जन शिक्षा निदेशालय के आदेश के बाद भी साक्षरता कर्मियों के लंबित है बकाए भुगतान
बेतिया। साक्षर भारत अभियान बंद हुए तीन वर्ष से अधिक का समय निकल चुका है। लेकिन उसमें काम क
बेतिया। साक्षर भारत अभियान बंद हुए तीन वर्ष से अधिक का समय निकल चुका है। लेकिन उसमें काम करने वाले कार्यक्रम समन्वयकों, प्रेरकों सहित अन्य लोगों का मानदेय भुगतान अबतक जिला शिक्षा कार्यालय के अधिकारियों की मनमानी से अटका पड़ा है। ऐसी स्थिति तब है जबकि जन शिक्षा निदेशालय दो वर्ष पूर्व ही साक्षरता कर्मियों के बकाए भुगतान का आदेश दे चुका है। इस मामले में दिसंबर 2020 में भी निदेशालय रिमांइडर भेज चुका है। बावजूद इसके जिला शिक्षा कार्यालय के जिम्मेदार अधिकारी साक्षरता कर्मियों के लंबित बकाए भुगतान के मामले में टाल-मटोल की नीति अपना जन शिक्षा निदेशालय के आदेशों को सरेआम ठेंगा दिखा रहे हैं। इधर वर्षों पूर्व काम पूरा करने के बाद भी संबंधित साक्षरता कर्मी अपने पारिश्रमिक भुगतान की टकटकी लगाए बैठे हैं। एक तो अभियान बंद होने से वे बेरोजगार हो चुके हैं दूसरी तरफ उनके द्वारा किए गए पूर्व के 21 माह के कार्यों का भी भुगतान नहीं हो पा रहा। इससे उनकी माली हालत काफी खराब हो चुकी है। लेकिन जिला शिक्षा कार्यालय के ढुलमुल रवैये की वजह से मानदेय भुगतान का मामला अटका पड़ा है। इससे पूर्व साक्षरता कर्मियों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है।मार्च 2018 में साक्षर भारत अभियान की समाप्ति के बाद राज्य साक्षरता निदेशालय ने साक्षरता कर्मियों को प्रभार देने के उपरांत लंबित मानदेय भुगतान का निर्देश जिलों को दिया था। तब जिले के कुछ ही प्रखंड कार्यक्रम समन्वयकों व प्रेरकों ने प्रभार दिया था जिसके बाद उनके बकाए मानदेय का भुगतान कर दिया गया था। शेष प्रखंड कार्यक्रम समन्वयक व प्रेरक प्रोजेक्ट आगे बढ़ने की प्रत्याशा या दूसरे प्रोजेक्ट में सा मंजन की उम्मीद में प्रभार नहीं दे सके थे। लेकिन जब बात नहीं बनी तो शेष लोगों ने भी मई-जून 2020 में अपने प्रभार सौंप दिए। लेकिन प्रभार सौंपने के एक वर्ष बाद भी उनके बकाए मानदेय भुगतान की फाइलें जिला शिक्षा कार्यालय के हाकिमों के टेबल की शोभा बनी हुई हैं। इधर डीईओ विनोद कुमार विमल ने बताया कि यह मामला साक्षरता का है। वहीं आर्थिक मामला स्थापना द्वारा देखा जाता है।