बाबुल के अरमानों का कत्ल, दहेज की बलि चढ़ रहीं बेटियां
बेतिया। तीन साल पहले गोपालपुर के बैसखवा में रेशमी देवी के घर उत्सवी माहौल था। दरवाजे पर ल
बेतिया। तीन साल पहले गोपालपुर के बैसखवा में रेशमी देवी के घर उत्सवी माहौल था। दरवाजे पर लाउडस्पीकर से मंगलगीत बज रहे थे। सगे संबंधी सज धज कर बरात के आने का इंतजार कर रहे थे। घर के लोग खुशी से फुले नहीं समा रहे थे। आखिर खुशी हो क्यों नहीं, उनकी पुत्री रानी की शादी जो थी। बैंड बाजे के साथ बरात दरवाजे पर पहुंची तो उत्साह चरम पर पहुंच गया। शादी के बाद अगले दिन पुत्री की विदाई हुई। लेकिन घर वालों को क्या पता था जिसने सात जन्मों तक साथ निभाने का वादा किया है वही उनकी पुत्री की जान ले लेगा। बीते शनिवार की रात ससुराल वालों ने दहेज के लिए रानी की गला दबाकर हत्या कर दी। जब तक मायके वाले उनके गांव बलथर के पुरैनिया पहुंचे ससुराल वाले फरार हो गए थे। गर्भवती रानी की लाश घर के आंगन में पड़ी थी। सिर्फ रानी ही नहीं उसके माता-पिता के अरमानों की भी हत्या हो गई थी। दहेज के लिए विवाहिता की हत्या का यह सिर्फ एक उदाहरण नहीं है। विगत माह ही नौतन के बैरा परसौनी में ससुराल वालों ने दहेज के लिए सविता देवी को मारपीट कर घर से निकाल दिया। दो वर्ष पहले ही सविता की शादी हुई है। ससुराल वाले सोने की चेन और अंगूठी के लिए सविता को लगातार प्रताड़ित कर रहे थे। जिले में दहेज के लिए प्रताड़ित करने और बाद में मार देने की मामलों का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। सरकार की ओर से दहेज पर पूरी तरह पाबंदी के बाद भी जिले में दहेज लेने और देने का काम जारी है। बिना दहेज दिए पुत्री की शादी आज भी पिता के लिए एक सपना ही है।
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धीरे-धीरे बुराई पर लगेगी अंकुश
मनोविज्ञान कि सेवानिवृत्त प्राध्यापक उमा पांडेय का कहना है कि पुरानी मानसिकता से जकड़े कुछ लोग दहेज के लिए बहू को प्रताड़ित करते हैं। लालचवश बहू के मायके से दहेज की उम्मीद रखते हैं। लेकिन अब समाज में काफी बदलाव आया है। शिक्षा का दायरा भी बढ़ा है जिससे धीरे-धीरे लोगों के मानसिकता में भी बदलाव आ रहा है। जागृति फैलाकर इस बुराई को धीरे-धीरे ही खत्म किया जा सकता है। कानून बनाकर इसे एकाएक खत्म करना आसान नहीं है।
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दोषियों को मिले कठोर सजा तो लगेगा अंकुश
अधिवक्ता रंजना तिवारी का कहना है कि दहेज के लिए बहू को प्रताड़ित करने वालों को कठोर सजा मिलनी चाहिए। कानून में कड़े सजा का प्रावधान भी है। हालांकि वे मानती हैं कि दहेज प्रताड़ना या दहेज हत्या के कई मामले झूठे साबित होते हैं। कई मामलों में स्वाभाविक मौत के बाद भी मायके वाले लालच या बदले की भावना के कारण दहेज हत्या या प्रताड़ना का मुकदमा दर्ज करा देते हैं। जो बाद में झूठा साबित होता है। कई मामलों में तो मायके वाले ससुराल वालों को ब्लैकमेलिग भी करते हैं और कुछ ले देकर मामला रफा-दफा कर लेते हैं।
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दहेज हत्या के दर्ज मामले एक नजर में
वर्ष मामले
2010 -- 33
2011 -- 32
2012 -- 28
2013 -- 27
2014 -- 39
2015 -- 17
2016 -- 29
2017 -- 34
2018 -- 45
2019 -- 34
2020-- 28-अक्टूबर माह तक
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कोट --
दहेज के लिए बहू को मारना घिनौनी हरकत है। ऐसा करने वालों को कानून से कड़ा दंड मिलता है। इस पर अंकुश के लिए पुलिस लगातार कार्रवाई कर रही है। कई दोषियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया गया है।
ललन मोहन प्रसाद
डीआइजी, चंपारण रेंज बेतिया।