कोरोना के खौफ के साथ असाक्षर होने की पीड़ा से भी मुक्ति

14 दिनों की क्वारंटाइन अवधि प्रवासियों के लिए किसी तपस्या से कम नहीं है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 25 May 2020 12:59 AM (IST) Updated:Mon, 25 May 2020 06:12 AM (IST)
कोरोना के खौफ के साथ असाक्षर होने की पीड़ा से भी मुक्ति
कोरोना के खौफ के साथ असाक्षर होने की पीड़ा से भी मुक्ति

नरकटियागंज। 14 दिनों की क्वारंटाइन अवधि प्रवासियों के लिए किसी तपस्या से कम नहीं है। क्वारंटाइन सेंटर में समय काटना मुश्किल है। प्राय: प्रवासी यहीं चाहते हैं कि इस तपस्या गृह से जल्दी मुक्ति मिले। इसके लिए वे प्रयास भी करते हैं। ताकि घर जाएं और स्वजनों के साथ समय बिताएं। हालांकि जिन्होंने क्वारंटाइन अवधि पूरा कर ली है और अपने घर चले गए हैं। वे प्रतिदिन क्वारंटाइन सेंटर में गुजरे तपस्या के पल की चर्चा अपनों से कर रहे हैं। लेकिन, इससे इतर एक क्वारंटाइन सेंटर में रह रहे 20 प्रवासी ऐसे हैं, जो चाहते हैं कि 14 दिन की क्वारंटाइन अवधि पूरा करने के बाद ही घर जाएंगे। दरअसल, डीएवी क्वारंटाइन सेंटर में प्रशासन की ओर से असाक्षर प्रवासियों के लिए स्मार्ट क्लास चल रहा है। इस अभियान में अक्षर ज्ञान से रोजगार तक जोड़ने की पहल प्रशासन की ओर से की गई है। इस क्वारंटाइन सेंटर में 20 असाक्षर प्रवासी हैं। जिन्हें हिन्दी और अंग्रेजी अक्षर ज्ञान कराया जा रहा है। प्रखंड विकास पदाधिकारी राघवेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि मजदूरों को स्मार्ट क्लास के माध्यम से अक्षर ज्ञान कराया जा रहा है। महज चार दिन में सात- आठ ऐसे प्रवासी हैं, जिन्होंने हस्ताक्षर करना सीख लिया है। स्मार्ट क्लास के निदेशक बीडीओ राघवेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि डीएवी के प्राचार्य संजय कुमार अंबष्ठ और शिक्षक संजय शरण सिन्हा के सानिध्य में अभियान शुरू की गई है। प्रखंड प्रशासन ने इसके लिए पाठ्यक्रम भी तैयार कराया है, जिसमें हिन्दी वर्णमाला ज्ञान, अंग्रेजी वर्णमाला ज्ञान, नाम लेखन एवं हस्ताक्षर कला का ज्ञान प्रवासी मजदूरों को कराया जा रहा है। प्रतिदिन एक घंटे का क्लास

प्रतिदिन सुबह 9:30 बजे एक घंटे तक संचालित इस अभियान में उन महिलाओं को भी शामिल किया गया है जो क्वारंटाइन सेंटर पर रह रही हैं और जिन्हें निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुकूल शिक्षा की जरुरत है। बीडीओ ने बताया कि एक-एक मजदूर शिक्षित हो, सूबे का नाम देश दुनिया में रोशन हो और शिक्षा व कौशल के आधार पर उन्हें बेहतर रोजगार मिल सके। इस दिशा में स्मार्ट क्लास के माध्यम से प्रवासी मजदूरों को शिक्षा दी जा रही है। ठप्पा मार के कलंक से मुक्ति

प्रवासी मजदूर सलमा खातून ने बताया कि क्वारंटाइन अवधि सबों के लिए भले ही तपस्या है। लेकिन मेरे लिए यह वरदान है। 40 वर्ष से असाक्षर होने के कलंक से पीछा नहीं छूटा, जो महज चार दिन में हीं खत्म हो गया। प्रवासी संजय कुमार पासवान, गुडडू अंसारी, संजय कुमार, सुकट राम, शाहिदा खातून आदि भी काफी उत्साहित हैं।

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