सोनपुर मेला में मूर्तियों में जान फूंक परवरिश कर रहा राजस्थान का परिवार

आनंद राम एवं चंदा की बनाई मूर्तियां सोनपुर मेले में आने वाले लोगों को अपनी ओर खींचती हैं। ये दंपती राजस्थान के पाली जिले के रहने वाले हैं। दोनों के नेतृत्व में आठ सदस्यीय टीम के सदस्य परस्पर सहयोग से मूर्तियों का कारोबार चला रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 05 Dec 2019 11:13 PM (IST) Updated:Thu, 05 Dec 2019 11:13 PM (IST)
सोनपुर मेला में मूर्तियों में जान फूंक परवरिश कर रहा राजस्थान का परिवार
सोनपुर मेला में मूर्तियों में जान फूंक परवरिश कर रहा राजस्थान का परिवार

जागरण संवाददाता, हाजीपुर :

आनंद राम एवं चंदा की बनाई मूर्तियां सोनपुर मेले में आने वाले लोगों को अपनी ओर खींचती हैं। ये दंपती राजस्थान के पाली जिले के रहने वाले हैं। दोनों के नेतृत्व में आठ सदस्यीय टीम के सदस्य परस्पर सहयोग से मूर्तियों का कारोबार चला रहे हैं।

आनंद बताते हैं कि 30 साल से वहां बारिश नहीं हुई और जमीन बंजर हो गई है। सिचाई के महंगे साधनों के बल पर खेतीबारी कर पाना एक मुश्किल हो चुका था। मैंने अपने आठ सगे-संबंधियों की एक टीम बनाई। अपने अंदर के मूर्तिकार को कारोबार में समेट दिया। बड़ा लड़का कृष्णा 11वीं कक्षा तक की पढ़ाई भी कर चुका है। उसे आगे की शिक्षा दिलवाने की हैसियत नहीं थी। उसे भी मूर्तियों के कारोबार में लगा दिया। आज कृष्णा अपनी टीम का एक समझदार सेल्समैन बन चुका है।

यह परिवार गाय बाजार के समीप फुटपाथ पर काफी सुंदर एवं आकर्षक देवी-देवताओं की मूर्तियां बेच रहे हैं। आनंद राम बताते हैं कि टीम में हर तरह का काम करने वाला एक विशेषज्ञ है। बेटी चंदा और सविता मूर्तियों पर सुंदर नक्काशियां उकेरती है। जब प्लास्टर ऑफ पेरिस, केमिकल के प्रभाव वाले रबड़ और ढांचे समेत अन्य साधनों का इस्तेमाल कर मूर्तियों का निर्माण टीम के सदस्यों के सहयोग से कर लिया जाता है तो उसे बिक्री केंद्र पर चंदा और सविता के पास नक्काशियों के लिए भेज दिया जाता है। चूंकि कच्ची सामग्रियों का स्टॉक कुछ दूरी पर है। जहां टीम मूर्तियों का निर्माण करती है। बिक्री केंद्र पर सविता और चंदा समेत टीम की अन्य महिलाएं उसपर कलाकारी करती हैं। उसके बाद उसे बिक्री के लिए कतार में सजा दिया जाता है। भीड़ रही तो 2 लाख की पूंजी से अच्छी कमाई हो जाएगी। वे बताते हैं कि सोनपुर मेले में वे लोग करीब एक महीने रहते हैं। अगर भीड़ लगातार जुटती रहती है तो अच्छी कमाई हो जाती है। जिससे परिवार एवं टीम के सदस्यों की जरूरतें पूरी की जाती हैं। सारण समेत आसपास के जिलों मेंभी लगने वाले मेले में इनकी मूर्तियां बिकती हैं। टीम में आनंद के अलावा दुर्गेश, हीरा राम भी शामिल हैं। एक मूर्ति तैयार करने में करीब तीन घंटे लगते हैं। महिला एवं पुरुष सभी सदस्य सादगी के बीच ही ही ग्राहकों को लुभाने का प्रयास करते देखे जाते हैं। प्रत्येक वर्ष मेले की शुरुआत में आते हैं और यहां गाय बा•ार से कुछ आगे मुख्य सड़क पर इनकी

दुकान सज जाती है। जहां दर्शनार्थियों को माता सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा की आकर्षक मूर्तियां तो बिक्री के लिए रखी दिखेंगी ही, साथ में भगवान शिव और हनुमान समेत अन्य देवी देवताओं की सुंदर मूर्तियां भी सजी मिलेगी।

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