आज भी बाढ़ के नाम पर आह भरते हैं तिरुआह के लोग

बेतिया। चनपटिया विधान सभा क्षेत्र के तिरुआह इलाका के लोग बाढ़ आपदा के नियंत्रण के नाम पर आ

By JagranEdited By: Publish:Thu, 01 Oct 2020 01:13 AM (IST) Updated:Thu, 01 Oct 2020 05:05 AM (IST)
आज भी बाढ़ के नाम पर आह भरते हैं तिरुआह के लोग
आज भी बाढ़ के नाम पर आह भरते हैं तिरुआह के लोग

बेतिया। चनपटिया विधान सभा क्षेत्र के तिरुआह इलाका के लोग बाढ़ आपदा के नियंत्रण के नाम पर आज भी आह भरते हैं। यहां बाढ़ नियंत्रण के नाम पर कोई योजनाबद्ध प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती है। चनपटिया विधानसभा क्षेत्र की 11 पंचायतें, जो तिरुआह क्षेत्र की हिस्सा बनती हैं, इनमें सरिसवा, बरवा सेमराघाट, हरपुर गढ़वा, रमपुरवा, महनवा, डुमरी, गुदरा, पर्सा, बहुअरवा सहित 11 शामिल हैं। यहां के लोग सिकरहना नदी के कहर से ज्यादा प्रभावित होते हैं। सभी पंचायतें नदी के दक्षिणी भाग में हैं, जबकि उत्तरी भाग की चर्चा करें, तो उसमें पांच पंचायतें शामिल हैं और वे सभी पूर्वी चंपारण में हैं। लेकिन, बाढ़ का प्रभाव वहां भी है। आश्चर्य तो इस बात को लेकर है कि बाढ़ नियंत्रण को लेकर ब्रिटिश हुकूमत के दौरान बनाए गए जमींदारी बांध को सुदृढ़ करने की सुनियोजित कार्रवाई भी नहीं होती। प्रत्येक वर्ष बाढ़ आपदा की संभावनाओं को लेकर अन्य तटबंधों को कार्ययोजना में शामिल किया जाता, लेकिन इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। कभी मनरेगा से तो कभी आपदा प्रबंधन के तहत इसकी मरम्मत कर कोरम पूरा कर लिया जाता रहा है। वैसे तो सिकरहना में आई बाढ़ से जिले के अन्य प्रखंड के लोग भी प्रभावित होते हैं, लेकिन इस विधान सभा क्षेत्र के शिवाघाट पुल से लेकर डुमरी तक का क्षेत्र ज्यादा प्रभावित होता है। जानकारों की माने, तो 2 लाख लोग बाढ़ विभीषिका से प्रभावित होते हैं। इस बार यहां के लोग इस आपदा को चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं।

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डेढ़ दशक में चार बार बाढ़ आपदा को झेल चुके हैं यहां के लोग

जहां तक विकास की बात की जाय, तो तिरुआह क्षेत्र में पिपरपाती घाट के पुल के निर्माण हो जाने से यहां के लोगों को थोड़ी राहत जरूर मिली। यहां से पूर्वी चंपारण का सीधा संपर्क हो गया। लेकिन बाढ़ आपदा का नाम सुनकर यहां के लोगों के दिल कांप उठते हैं। गुदरा पंचायत के पंचायत समिति सदस्य सह उप प्रमुख नंद किशोर यादव ने बताया कि वर्ष 2007, 2017 व 2017 में दो- दो बार आई बाढ़ से काफी बर्बादी हुई। इस वर्ष तो यहां के लोगों को दो माह में दो-दो बार बाढ़ की विभीषिका झेलनी पड़ी है। वहीं हरपुर गढ़वा के अली असगर बताते हैं कि यह क्षेत्र आज भी अविकसित है। इसमें सबसे अहम कारण बाढ़ नियंत्रण पर कोई ठोस पहल नहीं किया जाना है। इस वर्ष दो-दो बार बाढ़ आई है, इससे खरीफ फसल की काफी बर्बादी हुई है। अगर जमींदारी बांध सुदृढ़ होता, तो यह हालत नहीं होती।

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वर्ष 2012 में जमींदारी बांध का कराया गया था सर्वेक्षण

जमींदारी बांध को सु²ढ़ करने एवं इस पर रोड बनाने को लेकर वर्ष 2012 में सर्वेक्षण कराया गया था। सर्वेक्षण में शिवाघाट पुल से लेकर डुमरी तक बांध पर रोड बनाने की भी बात शामिल थी। इसे सिचाई विभाग को सौंपने का प्रस्ताव भी किया गया था, लेकिन कामयाबी इसलिए नहीं मिली, क्योंकि यह बांध जमींदारी है और इसे हस्तानांतरित करने के लिए लंबी प्रक्रिया से गुजरनी होगी।

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इस बार बाढ़ से मझौलिया प्रखंड में हुई है सर्वाधिक क्षति

जिला कृषि विभाग की ओर से सरकार को प्रभावित फसलों की रिपोर्ट भेजी गई है, उसके अनुसार सबसे ज्यादा मझौलिया प्रखंड में फसल बर्बाद हुई है। इस अंचल में 8343 हेक्टेयर में लगी फसल बर्बाद हुई है। दूसरा नंबर चनपटिया अंचल का है, यहां 7759 हेक्टेयर में लगी धान, मक्का, दलहन आदि की फसल बर्बाद हुई है। ये सभी क्षेत्र तिरुआह का हिस्सा माना जाता है।

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