इनकी सतर्कता की दहलीज पर हारेगा कोरोना
कोरोना के संकट काल में हजारों मील का दूर सफर तय कर अपने गांव पहुंचे कुछ लोग ऐसे भी हैं जो घर पहुंचने की इच्छा से ज्यादा सबकी सुरक्षा को तवज्जो दे रहे हैं।
बेतिया। कोरोना के संकट काल में हजारों मील का दूर सफर तय कर अपने गांव पहुंचे कुछ लोग ऐसे भी हैं जो घर पहुंचने की इच्छा से ज्यादा सबकी सुरक्षा को तवज्जो दे रहे हैं। गांव की दहलीज पर आकर भी उनके कदम घर की बजाय क्वारंटाइन सेंटर की तरफ पहुंच रहे हैं। परिवार व गांव वालों के लिए फिक्रमंद इन लोगों की प्राथमिकता कोरोना का फैलाव रोकना है। वे घर से खाना-पानी मंगाकर अपनी तबीयत पर नजर रख रहे हैं। कई जागरूक प्रवासी प्रशासनिक उपेक्षा व बदइंतजामी से आहत भी हैं। बावजूद सुरक्षा को लेकर क्वारंटाइन सेंटर में रहना जरूरी समझ रहे हैं। ऐसा मिसाल पेश करने वाले लोग तकरीबन जिले के सभी इलाके में नजर आ रहे हैं।
सरदार मंगल सिंह प्रोजेक्ट कन्या उच्च प्लस टू विद्यालय मैनाटांड़ में मुंबई, सूरत, गुजरात से आए पप्पू सहनी, राजू कुमार, संजय साह क्वारंटाइन सेंटर में रह रहे हैं। पप्पू सहनी कहते हैं कि हमें घर रहने को कहा गया, लेकिन परिवार व गांव की चिता के चलते हमने ऐसा नहीं किया। मुंबई, हरियाणा, गुजरात से आए रोहित कुमार, मंगल प्रसाद, शोहन जितवा, बिट्टू सुब्बा ने बताया कि जिस क्वारंटाइन सेंटर में रखा गया है वह अनुसूचित जनजाति आवासीय उच्च विद्यालय भिरभिरया है। वहां की स्थिति दयनीय है। साफ-सफाई व चिकित्सीय सुविधा ना के बारबर है। परिवार व गांव की सुरक्षा के लिए उक्त क्वारंटाइन सेंटर में रह रहे हैं और पूरी सतर्कता से फिजिकल डिस्टेंस का पालन कर स्वास्थ्य के प्रति सजग हैं। वे कहते हैं कि लॉकडाउन में बाहर उन्हें कोई काम नहीं मिल रहा था। स्थिति भुखमरी के कगार पर थी। लेकिन अब अपने निवास स्थान आ गए हैं। 14 दिनों के बाद क्वारंटाइन सेंटर से छुट्टी मिलने के बाद अपने घर होम क्वारंटाइन पर रहेंगे ताकि परिवार व समाज स्वस्थ रहे। लॉकडाउन में फैक्ट्री बंद हो गई। पैसा व खाने का संकट आ गया। इस लिए घर लौट आए। संकट काल में ये कामगार भले मजबूरी की सफर को तय कर घर तो लौट आए हैं, लेकिन किसी पर बोझ कतई नहीं होंगे। क्वारंटाइन सेंटर में रह रहे प्रवासी किसी ना किसी काम में महारथ है। कोई पेंटिग, तो कोई पॉलिश का, तो कोई टेक्सटाइल फैक्ट्री की बड़ी-बड़ी मशीनों पर काम करता है। कई फर्नीचर पर नक्काशी का हुनर जानते है। सबने अपने हिसाब से रोजगार करने का निर्णय कर लिया है। परसौनी क्वारंटाइन सेंटर में रह रहे प्रवासियों ने बताया कि बाहर से आने के बाद वे बेरोजगार हैं। रोजगार करने के लिए अपने हुनर का इस्तेमाल करेंगे। फिलहाल फिजिकल डिस्टेंस को ध्यान में रखकर क्वारंटाइन सेंटर में रह रहे हैं।