कोरोना महामारी की भेंट चढ़ा ऐतिहासिक बौना पोखर का रामनवमी मेला
ऐतिहासिक बौना पोखर पर रामनवमी को लगने वाला तीन दिवसीय बौना मेला इस वर्ष भी कोविड-19 के कारण नहीं लगेगा। ग्रामीण क्षेत्र में लगने वाला यह मेला कब से लगता है किसी को कोई पता नहीं है।
संवाद सूत्र, वैशाली :
ऐतिहासिक बौना पोखर पर रामनवमी को लगने वाला तीन दिवसीय बौना मेला इस वर्ष भी कोविड-19 के कारण नहीं लगेगा। ग्रामीण क्षेत्र में लगने वाला यह मेला कब से लगता है, किसी को कोई पता नहीं है। पीढी दर पीढी लोग इस मेला को देखते आ रहे हैं। इतिहासकार कर्निंगहम जब सन 1861 में वैशाली आए थे, इस मेले को देखा था। उन्होंने लिखा है कि हिदू सौर गणना पर आधारित यह मेला कब से लगता है, किसी को पता नहीं है। मान्यता है कि भगवान राम जनकपुर जाने के समय अपने गुरु विश्वामित्र एवं अनुज लक्षण के साथ यहां रात्रि विश्राम किया था। उसी समय से उनकी याद में यह मेला लगता है।
कहते हैं कि उस समय जब आवागमन का कोई साधन नहीं था कई गांवों के लोग सुदूर इलाके से यहां अपने आवश्यकता की सामानों की खरीदारी करते थे। खासकर मसाला धनिया, मिर्च, अदरक, लहसुन, तेजपत्ता की खरीदारी की जाती थी जो आज तक कायम है। इस मेले की विशिष्टता यहां के बने काष्ट के समान है। साथ ही इस मेला को देखने जाने वाले लोग बेल जरूर खरीदते थे। आयुर्वेद के अनुसार भी चैत्र माह में स्वास्थ्य के लिए बेल खाना लाभदायक माना गया है। वर्ष 1945 में जब वैशाली महोत्सव का आयोजन प्रारंभ हुआ चैत्र संक्रांति 10 अप्रैल 1947 को दूसरा महोत्सव रामनवमी के दिन हीं लगा था। लेकिन किसी कारण से तीसरा महोत्सव महावीर जयंती को लगा जो परंपरा अभी तक चला आ रहा है।
इस संबंध में वैशाली के पूर्व विधायक स्व. नागेंद्र सिंह ने स्व. जगदीश चंद्र माथुर को वर्ष 1959 में एक पत्र लिखा था कि मेला रामनवमी को ही लगाया जाए। जिसके उत्तर में 19 अक्टूबर 1959 को माथुर साहब ने लिखा था कि पटना आने पर प्रो. योगेन्द्र मिश्र एवं जगन्नाथ साहू से मिलकर बात करूंगा। लेकिन यह नहीं हो सका और यह मेला हीं नहीं बौना पोखर भी अपने अस्तित्व की रक्षा में आज भी किसी उद्धारक के इंतजार में है।