने, नहाने खाने से लेकर सारी व्यवस्था वहां उपलब्ध कराई गई थी। काम से लौटने के बाद 14 दिन एक ही स्थान पर गुजारने की विवशता ने पेंटर को पेंटिग करने के लिए प्रेरित किया तो मजदूर को मजदूरी के लिए। वहीं किसी ने योगा भी किया तो किसी ने गाना बजाना करके किसी तरह 14 दिन का समय व्यतीत किया। सरकारी योजना के तहत मनरेगा से काम मिलने की बात कहते हुए मुखिया आदि के द्वारा काम मिला लेकिन, समय पर भुगतान नहीं मिलने के कारण पुन: बेरोजगारी की मार झेलनी पड़ी। छोटे मियां ने बताया कि उनको नरईपुर उच्च विद्यालय में रहने का अवसर मिला था। उसको साफ सफाई करते हुए पेंट आदि कर दिया गया। जिसको देखकर पदाधिकारी भी खुश हो गए थे। रामायण, महाभारत देख कर समय करते थे व्यतीत इंसेट : लॉकडाउन के दौरान दूरदर्शन नेशनल पर रामायण, महाभारत, श्रीकृष्णा जैसे चर्चित धारावाहिकों के पुन: प्रसारण ने भी उस दौर में सकारात्मक सामाजिकता का परिचय दिया। महाकाव्य आधारित इन धार्मिक व ऐतिहासिक धारावाहिकों की लोकप्रियता पुन: स्थापित हुई। साथ ही समाज में एक बार पुन: धर्म व इतिहास के प्रति आम लोगों की चेतना जागृत हुई। नरईपुर निवासी नरेंद्र पांडेय, सेवानिवृत्त महात्म बैठा आदि ने कहा कि सरकारी निर्देश के अनुसार उम्र दराज लोगों का घर से निकलना अधिक घातक था। लेकिन, हमारा समय व्यतीत करना भी किसी चुनौती से कम नहीं था। ऐसे में इस प्रकार के धारावाहिक का प्रसारण शुरू हो जाने से समय कटने के साथ आस्था को भी बल मिला। बहुत दिनों बाद सपरिवार देखने लायक धारावाहिक का प्रसारण हुआ।

chat bot
आपका साथी