दो बार हो चुके बेघर, अब डराती है गंडक की धारा

बगहा। एक पखवारे की बारिश व बाढ़ में दो बार बेघर हुए। बाढ़ में घर डूब गए जो हाथ आया

By JagranEdited By: Publish:Wed, 07 Jul 2021 10:44 PM (IST) Updated:Wed, 07 Jul 2021 10:44 PM (IST)
दो बार हो चुके बेघर, अब डराती है गंडक की धारा
दो बार हो चुके बेघर, अब डराती है गंडक की धारा

बगहा। एक पखवारे की बारिश व बाढ़ में दो बार बेघर हुए। बाढ़ में घर डूब गए, जो हाथ आया वो बच गया। पानी उतरा तो बाल-बच्चों के साथ घर लौटे। झोपड़ियों के छप्पर को दुरुस्त किया और प्लास्टिक तानकर दोबारा दिनचर्या शुरू हुई। इस बीच दूसरी बार गंडक मइया ने दूसरी बार अपना रौद्र रूप दिखाया। घरों में पानी घुसा और तबाही हाथ लगी। घर का चूल्हा ठंडा पड़ गया। खेत की फसलें डूब चुकी हैं। मवेशियों के लिए चारा नहीं है। अब तो गंडक की धारा देख मन कांप उठता है। पश्चिम चंपारण के वाल्मीकिनगर के चकदहवा में करीब तीन हजार की आबादी इस साल सिर्फ जून महीने में अबतक दो बार गंडक का कहर झेल चुकी है। तिनका-तिनका सहेज रहे लोगों की सांसें नदी के जलस्तर में बढ़ोतरी देख फूलने लगती हैं। बीते तीन दिनों से नेपाल में हो रही बारिश के कारण आशंका जताई जा रही कि गंडक के जलस्तर में फिर बढ़ोतरी हो सकती है। इस आशंका में लोग अपना बचा-खुचा सहेज किस्मत को कोस रहे हैं। गांव तक पहुंचने की कच्ची सड़क बाढ़ के कारण कीचड़ में तब्दील हो गई है। फिसलन के बीच लोग पैदल आते-जाते हैं। चकदहवा के बीडीसी गुलाब अंसारी बताते हैं कि लक्ष्मीपुर रमपुरवा के चकदहवा समेत आधा दर्जन गांव गंडक की पेटी में बसे हुए हैं। यदि नदी के जलस्तर में आंशिक बढ़ोतरी भी होती है तो ये गांव जलमग्न हो जाते हैं। हर साल औसतन तीन बार बाढ़ का दंश झेलना पड़ता है। बीते वर्षों में क्षतिग्रस्त बांधों की मरम्मत नहीं होने से परेशानी बढ़ जाती है। जिससे करीब चार माह तक आवागमन की समस्या से जूझना पड़ता है। गुलाब बताते हैं कि हमारे गांव कभी खुशहाल गांव थे। लेकिन छह वर्ष पहले भीषण कटाव के कारण गंडक नदी ने इसके बड़े भूभाग को अपनी आगोश में ले लिया है। ग्रामीणों की करीब 100 एकड़ उपजाऊ जमीन पहले ही नदी में समा चुकी है। करीब तीन हजार आबादी वाले चकदहवा गांव के करीब 100 परिवार मजबूरी और जन्मधरती से लगाव के कारण गांव में जमे हुए हैं। बरसात में पंचायत के कई गांव टापू बन जाते हैं। मजबूरी ऐसी की अपने ही हाथों अपना आशियाना उजाड़ नए ठिकाने के लिये तिनका जोड़ना पड़ता है। हालत यह है कि गांव में न अस्पताल और न एक पक्की सड़क है। रात होते ही सभी सहमे रहते हैं। आसमान में बिजली कड़कती है तो ग्रामीणों की सांसें थमने लगती हैं। काली अंधेरी रात में जब आसमान में बादल छाने लगते है। तो ग्रामीण भगवान से बारिश नहीं होने की गुहार लगाते हैं। इन लोगों के लिए प्रशासन की ओर से कोई व्यवस्था नहीं है। घर में बने मचान से नीचे उतरने में भी डर लगता है। सांप काट ले तो कहां जाएंगे, न मेडिकल कैंप और न दवा की सुविधा है। इमरजेंसी हो जाए तो प्रसूता को अस्पताल कैसे ले जाएंगे। गांव वालों ने आजतक सरकारी एंबुलेंस नहीं देखी है। प्रत्येक वर्ष बाढ़ के समय वे लोग बांध पर बने फूस में रहने चले आते हैं। जहां चार महीने तक खानाबदोश की जिदगी जीते हैं। ये गांव हैं ज्यादा प्रभावित :-

लक्ष्मीपुर रमपुरवा पंचायत के कान्ही टोला, बीन टोला, चकदहवा, झंडहवा टोला, ठाढी आदि गांव बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में आते हैं। लंबे समय तक पानी जमा रहने से आवागमन की समस्या बनी रहती है। इन गांवों में प्रत्येक वर्ष भीषण बाढ़ आती है। इस कारण इन गांवों में आवागमन बंद हो जाता है। एवं करीब चार माह तक यह समस्या बनी रहती है। रुक रुक कर हो रही बारिश से एक बार फिर सताने लगा विस्थापन का दंश :- रुक-रुक कर हो रही बारिश के बीच खुले आसमान की ओर चिता भरी निगाह से ग्रामीणों ने कहा कि इस वर्ष कोरोना ने पहले से ही उनकी कमर तोड़ कर रख दी है। रोजी-रोटी के लिए मजदूरी करने बाहर जाते थे, इस बार की बाढ़ ने बर्बादी की दास्तान लिख दी है।गांवों में बाढ़ का पानी जैसे ही नीचे उतरता है, लोगों को कीचड़ से सामना करना पड़ता है। जगह-जगह जमा पानी से फैलती दुर्गंध कई प्रकार के रोग पैदा करती है। स्वास्थ्य केंद्रों की कमी के कारण लोगों की परेशानी और बढ़ जाती है। बीमार मरीजों को लोग कभी खाट तो कभी चारपाई पर टांगकर अस्पताल तक लाते हैं।

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सामुदायिक रसोई में भोजन की व्यवस्था :-

बगहा दो सीओ राजीव रंजन श्रीवास्तव बताते हैं कि चकदहवा में बाढ़ पीड़ितों के लिए भोजन की व्यवस्था की गई है। यदि गांवों में फिर से बाढ़ का पानी प्रवेश करता है तो सभी लोगों के लिए प्राथमिक विद्यालय चकदहवा में रहने व खाने की व्यवस्था होगी।

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