एक दशक में तीन बार सूखी झील, आसपास के गांवों में पानी के लिए मचा हाहाकार

फोटो- 15 -50 किलोमीटर दूरी है सूबे की राजधानी पटना से झील की -1.979 किलोमीटर में फैली है बरैला झील -2011 के बाद 2017 और 2019 में भी पूरी तरह सूख गई थी झील ------------- -इंसान ही नहीं पशु-पक्षियों को भी प्यास बुझाना हो गया था मुश्किल -समय रहते सचेत नहीं हुए तो भुगतने पड़ सकते हैं गंभीर परिणाम -----------

By JagranEdited By: Publish:Wed, 08 Jul 2020 01:13 AM (IST) Updated:Wed, 08 Jul 2020 01:13 AM (IST)
एक दशक में तीन बार सूखी झील, आसपास के गांवों में पानी के लिए मचा हाहाकार
एक दशक में तीन बार सूखी झील, आसपास के गांवों में पानी के लिए मचा हाहाकार

ब्रजेश, बरैला (जंदाहा)

बरैला झील आसपास के करीब एक सौ गांवों के लिए वरदान है। पिछले एक दशक में तीन बार झील पूरी तरह सूख चुकी है। चापाकलों से पानी निकलना बंद हो गया तो कुएं भी सूख गए। इंसान ही नहीं, पशु-पक्षियों को भी प्यास बुझाना मुश्किल हो गया था। अब भी सचेत नहीं हुए तो इससे भी गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

1.979 किलोमीटर में फैली बरैला झील वर्ष 2011, 2017 और 2019 में पूरी तरह सूख गई थी। स्थानीय लोग कहते हैं, झील के सूखने पर जंदाहा प्रखंड क्षेत्र के अधिकांश गांवों का भू-जल स्तर काफी नीचे चला जाता है। गांवों में जल संकट उत्पन्न हो जाता है। किसानों के समक्ष सिचाई की समस्या उत्पन्न हो जाती है। फसलें भी प्रभावित होती है।

किसान कहते हैं, झील में समुचित जल प्रबंधन की व्यवस्था सरकारी स्तर से की जाए तो क्षेत्र के सैकड़ों एकड़ खेतों में साल भर फसलें लहलहाएंगी। गर्मी के मौसम में भी क्षेत्र में जल संकट नहीं होगा।

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झील को नून नदी से

जोड़ने की जरूरत

झील से जल निकासी की सुदृढ़ व्यवस्था कर दी जाए तो बाढ़ आने पर तबाही मचाने के बजाय झील का पानी नून नदी की ओर निकल जाएगा। कृषि योग्य भूमि पर पानी जमा नहीं होगा। इसके साथ ही मत्स्य पालन, मखाना और पानीफल जैसे रोजगार से लोग अच्छी आमदनी कर सकते हैं।

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झील को निहारने आते

थे विदेशी मेहमान

सूबे की राजधानी पटना से 50 किलोमीटर दूर बरैला झील की खूबसूरती को निहारने के लिए लोग ही नहीं, सात समंदर पार से मेहमान पक्षी भी आते थे। यहां कई माह तक रहकर अपने वतन लौट जाते थे। मेहमान पक्षियों का बड़े पैमाने पर शिकार किए जाने लगा और फिर जगह-जगह नरकट सहित अन्य घास उग आए। धीरे-धीरे झील का स्वरूप बिगड़ गया और मेहमान पक्षियों ने भी मुंह मोड़ लिया।

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अभी बहुत कुछ करने की जरूरत

तथागत बरैला जीव रक्षा शोध संस्थान के संस्थापक पंकज कुमार चौधरी अपनी टीम के साथ झील के विकास में जुटे हैं। अब वन विभाग भी सक्रिय हुआ है। हालांकि, अभी तक योजना बनाकर इस संरक्षित करने के लिए कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।

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विकास के लिए ग्रामीणों का चयन

नमामि गंगे परियोजना के तहत केंद्र सरकार की ओर से भी इस झील के विकास को लेकर धीमी गति से ही सही, कवायद जारी है। बीते दिनों नमामि गंगे परियोजना की ओर से संचालित देहरादून में आयोजित कार्यक्रम में पर्यावरणविद लोमा निवासी पंकज कुमार चौधरी को बुलाया गया था। झील के विकास को लेकर उन्हें प्रशिक्षण भी दिया गया था। सरकारी स्तर से झील में रुचि रखने वाले लोगों को गंगा प्रहरी के रूप में चयन किया गया है।

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झील किनारे बांध पर पौधारोपण

पंकज कुमार चौधरी के नेतृत्व में गंगा प्रहरियों द्वारा बरैला झील में आने वाले प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा झील की सफाई एवं पर्यावरण संतुलन को लेकर बनाए गए बांध पर पौधारोपण शुरू किया गया है। चौधरी के नेतृत्व में गंगा प्रहरियों की टीम द्वारा झील किनारे जंगलों की सफाई कर फलदार पौधे लगाए जा रहे हैं। इन पौधों की देखरेख की जिम्मेदारी स्थानीय लोगों को दी गई है।

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फोटो- 16

बरेला झील जंदाहा प्रखंड क्षेत्र के कई गांव के लिए अति महत्वपूर्ण है। झील में पानी रहने से कई गांवों में जलसंकट नहीं होता। झील के सूखने से आसपास के गांवों के लोगों को काफी परेशानी होती है। सिंचाई के अभाव में फसलें भी प्रभावित होती है।

विप्लव कुमार, लोमा

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फोटो- 17

बरेला झील जंदाहा प्रखंड क्षेत्र ही नहीं बल्कि पातेपुर प्रखंड क्षेत्र के कई गांवों के लिए वरदान है। वैशाली जिले का गौरव है। सरकार, जनप्रतिनिधि एवं विभागीय अधिकारियों को झील के समग्र विकास पर युद्ध स्तर पर प्रयास करना चाहिए।

राजीव कुमार चौधरी, किसान

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फोटो- 18

बरेला झील में पर्यटन की असीम संभावना है। सरकार यदि पर्यटन के क्षेत्र में इसे आगे बढ़ाए तो सरकार को यहां से अच्छी राजस्व की प्राप्ति हो सकती है। स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिलेंगे। मत्स्य पालन के साथ ही अन्य रोजगार भी लोग कर सकते हैं।

अजय कुमार चौधरी, लोमा

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